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जानिये रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा की मुख्य बातें
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नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक की आज हुई द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की मुख्य बातें इस प्रकार हैं. : अल्पकालिक उधार पर ब्याज दर (रेपो रेट) 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित. : नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित. : सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) सात फरवरी से आधा प्रतिशत घटाकर 21.5 प्रतिशत हुआ. इसका मतलब, […]
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नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक की आज हुई द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की मुख्य बातें इस प्रकार हैं.
: अल्पकालिक उधार पर ब्याज दर (रेपो रेट) 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित.
: नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित.
: सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) सात फरवरी से आधा प्रतिशत घटाकर 21.5 प्रतिशत हुआ. इसका मतलब, बैंकों के पास ऋण के लिए बचेगा ज्यादा धन.
: वर्ष 2014-15 में चालू खाते का घाटा (कैड) जीडीपी का 1.3 प्रतिशत रहेगा.
: जनवरी 2016 तक खुदरा मुद्रास्फीति को 6 प्रतिशत रखने का लक्ष्य.
: पुराने आधार वर्ष पर चालू वित्त वर्ष में वृद्धि 5.5 प्रतिशत और 2015-16 में 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान.
: बैंकों को निवेश और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के उद्येश्य से उत्पादक क्षेत्रों को कर्ज देने को कहा गया.
: व्यक्तियों द्वारा भारत से विदेश भेजे जाने वाले की विदेशी मुद्रा की वार्षिक सीमा दोगुनी कर ढाई लाख डालर की गयी.
: लघु ऋण बैंक के लाइसेंस के लिये 72, भुगतान बैंकों के लिये 41 आवेदन मिले.
: निर्यात ऋण पुनर्वित्त की विशेष सुविधा की जगह सात फरवरी से सामान्य प्रणालीगत नगदी सुविधा.
: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को उनकी निवेश सीमा पूरी होने पर सरकारी प्रतिभूतियों में फिर से निवेश की अनुमति होगी.
: वर्ष 2015-16 के लिये द्वैमासिक नीतिगत वक्तव्य 7 अप्रैल को जारी होगा.
रिजर्व बैंक ने कहा है कि लघु ऋण बैंक और भुगतान बैंक के लाइसेंस के आवेदनों की जांच दो वाह्य सलाहकार समितियां (ईएसी) करेंगी और आरबीआई को अपनी सिफारिशें सौंपेंगी. संबंधित समितियों की अध्यक्षता क्रमश: आरबीआई की पूर्व डिप्टी गवर्नर उषा थोराट और आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के निदेशक नचिकेत मोर करेंगे.
आरबीआई ने भारत से विदेश धन भेजने की उदारीकृत रेमिटेंस योजना (एलआरएस) के तहत भेजी जाने वाली राशि की वार्षिक सीमा बढाकर प्रति व्यक्ति 2,50,000 डालर वार्षिक कर दी है. अभी यह सीमा 1,25,000 डालर थी.
रिजर्व बैंक ने सरकार के साथ परामर्श के बाद यह व्यवस्था लागू कर दी है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) आगे कंपनियों के उन्हीं बांड में निवेश कर सकेंगे जिनकी परिपक्वता में कम से कम तीन साल का समय बचा हो. परिपक्वता की न्यूनतम तीन साल की अवधि अभी केवल सरकारी प्रतिभूतियों के संबंध में लागू थी.
वित्त वर्ष 2015-16 की पहली द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा सात अप्रैल 2015 को होगी.
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