संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
बजट से स्पष्ट है कि सरकार के पास पैसे नहीं है. ऐसे में जो आय कम हो रही है, चाहे वह टैक्स हो, विनिवेश हो या ऐसी और चीजें, पैसे जुटाने के लिए सरकार अलग-अलग तरकीबें सोच रही है. सरकार का पिछले साल डिसइन्वेस्टमेंट रिसीट्स का टारगेट 1,05,000 करोड़ रुपये था. मार्च 31 का फाइनेंशियल इयर होता है, आज 1 फरवरी को सरकार सिर्फ 18,000 करोड़ रुपये ही जमा कर पायी है. यानी 85 हजार करोड़ रुपये अगले दो महीने में जुटाने होंगे. यह कैसे होगा, इसके विकल्प पर कोई बात नहीं की गयी है. बजट में यह भी बोला गया है कि अगले साल डिसइन्वेस्टमेंट रिसीट्स का टारगेट 2,10,000 करोड़ रुपये हो जायेगा.
ऐसा कैसे होगा, यह भी नहीं समझाया गया है. सिर्फ यह बताया गया है कि हम लाइफ इश्योरेंस कॉरपोरेशन (एलआईसी) को स्टॉक मार्केट में लिस्ट करेंगे और उससे जो पैसे उठायेंगे, उसका इस्तेमाल रेवेंन्यू रिसीट्स की तरह अपने कार्यक्रमों को चलाने के लिए करेंगे. सरकार टैक्स में एक नयी कर व्यवस्था लेकर आयी है, लेकिन उसे यह याद रखना चाहिए कि भारत बचत करनेवालों का देश है.
यहां की जनता पैसे बचाने को महत्व देती है. अभी तक जो कर व्यवस्था थी, उसमें लोगों को कटौती व छूट दोनों मिलती थी. लोग इंश्योरेंस ले सकते थे, हाउसिंग लोन ले सकते थे, म्यूचुअल फंड में पैसे लगा सकते थे, लेकिन अब इंश्योरेंस कंपनियां भी पिटती जा रही हैं. आज स्टॉक मार्केट में पीएसयू संसेक्स 1000 प्वॉइंट डाउन है और निफ्टी 300 प्वॉइंट डाउन है. जाहिर है इंश्योरेंस कंपनियां व बैंक सब पिट रहे हैं. फिक्स डिपॉजिट एक रेवेन्यू था, उसे भी खत्म कर दिया गया है. हालांकि, टैक्स पेयर को नये पुराने दोनों में से किसी एक टैक्स स्लैब को चुनने का विकल्प दिया गया है, लेकिन नये स्टैब में उन्हें सिर्फ 40,000 तक का फायदा ही मिलेगा.
हां, डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स हटा दिया गया है, यह अच्छी बात है. कॉरपोरेट्स व अन्य लोगों के लिए यह अच्छा हुआ है. बुनियादी चीजों पर ध्यान देंगे तो इन्फ्रास्ट्रक्चर स्पेंडिंग साल-दर-साल डाउन हो रही है, रूरल स्पेडिंग बंद है. स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में मार्जिनल वृद्धि हो रही है. सरकार ने कोशिश की है कि वह डिस्क्रीशनरी डिस्पोजेबल इनकम को बढ़ायें, ताकि कंजंक्शन को एक बूस्ट मिले, लेकिन इसके सामानान्तर इन्फ्रा, रूरल, हेल्थ एवं एजुकेशन में कोई खर्च नहीं बढ़ाया गया है.
मेन्युफैक्चरिंग को कोई इनसेंटिव नहीं दिया है. उल्टा सरकार ने इनके ऊपर टैरिफ लगा दिये हैं. बजट की इतनी लंबी स्पीच होने के बाद भी इसमें गांव, गरीब और किसान के फायदे की दिशा में कोई प्रयास दिखा नहीं. इस बजट में सबसे बड़ी कमी यह है कि जसवंत सिंह ने जो एफआरबीएम एक्ट पेश किया था, इस सरकार ने उसके इमरजेंसी क्लॉज के एस्केप को ट्रिगर कर दिया है. ऐसा पहली बार हुआ है. देश-विदेश की कोई भी प्रतिष्ठित इनवेस्टमेंट कंपनी इस फैसले को अच्छा नहीं मानेगी.
सरकार का वास्तविक जीडीपी सवा चार प्रतिशत आ रहा है, जिसे लेकर उसने अंदाजा लगाया है कि आनेवाले समय में उसका न्यूनतम जीडीपी 10 प्रतिशत होगा. ऐसा कैसे होगा बजट में इस बारे में कोई बात नहीं की गयी है. हां, एक अच्छा कदम यह है कि बजट स्पीच में डोमेस्टिक मेडिकल डिवाइसेस इंडस्ट्री की मेन्युफैक्चरिंग को बूस्ट देने की बात कही गयी है. जैसे मोबाइल, हैंड सेट और काॅम्पोनेंट्स को बढ़ावा दिया गया है, वैसे मेडिकल डिवाइसेस को बढ़ावा दिया जायेगा. कुल मिलाकर बजट में मार्केट को बेहतर बनाने को लेकर कोई खास बात नहीं की गयी है.

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