आर्थिक वृद्धि पर असर डाल सकता है जल संकट, विस्थापन की समस्या : विश्वबैंक
वाशिंगटन : विश्वबैंक ने चेतावनी दी है कि जल संकट के चलते देशों की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है, लोगों का विस्थापन बढ सकता है और यह भारत समेत पूरे विश्व में संघर्ष की समस्याएं खड़ी कर सकता है जहां विभिन्न क्षेत्रों में लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निकाय […]
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वाशिंगटन : विश्वबैंक ने चेतावनी दी है कि जल संकट के चलते देशों की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है, लोगों का विस्थापन बढ सकता है और यह भारत समेत पूरे विश्व में संघर्ष की समस्याएं खड़ी कर सकता है जहां विभिन्न क्षेत्रों में लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निकाय का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से जल संकट बढ रहा है. जलवायु परिवर्तन, जल एवं अर्थव्यवस्था पर विश्वबैंक की कल जारी रपट ‘हाई एण्ड ड्राई: क्लाइमेट चेंज, वाटर एण्ड दी इकॉनमी’ शीर्षक इस रपट में कहा गया है कि बढती जनसंख्या, बढती आय और शहरों के विस्तार से पानी की मांग में भारी बढोतरी होगी जबकि आपूर्ति अनियमित और अनिश्चित होगी.
भारत में पानी का उपयोग अधिक कुशलता और किफायत से किये जाने पर बल देते हुए विश्वबैंक के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि पूरे भारत में पानी की किल्लत या कम से कम कम पानी की मांग बढेगी. रपट में कहा गया है भारत में औसत से कम बारिश होने पर संपत्ति से जुडे झगडों में करीब चार प्रतिशत बढ जाते हैं और बाढ आने पर सांप्रदायिक दंगे ज्यादा आम हो जाते हैं.
इसमें कहा गया है कि गुजरात में जब जमीन के नीचे पानी का स्तर गिरने से सिंचाई के लिए पानी कम और महंगा हो गया तो किसान फसल प्रणाली में बदलाव और पानी के बेहतर उपयोग का रास्ता अपनाने के बजाय बजाय शहरों की ओर विस्थापन करने लगे.
विश्वबैंक ने कहा, ‘एक आकलन के मुताबिक भूमिगत जल की पंपिंग का भारत के कुल कार्बन उत्सर्जन में चार से छह प्रतिशत का योगदान है.’ विश्वबैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा है, ‘जल संकट आर्थिक वृद्धि और विश्व की स्थिरता के लिए के लिए बडा खतरा है और जलवायु परिवर्तन इस समस्या को और बढा रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘यदि देश अपने जल-संसाधन के बेहतर प्रबंधन के लिए पहल नहीं करते तो हमारे विश्लेषण के मुताबिक बडी आबादी वाले बडे क्षेत्रों में आर्थिक वृद्धि में गिरावट का लंबा सिलसिला शुरू हो सकता है. लेकिन विभिन्न लेन देश आने वाले समय में पानी का दीर्घकालिक प्रबंध करने के लिए अभी से इसके लिए नीतियां लागू कर सकते हैं.’ विश्वबैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री रिचर्ड दमानिया ने कहा कि मानसून के बारे में जलवायु माडल पर आधारित अनुमानों में काफी विभिन्नता है और उनके अलग-अलग हैं.
दमानिया ने कहा, ‘इसलिए लोगों को ठीक-ठीक नहीं पता कि मसलन, भारत में क्या होगा और पश्चिम एशिया में क्या होगा.’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए कम अवधि में या तो उतनी ही बारिश हो सकती है या कम लेकिन इसमें आने वाले दिनों में बदलाव होगा.’ उन्होंने कहा, ‘इसका भारत के लिए क्या अर्थ होगा. यदि आप जलवायु परिवर्तन को अलग भी कर देते हैं तो भारत के लिए अनुमानों से संकेत मिलता है कि जनसंख्या वृद्धि, शहरी करण जो उल्लेखनीय रूप से तेज है और आर्थिक वृद्धि सबको मिलाकर पानी की मांग बढेगी.’
दमानिया ने कहा, ‘इसलिए पानी की किल्लत बढने वाली है या कम से कम पानी की मांग बढेगी. इससे दरअसल यही संकेत मिलता है कि हमें पानी के उपयोग में दक्षता बढाने की जरुरत है.’
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