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Online Learning : आज के दौर में तकनीकों के इस्तेमाल से पढ़ने-लिखने का तौर-तरीका काफी बदल गया है. हमारी रुचि के विषय की पूरी लाइब्रेरी गूगल हमें कुछ सेकेंडों में उपलब्ध करा देता है. वहीं डिजिटल टेक्नोलॉजी नये विषयों के समझने और उसकी व्याख्या करने में जितनी मददगार है, उसकी पहली कभी कल्पना नहीं की गयी. क्लासरूम में भी पढ़ाई को रुचिकर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल होने लगा है, लेकिन इस बात को लेकर अक्सर मतभेद रहता है कि तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद लर्निंग आउटकम यानी अपेक्षित परिणाम संतोषजनक नहीं रहता. कुछ अध्ययन तो इसके दुष्परिणाम का भी जिक्र करते हैं. कुछ रिपोर्ट में दावा किया जा चुका है कि स्क्रीन पर अधिक समय गुजारने से स्क्रीन एडिक्शन, गुस्सा, अवसाद, तनाव, सिरदर्द और आंखों में जलन की समस्या होती है.
तकनीकों का संतुलित इस्तेमाल
प्राथमिक स्तर की कक्षाओं से लेकर तमाम शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों में लर्निंग को रुचिकर बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है. टेक्नोलॉजी के अत्यधिक प्रयोग से छात्र की इंटरपर्सनल कॉग्निटिव, क्रिटिकल थिंकिंग और कम्युनिकेशन स्किल डेवलपमेंट के प्रभावित होने का डर रहता है. ऐसे में जरूरी है कि लर्निंग और स्किल डेवलपमेंट को बेहतर बनाने के क्रम में शिक्षकों को टेक्नोलॉजी का संतुलित इस्तेमाल करना चाहिए.
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कम्युनिकेशन बेहतर बनाने पर हो जोर
विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार, निकट भविष्य में डिजिटल लिटरेसी के बगैर अधिकतर जॉब में टिक पाना मुश्किल हो जायेगा. जिन नौकरियों में मांग तेजी से बढ़ रही है, वहां डिजिटल कम्युनिकेशन स्किल प्राथमिक मांग हैं, उदाहरण के तौर पर इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर जैसे क्षेत्रों को देख सकते हैं. डिजिटल लर्निंग के दौरान इस बात पर फोकस करने की जरूरत है कि कैसे डिजिटल कम्युनिकेशन यानी संवाद कला को बेहतर बनाया जाये. ई-बुक, वीडियो, एनिमेशन ब्लॉग, वेब पेज और डिजिटल गेम जैसी नयी विधाएं शिक्षण को निःसंदेह आसान और बेहतर बना रही हैं. डिजिटल प्लेटफार्म पर शब्दों का इस्तेमाल सीमित हो रहा है. इमेज, स्क्रीन लेआउट, पॉप-अप्स हाइपरलिंक्स और साउंड के सामंजस्य से डिजिटल प्लेटफार्म पर बेहतर तरीके से कम्युनिकेट किया जा रहा है. छात्रों को मल्टीमॉडल डिजाइन के प्रेरित करना, जैसे डिजिटल ड्राइंग या डायग्राम आदि से लर्निंग के प्रति उत्सुकता बढ़ाई जा सकते है.
क्रिएटिविटी है जरूरी
छात्रों को किसी चीज पर निर्भर बनाने के बजाय उन्हें क्रिएटिव और इंटरेक्टिव बनाने पर जोर होना चाहिए. केवल स्क्रीन देखते रहने, लेक्चर स्टाइल कंटेंट पर नजर गड़ाये रखने और स्लाइड्स देखने या एजुकेशनल गेम्स देखकर छात्र नहीं सीख सकते. ऐसे सॉफ्टवेयर से छात्रों को दूर रखना चाहिए, जो नाममात्र के लिए छात्रों को इंगेज करते हों. स्पेलिंग वर्ड जैसे ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे कि रचनात्मकता और याददाश्त दोनों में इजाफा हो. पढ़ाई के साथ अपने स्तर पर सोच और सीख सकें, तो अनिवार्य लक्ष्य होना चाहिए.
टेक्नोलॉजी के साथ टाइम मैनेजमेंट
रिसर्च भले ही यह दावा करते हैं कि मॉडर्न टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लर्निंग में कई फायदे हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए टाइम मैनेजमेंट की भी गाइडलाइंस है. शिक्षकों और अभिभावकों दोनों की जिम्मेदारी है कि बच्चों की उम्र के हिसाब से कंटेंट और टाइम लिमिट का खाका तैयार करें और मीडिया फ्री जोन स्थापित करें, ताकि बच्चे लत और डिप्रेशन का शिकार न हों. ऑनलाइन माध्यमों का इस्तेमाल करते समय कैसे अजनबी लोगों से कम्युनिकेट करें या दूरी बनायें, यह भी जानना आवश्यक है.