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serious life threatening diseases defeat by health technology चिकित्सा शास्त्र में कई ऐसी नई क्रांतिकारी प्रौद्योगिकियों ने जन्म लिया, जिससे न केवल रोग-निदान हुआ बल्कि नए डायग्नोस्टिक तौर-तरीकों का भी ईजाद हुआ. इससे बुझती सांसों को जलाए रखने में काफी हद तक कामयाबी मिली है. हालांकि, कोरोना ने सबको फिलहाल परेशान कर रखा है. इसपर कई शोध किए जा रहे है और कई होने बाकी है. आज नेशनल टेक्नोलॉजी दिवस पर हम आपको बताने जा रहे है कुछ ऐसी तकनीकों के बारे में जिसके आने से कई गंभीर बीमारियों का इलाज संभव हो पाया.
नई टेक्नोलॉजी के विकास से बीते दशकों के मुकाबले सर्जरी दिनोदिन सूक्ष्मतर होती जा रही है. बीमार अंग तक पहुंचने के लिए सर्जन को अब बड़ा चीरा नहीं लगाना पड़ता है. लेप्रोस्कोपिक, रोबोटिक और लेजर जैसी अन्य सर्जरी लगभग सब जगह उपलब्ध होने लगी है.
तो आईये जानते हैं कि इस बारे में क्या कहते हैं ओड़िसा के एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत डॉ गौरव…
रोबोटिक सर्जरी
इससे बेहद सूक्ष्म सर्जरी होती है. इसके आने से चीरा न के बराबर लगाना होता है. यह कई गंभीर बीमारियों में उपयोग में लाया जाता है. इससे कैंसर या ट्यूमर का इलाज संभव हो पाया है. संवेदनशील जगहों से ट्यूमर को इसके जरिये निकाला जाता है.
पेट स्कैन
इसके जरिये डॉक्टर शरीर के अंगों में मौजूद ट्यूमर या कैंसर को पहचान पाते हैं कि वह है कहां. इस तकनीक से मरीजों के बुझते दिए को जलाने में काफी मदद मिली.
ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप
इसके जरिये किसी दुर्घटना में कटे हाथ-पैर, उंगलियां और दूसरे अंग शरीर के साथ पुनः जोड़ने में सक्षम हो पाते हैं. इससे आंख, कान के आंतरिक हिस्सों और रक्त-वाहिकाओं की सूक्ष्म सर्जरी भी संभव हो जाती है. आजकल तो शिशु की आंतरिक शारीरिक विकृतियां भी इससे दूर की जा रही है.
स्पाइरोमेटरी डिवाइस
इस मशीन में मरीजों को फूंकना होता है. जिसके जरिये उनके फेफड़ें किस तरह की बीमारी से ग्रसित है, पता चल पाता है.
डायलिसीस
जब किसी व्यक्ति की किडनी की गंभीर बीमारी होती है. और उनका यह अंग सुचारू रूप से काम नहीं करता तो उस समय डायलिसिस किया जाता है. यह डायलिसिस तब तक किया जाता जब तक किडनी क्रियाशील न हों. इस प्रक्रिया से शरीर के वेस्ट रिमूव हो जाता है, गंदगी को शरीर में जमा होने से रोकता है. इसके अलावा यह ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी मदद करता है.
वेंटीलेटर
यह एक तरह की मशीन है जो ऐसे मरीजों की जिंदगी बचाती है जिन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है. कोरोना महामारी से बचाने में इसका काफी इस्तेमाल हो रहा है. यदि किसी वजह से फेफड़े नहीं काम कर पा रहा है तो इस प्रक्रिया को उपयोग में लाया जाता है.
हालांकि, दुनियाभर में तमाम कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक अबतक कोरोना का मर्ज नहीं निकाल पाएं है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा था कि हमें कोरोना के साथ जीने का तरीका सीख लेना चाहिए. यह हमारे बीच लंबे समय तक रहेगा. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि बस तकनीक ही है जो इस क्षेत्र में कोई कमाल दिखा सकती है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.