मैं हूं एक खोज का माध्यम, 

परिचायक तेरे सद्गुणों का। 

मैं प्रेरक जगत् गुरु का, 

सदा सर्वदा आधार रहा। 

मैं कारक सब भेद बिभेद का, 

मानक तेरे कर्मफलों का। 

मैं अनुभव एक खोज जगत् का, 

अमर अकाट विदित हूँ नभ में। 

मैं चेतन तेरे विचारों से, 

वाहक बना बौद्धिक समाज में। 

मै वाचक प्रेरक सिद्धांत का, 

संबधी तेरे मनोबल का ! 

मैं अनुभव ,वरदान स्वरूप ,

रक्षक बना जन मानस का। 

मैं बन साधु समाज का, 

बिच्छू को जीवन दान दिया। 

मैं अनुभव एक खोज जगत का। 

चेतन भीतर बाहर का। 

मै देवत्व वरदान स्वरूप, 

कल कल बहता ज्ञान की धारा। 

मैं अनुभव एक खोज जगत का।