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संपादकीय

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उत्सवों का मर्म समझा जाए

हंसी-खुशी के आलम में उत्सवों की आड़ में हम उनके मर्म को भूल जाते हैं. यह विडंबना है क्योंकि हिंदुस्तान उत्सवों का ही तो समाज है.

बढ़ती चीनी आक्रामकता

भारत को न केवल सैन्य स्तर पर सतर्क रहने की जरूरत है, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी चीन पर दबाव बनाने की कोशिशें करनी चाहिए.

स्वस्थ जीवन का ज्ञान है आयुर्वेद

आयु से हम सुख और हित का अर्थ ग्रहण करते हैं यानी व्यक्ति की अच्छी आयु लोगों और समाज के लिए भी हितकारी होनी चाहिए

ग्लासगो से उम्मीदें

भारत दुनिया के उन देशों में है, जो कार्बन उत्सर्जन को घटाने तथा स्वच्छ ऊर्जा का उपभोग बढ़ाने की दिशा में ठोस पहल कर रहे हैं.

नेट-जीरो का महत्वाकांक्षी लक्ष्य

सम्मेलन का आयोजन और प्रधानमंत्री मोदी की घोषणाएं ऐसे वक्त पर आयी हैं, जब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस किया जा रहा है.

जहरीली होती हवा

राजधानी होने के कारण दिल्ली और आसपास के शहरों के प्रदूषण पर अधिक चर्चा होती रहती है, लेकिन सच यह है कि समूचा उत्तर भारत इससे ग्रस्त है.

बढ़ता डिजिटल लेन-देन

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के संग्रहण तथा भविष्य निधि खातों की संख्या में वृद्धि भी डिजिटल लेन-देन के महत्व को रेखांकित करती है.

प्रकृति को सहेजने का लोकपर्व

संभवतः हमारे पूर्वज भविष्य में मनुष्य द्वारा प्रकृति के निरादर के प्रति सशंकित थे, इसलिए उन्होंने इसको धर्म से जोड़ दिया, ताकि लोग धार्मिक विधानों में बंध कर ही सही, प्रकृति का सम्मान व संरक्षण करते रहें.

वित्त आयोग और राज्यों की हिस्सेदारी

पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट ऐसे समय में आयी है, जब कोविड-19 महामारी के प्रभाव और अर्थव्यवस्था में राज्यों की भूमिका पर काफी पुनर्विचार हुआ है, खासकर स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्रों में.
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