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नयी दिल्ली : भारत में नकली सामान बनाकर बाजार में खपाने वाले नकलचियों का अब भी बोलबाला कायम है. आलम यह है कि नकली उत्पादों के कारण घरेलू अर्थव्यवस्था को हर साल करीब एक हजार अरब रुपये यानी 14.70 अरब डॉलर के राजस्व का नुकसान होता है. प्रमाणन संबंधी समाधान मुहैया कराने वाली स्वयंसेवी संस्था […]

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नयी दिल्ली : भारत में नकली सामान बनाकर बाजार में खपाने वाले नकलचियों का अब भी बोलबाला कायम है. आलम यह है कि नकली उत्पादों के कारण घरेलू अर्थव्यवस्था को हर साल करीब एक हजार अरब रुपये यानी 14.70 अरब डॉलर के राजस्व का नुकसान होता है. प्रमाणन संबंधी समाधान मुहैया कराने वाली स्वयंसेवी संस्था ‘ऑथेंटिकेशन सॉल्यूशंस प्रोवाइडर एसोसिएशन (एएसपीए)’ ने उत्पादों की जालसाजी को लेकर जारी अपनी रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं में यह जानकारी दी है.

दवा हो या दारू, मिठाइयां हों या पेय पदार्थ, कपड़े-जूते हों या इलेक्ट्रिक उपकरण, हर प्रकार के उत्पादों की जालसाजी हो रही है. इस तरह के नकली उत्पादों से न सिर्फ लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि सरकारी खजाने को भी चूना लगता है. रिपोर्ट के अनुसार, नकली उत्पादों से भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना एक हजार अरब रुपये तक का नुकसान होता है.

एएसपीए ने एक बयान में कहा कि वर्ष 2019 में जनवरी से अक्टूबर के दौरान उत्पादों की नकल 15 फीसदी बढ़ी है. राज्यवार देखें, तो उत्तरप्रदेश इस तरह की जालसाजी में सबसे ऊपर है. इसके बाद बिहार, राजस्थान, झारखंड, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब और गुजरात का स्थान है. एएसपीए के अनुसार, 2018 और 2019 में सबसे अधिक कारोबार नकली शराब का हुआ. इसके बाद खाद्य एवं पेय पदार्थ, दवा, एफएमसीजी, दस्तावेज, तंबाकू, वाहन, निर्माण सामग्री तथा रसायन के उत्पादों की सर्वाधिक नक्काली हुई.

नकली मुद्रा के 25 फीसदी मामले सिर्फ पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से रहे. शराब के मामले में 65 फीसदी नक्काली उत्तरप्रदेश और झारखंड में हुई. खाद्य पदार्थों में मिलावट के 50 फीसदी से अधिक मामले उत्तरप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में पाये गये. नकली दवाओं के 50 फीसदी मामले उत्तरप्रदेश और बिहार के रहे. एएसपीए के अध्यक्ष नकुल पश्रिचा ने कहा कि कुल वैश्विक व्यापार में नकली उत्पादों की 3.3 फीसदी हिस्सेदारी है. उन्होंने कहा कि यह वैश्विक स्तर पर कंपनियों के साथ ही सरकारों के लिए भी चुनौती बन गया है.

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