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”श्रमिकों की सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के लिए समावेशी न्यूनतम मजदूरी प्रणाली की जरूरत”

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नयी दिल्ली : गुरुवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि देश में एक अधिक समावेशी न्यूनतम मजदूरी प्रणाली स्थापित किये जाने की जरूरत है. यह प्रणाली श्रमिकों की सुरक्षा और गरीब उन्मूलन में कारगर भूमिका निभा सकती है. इसके साथ ही, इससे मजदूरी की असमानता घटाने, […]

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नयी दिल्ली : गुरुवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि देश में एक अधिक समावेशी न्यूनतम मजदूरी प्रणाली स्थापित किये जाने की जरूरत है. यह प्रणाली श्रमिकों की सुरक्षा और गरीब उन्मूलन में कारगर भूमिका निभा सकती है. इसके साथ ही, इससे मजदूरी की असमानता घटाने, गरीबी उन्मूलन और विशेष तौर पर निचले स्तर पर समावेशी वृद्धि दर लाने में मदद मिलेगी.

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इसे भी देखें : एक अप्रैल से न्यूनतम मजदूरी में होगी तीन फीसदी की बढ़ोतरी

समीक्षा के अनुसार, पिछले 70 साल में देश में न्यूनतम मजदूरी प्रणाली का विस्तार हुआ है और यह काफी उलझ गयी है. इस प्रणाली की पहली उलझन इसके फैलाव से जुड़े मुद्दों से ही उभरती है. समीक्षा के अनुसार, एक सुविचारित न्यूनतम मजदूरी प्रणाली श्रमिकों की सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन में कारगर भूमिका निभा सकती है. यदि इस प्रणाली को उपयुक्त स्तर पर लागू किया जाये, तो अंतरराष्ट्रीय अनुभव दिखाते हैं कि साधारण प्रणालियां, जटिल प्रणालियों के मुकाबले ज्यादा प्रभावी होती हैं.

समावेशी मजदूरी प्रणाली से महिलाओं के बीच और विशेषकर निचले स्तर पर मजदूरी में असमानता को खत्म करने में मदद मिलती है. फिलहाल, देश में अकुशल श्रमिकों के लिए 429 सूचीबद्ध रोजगार और 1,915 सूचीबद्ध काम की श्रेणियां हैं. इनके संबंध में केंद्र और राज्य सरकारें न्यूनतम वेतन घोषित करती हैं. रोजगार श्रेणियों और मजदूरी दर में इस व्यापक विस्तार के चलते ना केवल राज्यों के स्तर पर बल्कि राज्यों के भीतर ही विभिन्न अंतर हैं.

समीक्षा में कहा गया है कि प्रत्येक तीन में से एक श्रमिक न्यूनतम मजदूरी कानून की सुरक्षा से वंचित है. समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि न्यूनतम मजदूरी को चार श्रेणियों अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल और उच्च कुशल श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए, जो भौगोलिक क्षेत्र पर आधारित हों और सारे श्रमिक इसके दायरे में आते हों.

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