दिवाला कानून को राज्यसभा से मिली मंजूरी, डिफाॅल्टर अपनी परिसंपत्ति की नीलामी में नहीं ले सकेंगे भाग
नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है तथा इसे सुगम बनाने के लिए कानून में समय समय पर बदलाव किये जाते रहे हैं. दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक 2017 पर राज्यसभा में हुर्इ चर्चा का […]
नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है तथा इसे सुगम बनाने के लिए कानून में समय समय पर बदलाव किये जाते रहे हैं. दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक 2017 पर राज्यसभा में हुर्इ चर्चा का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए कानून में समय समय पर बदलाव किये जाते रहे हैं और आगे भी किये जा सकते हैं.
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उन्होंने बताया कि मूल कानून बनने के बाद से 500 मामलों का निस्तारण किया जा चुका है. जेटली के जवाब के बाद उच्च सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. उच्च सदन से इस विधेयक के पास हो जाने के बाद अब डिफाॅल्टर (जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले) अपनी ही परिसंपत्ति की नीलामी में भाग नहीं ले सकेंगे.
इससे पहले जेटली ने कहा कि मझोले एवं लघु उद्योगों से जुड़े मामलों के निस्तारण के लिए सुझाव देने के बारे में सरकार ने एक समिति गठित की है. समिति से तीन माह के भीतर अपनी सिफारिशें सौंपने को कहा गया है. विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने एमएसएमई क्षेत्र की समस्याओं को उठाते हुए कहा था कि सरकार को इस क्षेत्र के लिए अलग से प्रावधान निर्धारित करने चाहिए. यह विधेयक इस बारे में नवंबर में लागू किये गये अध्यादेश का स्थान लेगा, जिसमें दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में संशोधन करने की मांग की गयी है.
जेटली ने कहा कि अध्यादेश लाना इसलिए जरूरी था कि इस संबंध में काफी मामले लंबित थे और इस बारे में समयसीमा तय कर दी गयी थी. अगर हम और इंतजार करते, तो मामले और बढ़ते जाते. इस विधेयक के माध्यम से खामियों को दूर करने पर बल दिया गया है, ताकि जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले बकायेदार खुद की परिसंपत्तियों की बोली नहीं लगा सकें. प्रस्तावित परिवर्तनों से तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए खरीदारों का चयन करने की प्रक्रिया को सरल बनाने में मदद मिलेगी.
जेटली ने कहा कि इसमें अपात्रता संबंधी मानदंड जोड़ना जरूरी था, अन्यथा जिन्होंने चूक की वे कुछ धन देकर फिर से प्रबंधन और व्यवस्था में वापस लौट आते. क्या हम ऐसी स्थिति की अनुमति दे सकते थे ? वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि दिवालिया घोषित करने वाली कंपनी की संपत्तियों की नीलामी किस प्रकार की जाये, यह ऋणदाताओं की समिति तय करेगी. इससे पहले चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने दिवालिया घोषित होने वाली कंपनियों से जुड़े कई व्यावहारिक समस्याओं को उठाया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि नीलामी में भाग लेने वाले लोगों के बारे में जो शर्तें लगायी गयी हैं, उन पर विचार करना चाहिए. उन्होंने उदाहरण दिया कि सेबी द्वारा कारोबार से जिन लोगों पर निषेध लगाया गया है, उन्हें भी इस विधेयक में अपात्र माना गया है. उन्होंने कहा कि सेबी प्राय: ऐसे निषेध छह माह या एक साल के लिए लगाती है. ऐसे में उस व्यक्ति को सदा के लिए अपात्र बना देना कितना उचित होगा.
भाजपा के भूपेंद्र यादव ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इससे दिवाला कंपनी के संपत्तियों को बेचकर कर्ज देने वालों का धन वापस लौटाने में मदद मिलेगी. सपा के नरेश अग्रवाल ने सरकार से सवाल किया कि क्या इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद बैंकों की गैर निष्पादक आस्तियां (एनपीए) कम करने में मदद मिलेगी.
विधेयक पर चर्चा में अन्नाद्रमुक के नवनीतकृष्णन, तृणमूल कांग्रेस सुखेन्दु शेखर राय, बसपा के सतीश चन्द्र मिश्रा, शिवसेना के अनिल देसाई, भाकपा के डी राजा, भाजपा के अजय संचेती, कांग्रेस के जयराम रमेश एवं टी सुब्बीरामी रेड्डी, वाईएसआर कांग्रेस के विजयसाई रेड्डी, द्रमुक के टी आर एस एलनगोवन ने भी भाग लिया.
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