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क्या भारत आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया है. भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट तो यही कह रही है. आरबीआई की चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8.6 फीसदी के घाटे का अनुमान है. बीते दो तिमाहियों में भी जीडीपी में लगातार गिरावट आ गई है. ऐसे में पहली बार देश में आर्थिक मंदी के संकेत मिल रहे है.
आर्थिक दृष्टि से जब लगातार दो तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट आती है या यूं कहे कि जब अर्थव्यवस्था सिकुड़ने लगती है, तो इसे तकनीकी रुप से आर्थिक मंदी कहा जाता है. इस स्थिति में विकास दर नेगेटिव हो जाता है. भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट भी फिलहाल यहीं सूचना दे रही है.
अर्थव्यवस्था में जीडीपी में सिकुड़न का भी यहीं अर्थ है कि विकास दर नेगेटिव हो गया है. यानी जो पहले से स्थिति है उसमें बढ़ोतरी की बजाय उसमें गिरावट आने लगे. या हम इसे सीधे सीधे कह सकते है कि अर्थव्यवस्था में अब विकास का पहिया उल्टा घूम रहा है.
गौरतलब है कि कोरोना महामारी और लंबे समय तक लॉकडाउन के कार देश की प्रगति रुक सी गयी थी. वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी का सिकुड़न हुआ था. हालांकि दूसरी तिमाही के जीडीपी को लेकर केंद्रीय रिजर्व बैंक का जो पूर्वानुमान आया है उसके अनुसार सितंबर तिमाही में देश का आर्थिक सिकुड़न 8.6 फीसदी तक रहेगा. जो मंदी का स्पष्ट संकेत है.
क्यों भारत में है मंदी का खतरा : 24 मार्च 2020 से ही देश में कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन लगा दिया था. पूरी तरह देश स्थिर हो गया. सड़क पर वाहन थम गये, रेल के पहिये थम गये और कल कारखानों में उत्पादन बंद हो गया. देश में मांग और आपूर्ति दोनों बुरी तरह से प्रभावित हुई. कई लोग बेरोजगार हो गये. यही वो कारण था जिससे देश में पहली बार आर्थिक मंदी का दौर शुरू हुआ.
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वहीं, देश में मंदी के संकेत को लेकर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केन्द्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि देश के इतिहास में पहली बार मंदी आई है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पीएम मोदी ने भारत की ताकत को कमजोरी में बदल दिया है.
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Posted by; Pritish sahay
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