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जीएसटी के बाद अब Stamp Duty पर सरकार की नजर, शीतकालीन सत्र में ला सकती है प्रस्ताव

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नयी दिल्ली : पिछले साल एक जुलाई से देश में ‘वन कंट्री, वन टैक्स’ के लिए लागू किये गये वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बाद सरकार की नजर अब स्टांप ड्यूटी पर टिकी हुई है. खबर आ रही है कि सरकार जीएसटी की तरह पूरे देश में स्टांप पेपरों की दरें एक समान कर […]

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नयी दिल्ली : पिछले साल एक जुलाई से देश में ‘वन कंट्री, वन टैक्स’ के लिए लागू किये गये वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बाद सरकार की नजर अब स्टांप ड्यूटी पर टिकी हुई है. खबर आ रही है कि सरकार जीएसटी की तरह पूरे देश में स्टांप पेपरों की दरें एक समान कर सकती है. हालांकि, इस नये नियम को लागू करने के लिए राज्यों की सहमति के साथ प्रस्ताव तैयार कर दिया गया है. संभावना यह भी जाहिर की जा रही है कि आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान स्टांप पेपर की दरों को पूरे देश में एक समान लागू करने की खातिर लोकसभा में बिल भी पेश किया जा सकता है.

इसे भी पढ़ें : ऑनलाइन स्टांप ड्यूटी जमा करने पर एक फीसदी की छूट

हिंदी की खबरिया वेबसाइट नवभारत टाइम्स पर प्रकाशित एक समाचार में यह कहा गया है कि मोदी सरकार जीएसटी की तरह ही देश में शेयरों, डिबेंचर समेत तमाम फिनांशियल इंस्ट्रूमेंट के हस्तांतरण पर पूरे देश में एक समान स्टांप ड्यूटी दर को लागू करने की तैयारी कर रही है.

खबर में यह भी कहा गया है कि सरकार की ओर से उठाया जाने वाला यह कदम पिछले साल लागू किये गये जीएसटी ही की तरह है, जिसमें राज्यों और केंद्रों के दर्जनों टैक्सों को एक कर दिया गया है. होने वाले नये सुधार के तहत सरकार की मंशा पूरे देश में स्टांप ड्यूटी को एक समान करना है. हितधारकों ने सौ साल पुराने कानून के लिए बदलाव भी तैयार कर लिये हैं.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बाबत प्रस्ताव बनकर तैयार है और इसको लेकर राज्यों की भी सहमति ले ली गयी है. उन्होंने ने बताया कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस बदलाव को पारित कराने के लिए लाया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि इस कदम से राज्यों के राजस्व पर असर नहीं पड़ेगा.

गौँरतलब है कि स्टांप ड्यूटी भूमि खरीद से जुड़े हस्तांतरण और दस्तावेज पर लगता है, लेकिन इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया था. विनिमय बिल, चेक, लेडिंग बिल्स, साख पत्र, बीमा पॉलिसी, शेयर हस्तांतरण, इकरारनामा, पट्टा जैसे वित्तीय साधनों पर स्टांप ड्यूटी संसद से तय होता है.

हालांकि, अन्य वित्तीय साधनों पर स्टांप ड्यूटी की दर को राज्य तय करते हैं. स्टांप ड्यूटी में भिन्नता की वजह से अक्सर लोग ऐसे राज्यों से लेन-देन करते हैं, जहां दरें कम होती है. बाजार विनियामक सेबी ने इससे पहले राज्यों को सलाह दी थी कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से होने वाले वित्तीय लेन-देन स्टांप ड्यूटी को एकसमान बनायें या माफ कर दें.

एकसमान स्टांप ड्यूटी की दर के लिए 1899 के कानून में बदलाव के लिए प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन राज्यों ने इस अपील को खारिज कर दिया. इसका कारण यह है कि वे स्टांप ड्यूटी पर अधिकार खोना नहीं चाहते.

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