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Friday, February 7, 2025 | 05:25 am
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प्रभु चावला

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राष्ट्रीय नेताओं पर निर्भरता का चलन

इंदिरा गांधी ने पार्टी को अपनी निजी जागीर की तरह चलाना शुरू कर दिया था और वह दौर प्रादेशिक नेताओं की कब्रगाह साबित हुआ. उनके बाद राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी इसी लकीर पर चलते रहे.

नीति-निर्माता भी बनें महिलाएं

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने 10 महिला मंत्री बनाये और सुषमा स्वराज को पहली महिला विदेश मंत्री और निर्मला सीतारमण को वाणिज्य मंत्रालय में राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार देकर इतिहास रचा. स्मृति ईरानी स्वतंत्रता के कैबिनेट स्तर की मानव संसाधन विकास मंत्री बननेवाली पहली महिला मंत्री बनीं.

भारतीयों के प्रति अमेरिका का दोहरापन

अमेरिकी खजाने में सबसे ज्यादा पैसे भरनेवाले समुदायों में भारतवंशी भी हैं. वहां कट्टर गोरों की नफरत के पीछे भारतीयों की आर्थिक और सांस्कृतिक श्रेष्ठता एक बड़ी वजह है.

नये नामों की जगह नया शहर चाहिए

आजादी के 77वें वर्ष में भारत को नया भारत बनने के लिए किसी रेलवे स्टेशन पर नया नेमप्लेट लगाने की जरूरत नहीं. उसे नये नामों की जगह नये शहर चाहिए, और पुराने शहरों को और साफ और बेहतर होना चाहिए.

समाज में बढ़ती खाई को पाटने का समय

लगभग सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से अवैध धार्मिक इमारतों को ढहाने के लिए बार-बार भेजे गये निर्देशों पर कोई ध्यान नहीं दिया

फैलता जा रहा है स्पैम कॉल का जाल

बड़ी टेक कंपनियों ने तकनीक को तो सस्ता कर दिया, लेकिन इससे टेलीमार्केटिंग करने वालों की एक फौज तैयार हो गयी. ई-कॉमर्स की दुनिया में योगगुरुओं, यौन परामर्शदाताओं और फिटनेस पर ज्ञान देने वालों की बाढ़ आ गयी है. उन्हें खुद को गुरु साबित करने के लिए विज्ञापन पर महंगे खर्च नहीं, बस एक फोन चाहिए होता है..

जाति की सियासी बिसात पर राजस्थान

गांधी परिवार यह तो समझता है कि सचिन का युवा होना और स्वच्छ छवि पार्टी के लिये एक पूंजी है, मगर उनकी जाति बोझ बन जाती है. वे गूजर समुदाय से हैं, जिनकी राज्य की आबादी में हिस्सा दो अंकों में भी नहीं पहुंचता. सचिन की सबसे बड़ी भूल अपनी पहचान गूजर समुदाय से जोड़ना थी.

ब्रांड मोदी को दमदार क्षेत्रीय नेताओं की जरूरत

साल 1990 से 2004 के बीच आडवाणी-वाजपेयी की टीम ने विचारधारा और जमीनी काम में दक्ष युवाओं की टोली तैयार की थी.

मस्क का उपनिवेश बन गया है ट्विटर

ट्विटर का तरीका अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अलग है. यह अभिव्यक्ति की लत लगाने वाला मंच है और इसलिए यह स्वाभाविक रूप से राजनीतिक वर्ग के लिए मजबूत औजार है.
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