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हर बेहतरीन काम को मिलती है पहचान

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!!विजय बहादुर !! vijay@prabhatkhabar.inwww.facebook.com/vijaybahadurranchi/twitter.com/vb_ranbpositive समाज के हर तबके में खासकर युवा हमेशा यह सवाल करते हैं कि वे अपना आदर्श किसे मानें ? युवाओं का यह सवाल जायज भी है और मौजूं भी. इस सवाल के जवाब में ज्यादातर लोग दूर देश की किसी बड़ी हस्ती का नाम बता देते हैं. इनका नाम सुनकर युवा […]

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!!विजय बहादुर !!

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www.facebook.com/vijaybahadurranchi/
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समाज के हर तबके में खासकर युवा हमेशा यह सवाल करते हैं कि वे अपना आदर्श किसे मानें ? युवाओं का यह सवाल जायज भी है और मौजूं भी. इस सवाल के जवाब में ज्यादातर लोग दूर देश की किसी बड़ी हस्ती का नाम बता देते हैं. इनका नाम सुनकर युवा तो चुप हो जाते हैं, लेकिन उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हो पाती है.

हम कभी भी अपने युवा साथियों को अपने आसपास ही आइकॉन ढूंढने की न तो सलाह देते हैं और न ही इन आइकॉन की हम चर्चा ही करते हैं. आप जहां भी हैं. उसके इर्द-गिर्द कई ऐसे होते हैं, जो खामोशी से सामाजिक बदलाव की मोटी लकीर खींचने में लगे रहते हैं, लेकिन हम अक्सर उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं. तब तक उन्हें उस सम्मान की नजर से नहीं देख पाते, जब तक उन्हें पहचान नहीं मिल जाती. नजरिये में बदलाव लाकर इस कमी को दूर करने के लिए ही आपके अपने अखबार प्रभात खबर ने अपराजिता सम्मान की श्रृंखला शुरू की है.

आपको बता दूं कि अपराजिता सम्मान क्या है? यह सम्मान सामान्य महिलाओं के असामान्य काम का है. विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं माननेवाली महिलाओं की जीवंत कहानियां हैं. अपने समाज का युवा वर्ग छोटी-मोटी परेशानियों के आगे जब घुटने टेक देता है, अपने जीवन से हार जाता है, उम्मीदें छोड़ देता है, खुद को नाउम्मीदों के समुंदर में डुबो देता है, तो ऐसे में अपराजिता सम्मान से सम्मानित आत्मविश्वासी महिलाएं उम्मीदों का दामन थामने का संदेश देती हैं.

याद कीजिए. जब पहली बार अपराजिता सम्मान से सम्मानित होने के लिए जमुना टुडू पहुंची थीं. उस दौरान जमुना टुडू खामोशी से पूर्वी सिंहभूम में जंगल बचाने का काम कर रही थीं. उनके सामने भी वहीं चुनौतियां थीं, जो दूसरों के सामने हैं. जमुना ने हार मानने की बजाय बदलाव का रास्ता चुना. आज जमुना टुडू के नाम के सामने पद्मश्री जुड़ गया है. इसी मंच से सुधा वर्गीस (जिन्हें बाद में कौन बनेगा करोड़पति में भी बुलाया गया), डॉ ऊषा किरण खान जैसी महिलाओं को भी सम्मानित किया गया, जो बाद में पद्मश्री सम्मान से भी अलंकृत हुईं. इनसे अच्छा आदर्श कौन हो सकता है. बिल्कुल सामने. खुली आंख से देखे गये सपने की तरह.

जमुना टुडू, सुधा वर्गीस, डॉ ऊषा किरण खान कुछ उदाहरण हैं. अब तक अपराजिता सम्मान हासिल करनेवाली हर एक महिला चाहे वो टैबलेट दीदियां हों, बैंक सखियां हों, बायफ की महिलाएं हों, सबके पास संघर्ष और सफलता की अपनी कहानियां हैं. अपराजिता सम्मान के जरिये इन कहानियों का सार्वजनिक पाठ होता है. इस पाठ में वे सूत्र भी शामिल होते हैं, जिन सूत्रों को दूर देश के आइकॉन की जिंदगी से हम खोजने की कोशिश करते हैं. आज के युवाओं को दिशा देने के लिए यह पाठ बहुत ही जरूरी है.

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