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क्रूड ऑयल की तरह डेटा का महत्व

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डॉ जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री jlbhandari@gmail.com बीते 13 जुलाई को अमेरिका द्वारा उपभोक्ताओं के निजी डेटा लीक करने के मामले में फेसबुक पर करीब 34 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना लगाये जाने के बाद दुनिया में डेटा सुरक्षा एवं डेटा लोकलाइजेशन (स्थानीकरण) के मुद्दे पर बहस छिड़ गयी है. दुनिया के कई विकासशील देशों में इस […]

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डॉ जयंतीलाल भंडारी

अर्थशास्त्री

jlbhandari@gmail.com

बीते 13 जुलाई को अमेरिका द्वारा उपभोक्ताओं के निजी डेटा लीक करने के मामले में फेसबुक पर करीब 34 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना लगाये जाने के बाद दुनिया में डेटा सुरक्षा एवं डेटा लोकलाइजेशन (स्थानीकरण) के मुद्दे पर बहस छिड़ गयी है.

दुनिया के कई विकासशील देशों में इस मुद्दे पर नये कानून बनाये जाने की मांग सामने आयी है. पिछले महीने जापान के ओसाका में जी-20 सम्मेलन के दौरान डेटा लोकलाइजेशन और डेटा सुरक्षा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि डेटा क्रूड आॅयल की तरह एक ऐसी संपत्ति है, जिस पर विकासशील देशों के हितों का ध्यान रखा जाना जरूरी है.

डेटा पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के हिसाब से बातचीत की जानी चाहिए. वस्तुतः डेटा लोकलाइजेशन किसी देश के नागरिकों से संबंधित डेटा को उसी देश की सीमाओं के भीतर संग्रहित करने की प्रक्रिया है. इससे उस देश की सरकार का डेटा पर बेहतर नियंत्रण रहता है, तथा उसका दुरुपयोग भी रुकता है.

बीते 26 जून को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने निर्देश जारी किया कि भारतीय उपभोक्ताओं के लेन-देन के डेटा का भारत में ही भंडारण (स्टोर) किया जायेगा.

भारत से संबंधित उपभोक्ताओं के भुगतान की प्रक्रिया यदि विदेश में होती है, तो वहां उससे संबंधित डेटा को एक कारोबारी दिन या 24 घंटे के भीतर भारत भेजा जाना जरूरी होगा, ताकि भारतीयों से संबंधित लेन-देन के डेटा को केवल भारत में ही रखा जा सके. गौरतलब है कि भारत के 30 करोड़ उपभोक्ता फेसबुक और करीब 20 करोड़ उपभोक्ता ह्वाॅट्सएप्प का उपयोग करते हैं.

विकसित देश चाहते हैं कि डेटा लोकलाइजेशन न हो, उसका स्वतंत्र उपयोग हो, जबकि भारत सहित बड़े विकासशील देश चाहते हैं कि डेटा लोकलाइजेशन हो. इन देशों का कहना है कि डेटा के देश में ही भंडारण के पीछे मकसद यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्तिगत जानकारी का संरक्षण हो सके और अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर उपभोक्ताओं का ही नियंत्रण रहे. वस्तुतः नयी वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत भविष्य में डिजिटल कारोबार तेजी से बढ़ेगा और जिस देश के पास जितना ज्यादा डेटा संरक्षण होगा, वह आर्थिक रूप से उतना मजबूत होगा.

पिछले दिनों जापान के शहर फुकुओका में आयोजित जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और दुनिया के शीर्ष वित्तीय नीति-निर्माताओं की शिखर बैठक में डिजिटल वैश्विक उद्योग-कारोबार पर डिजिटल टैक्स लगाने को लेकर आम सहमति बनी. इस सहमति के मद्देनजर डिजिटल वैश्विक व्यापार करनेवाले उद्योग-कारोबार पर एक सामान्य कराधान व्यवस्था लागू की जा सकेगी, जो सभी देशों में एक जैसी स्वीकार्य हो सकेगी.

दुनिया के अधिकतर देश डिजिटल कारोबार करनेवाले उद्यमों पर डिजिटल टैक्स लगाने का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका सहित दुनिया के कुछ विकसित देशों की प्रमुख डिजिटल कंपनियां इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं. इन कंपनियों का कहना है कि विभिन्न विकासशील देशों में डेटा स्टोर करने के लिए बड़ी धनराशि खर्च करनी होगी. साथ ही उन्हें डेटा को लेकर स्थानीय नियमों का पालन भी करना होगा.

विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर डिजिटल कारोबार करनेवाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने वास्तविक कारोबार का बड़ा भाग टैक्स बचाने के उद्देश्य से कम टैक्स आरोपित करनेवाले देशों में हस्तांतरित करती हैं.

इससे उन देशों को राजस्व की भारी हानि होती है, जहां कारोबार किया जाता है. निश्चित रूप से जिस देश में वैश्विक डिजिटल कंपनियां जो राजस्व अर्जित करें, उस पर वे संबंधित देश को टैक्स भी दें. वैश्विक डिजिटल कारोबार पर एक उपयुक्त टैक्स लगाने से भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे कई विकासशील देशों को फायदा होगा.

भारत में डेटा सुरक्षा तथा डेटा लोकलाइजेशन से जहां अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी, वहीं उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा. रोजगार के मौके बढ़ेंगे. वैश्विक डिजिटल कारोबार का लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को और आगे बढ़ा सकेगा. हाल ही में मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘डिजिटल इंडिया : टेक्नोलॉजी टू ट्रांसफॉर्म ए कनेक्टेड नेशन’ में यह तथ्य सामने आया है कि भारत डिजिटलीकरण और मल्टी नेशनल कंपनियों के माध्यम से डिजिटल कारोबार की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. भारत में करीब आधी आबादी आज इंटरनेट उपभोक्ता है.

वर्ष 2018 में भारत के स्मार्टफोन धारकों ने 12.3 अरब एप्प डाउनलोड किये थे. भारत में इंटरनेट डेटा की लागत वर्ष 2013 के बाद से 95 फीसदी कम हो चुकी है, जबकि फिक्स्ड लाइन पर डाउनलोड की रफ्तार चौगुनी हो चुकी है. इसके कारण प्रति व्यक्ति मोबाइल डेटा उपभोग सालाना 152 फीसदी बढ़ गया है.

हम आशा करें कि अमेरिका द्वारा फेसबुक पर भारी जुर्माना लगाये जाने के बाद अब करोड़ों भारतीय उपभोक्ताओं के हित में भारत सरकार जल्दी ही डेटा सुरक्षा और डेटा लोकलाइजेशन पर एक नया कानून लायेगी.

उम्मीद करें कि जिस तरह से फ्रांस ने अमेरिकी सरकार के भारी विरोध के बावजूद फेसबुक, एप्पल, अमेजन जैसी कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगा दिया है, उसी प्रकार भारत सरकार भी भारतीय उपभोक्ताओं का डेटा इस्तेमाल करनेवाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगायेगी. हम यह जरूर आशा करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठायी गयी बात की एक दिन सार्थक परिणति होगी.

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