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वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने Rating Agencies को दी चेतावनी, अपनी भूमिका पर करें गौर

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नयी दिल्ली : वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने दुनियाभर के रेटिंग एजेंसियों को चेतावनी देते हुए कहा कि आईएलएंडएफएस जैसी कंपनियों के वित्तीय संकट को देखते हुए रेटिंग एजेंसियों को अपनी भूमिका पर गौर करने की जरूरत है. रेटिंग एजेंसियां इस गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के ऋण चुकाने में चूक करने के ठीक पहले […]

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नयी दिल्ली : वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने दुनियाभर के रेटिंग एजेंसियों को चेतावनी देते हुए कहा कि आईएलएंडएफएस जैसी कंपनियों के वित्तीय संकट को देखते हुए रेटिंग एजेंसियों को अपनी भूमिका पर गौर करने की जरूरत है. रेटिंग एजेंसियां इस गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के ऋण चुकाने में चूक करने के ठीक पहले तक निरंतर निवेश श्रेणी की उच्चतम रेटिंग देती रहीं.

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इसे भी पढ़ें : मूडीज की रेटिंग ने सुधारा सरकार का मूड, दुनिया की दूसरी एजेंसियों से बढ़ी उम्मीद

वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने कहा कि जहां एक तरफ बैंक फंसे कर्ज की समस्या से निपटने में लगे थे, वहीं एनबीएफसी ने आक्रमक तरीके से कर्ज दिया. उन्होंने कहा कि बैंक जब फंसे कर्ज की समस्या से निपटने में लगे थे, एनबीएफसी में वृद्धि तेजी से हो रही थी. जिस प्रकार बैंकों ने आक्रमक तरीके से कर्ज दिये और जो स्थिति हुई, वही रवैया एनबीएफसी ने भी अख्तियार किया.

उन्होंने कहा कि कुछ एनबीएफसी में सामान्य से अधिक वृद्धि देखी गयी. उनमें संपत्ति गुणवत्ता प्रबंधन के संदर्भ में सुधार की आवश्यकता है. साथ ही, अत्यधिक गहन तरीके से नियमन की जरूरत है. रेटिंग एजेंसियों की भूमिका पर विचार की आवश्यकता है और यह देखने की जरूरत है कि कैसे इन्हें ‘एएए’ कर रेटिंग मिली हुई थी और अचानक ये एक दिन में आठ पायदान नीचे कैसे आ गये. इन पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है.

वित्तीय सेवा सचिव ने कहा कि सरकार एक प्रमुख हिस्सेदार है. इसीलिए इसमें बेहतर कंपनी गतिविधियां लाने की जरूरत है. पहले चरण में हिस्सेदारी को कटौती कर कम-से-कम 52 फीसदी पर लाने की जरूरत है. जब भी बाजार की स्थिति बेहतर होती है, बैंक इस दिशा में कदम उठायेंगे. उनके पास सभी प्रकार की मंजूरी है.

गौरतलब है कि आईएलएंडएफएस ने पिछले साल अगस्त की शुरुआत से कई बार भुगतान में चूक की, जिससे वित्तीय और पूंजी बाजारों को तगड़ा झटका लगा. रेटिंग एजेंसियां आईएलएंडएफएस के बढ़ते कर्ज और उभरते वित्तीय संकट को भांपने में विफल रहीं. कई बार चूक को देखते हुए साख निर्धारण एजेंसियां जांच के घेरे में हैं.

बाद में आइएलएंडएफएस की रेटिंग को कम कर कबाड़ की श्रेणी में डाल दिया गया. एनबीएफसी के ऊपर करीब 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. इसमें से 57,000 करोड़ रुपये बैंकों का कर्ज है. कर्ज देने वालों में ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं. वित्त मंत्रालय ने बैंकों में बेहतर कंपनी गतिविधियां लाने के प्रयास के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार की हिस्सेदारी कम कर 52 फीसदी पर लाने की सलाह दी है.

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