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डोरेमॉन, मोटू-पतलू, स्पाइडर मैन, मिकी माउस की मांग

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गोपालगंज : त्योहार काल और परिस्थिति का आईना होते हैं. होली की पिचकारी बाजार को देखकर इस बात का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. होली की खरीदारी के लिए देर रात तक चहल पहल दिखी. बाजार में रंग-अबीर के अलावे मिठाई व कपड़ों की खरीदारी भी जमकर हुई. बाजार में नामी नेताओं की पिचाकारियों […]

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गोपालगंज : त्योहार काल और परिस्थिति का आईना होते हैं. होली की पिचकारी बाजार को देखकर इस बात का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. होली की खरीदारी के लिए देर रात तक चहल पहल दिखी. बाजार में रंग-अबीर के अलावे मिठाई व कपड़ों की खरीदारी भी जमकर हुई. बाजार में नामी नेताओं की पिचाकारियों की धूम है. नेताओं के मुखौटे की भी बाजार में काफी डिमांड है.

कई नेताओं का मुखौटा तो इतना बिका कि बाजार से गायब हो गया है. वहीं, बच्चों की डिमांड कार्टून वाले मुखौटों और पिचकारियों की है. यही वजह है कि डोरेमॉन, मोटू-पतलू, स्पाइडर मैन, मिकी माउस जैसे पात्रों के मुखौटों और उनके नाम की पिचकारियों से दुकान भरे पड़े हैं.
बाजार में 10 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक की पिचकारी तो 10 से लेकर 100 रुपये तक के मुखौटे उपलब्ध हैं. दुकानदार ने बताया कि होली खेलते समय सिर को बचाने के लिए लोग टोपी और पगड़ी का भी खूब इस्तेमाल करते हैं, इसलिए इनकी बिक्री भी खूब है. 10 से 200 रुपये तक की पगड़ी व टोपी बाजार में मौजूद है.पिचकारियों की दुकान पर टंगे रंग-बिरंगे विग की भी खूब बिक्री हो रही है.
मलिंगा के हेयर स्टाइल का विग लोगों को खूब भा रहा है. इसके अलावा योगी जटा और महिलाओं के बालों के रंग-बिरंगे विगों की भी भरमार है और यह खूब बिक भी रहे हैं. इन विगों की गुणवत्ता के हिसाब से कीमत 50 से 600 रुपये तक है. रंग और गुलाल के बाजार में हर्बल पर विशेष जोर है. दुकानों पर पहुंचते ही ग्राहक दुकानदारों से केवल हर्बल रंग और गुलाल ही मांग रहे हैं. हर्बल रंग व गुलाल की कीमत 50 से लेकर 400 रुपये तक है. स्पेशल खुशबू वाले रंग-गुलाल, स्प्रे आदि भी दुकान पर खूब उपलब्ध है .
दिल मिलाओ, लकड़ी न जलाओ, पर्यावरण बचाओ
गोपालगंज . होलिका जलाने की होड़ कहीं न कहीं हमारे दिलों की दूरियां भी बढ़ा रही है. जो पर्व आपसी सौहार्द व प्रेम का संदेश देता है. कई बार छोटी-छोटी वजहों से वह रिश्तों में खटास का कारण बन जाता है. बात ज्यादा पुरानी नहीं है. शहर में होलिका दहन गिने-चुने स्थानों पर होता था.
वहां पर कई मुहल्लों के लोग एकत्र होते थे. भले ही पहले एक-दूसरे से परिचित नहीं होते थे, पर आखत डालने के दौरान ही कई बार उनमें इतनी आत्मीयता हो जाती थी, पर पिछले कुछ समय से त्योहार का स्वरूप बदला है. शहर में कुछ चंद लोगों के कारण माहौल वैसा नहीं रहा. शहर की फिजा पर चोट पहुंचाने की साजिश का मौका खोजा जा रहा. इसे ध्यान में रखकर अब एक मुहल्ले में कई होलिका जलायी जाने लगी हैं. जो कहीं न कहीं हमारे दिलों के बीच की दूरी तो बढ़ा ही रही है .
बनता है विवाद का कारण
अलग होलिका दहन अक्सर विवाद का कारण भी बनता है. कई बार नौबत मारपीट तक पहुंच जाती है. हर बार प्रशासन व पुलिस का जोर इसी बात पर रहता है कि कहीं नयी परंपरा न डाली जाये. होलिका दहन जिन स्थानों पर होता आया है वहीं पर किया जाये.
इनका भी रखें ध्यान
होलिका में लकड़ी के साथ कई जगह लोग पुराने टायर, पॉलीथिन आदि जला देते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध होने की बजाय प्रदूषित होता है. जो पूरी तरह से गलत है. जिसका दुष्प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. ऐसे में होलिका जलाते समय इसका भी ध्यान रखना जरूरी है. अगर सामूहिक रूप से होलिका दहन किया जाये तो लकड़ी को बचाया जा सकता है. उसके साथ ही लोगों में आपसी सद्भाव भी बढ़ेगा. व्यवस्थाओं को लेकर प्रशासन व पुलिस पर भी अतिरिक्त दबाव नहीं रहेगा.
क्या है स्थिति
– 10 से 12 क्विंटल औसतन लकड़ी जलती है एक होलिका में
– 1770 लगभग स्थानों पर शहर में जलायी जाती है होली
– 135 स्थानों पर शहर के क्षेत्र में होता है होलिका दहन
– 305 स्थानों पर जलती है यहां पर होली
– 3500 क्विंटल लगभग लकड़ी इन होलिका के जलती है.

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