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क्या आपका बच्चा बिस्तर गीला करता है? जानें क्या है कारण?

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-डॉसंदीप कुमार सिन्हा- नवजात शिशु और छोटे बच्चे तो रात में भी 1-2 पेशाब करते हैं, क्योंकि इनमें मस्तिष्क और ब्लैडर (मूत्राश्य) के मध्य संबंध पूरी तरह से निर्मित नहीं होता है. लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, यह संबंध विकसित हो जाता है. जिसके बाद मस्तिष्क, ब्लैडर को नियंत्रित करने लगता है, जिससे यूरिन […]

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-डॉसंदीप कुमार सिन्हा-

नवजात शिशु और छोटे बच्चे तो रात में भी 1-2 पेशाब करते हैं, क्योंकि इनमें मस्तिष्क और ब्लैडर (मूत्राश्य) के मध्य संबंध पूरी तरह से निर्मित नहीं होता है. लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, यह संबंध विकसित हो जाता है. जिसके बाद मस्तिष्क, ब्लैडर को नियंत्रित करने लगता है, जिससे यूरिन पास करने की जरूरत होने पर मस्तिष्क अलर्ट हो जाता है और नींद खुल जाती है. लेकिन बहुत से बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता है, किशोर उम्र में भी नींद में अक्सर ब्लैडर पर उनका नियंत्रण नहीं रहता और वे बिस्तर पर ही पेशाब कर देते हैं. जानिए क्यों होती है यह समस्या और कैसे इससे निपटा जाये-


नॉकटर्नल एनुरेसिस

रात में बिस्तर गीला करने की समस्या को चिकित्सीय भाषा में नॉकटर्नल एनुरेसिस कहते हैं. यह समस्या पांच साल तक के बच्चों में अक्सर देखी जाती है, लेकिन कईं बच्चों में पांच साल के बाद भी यह समस्या बनी रहती है. कुछ बच्चों का तो किशोर उम्र तक ब्लैडर पर नियंत्रण विकसित नहीं हो पाता. हालांकि अधिकतर मामलों में नॉकटर्नल एनुरेसिस की समस्या अपने आप ठीक हो जाती है और उपचार की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन कुछ मामलों में उपचार जरूरी हो जाता है. वैसे यह गंभीर समस्या नहीं है, लेकिन बच्चे और माता-पिता दोनों के लिए यह एक तनावपूर्ण स्थिति होती है.

आंकड़ों की मानें तो 5 साल तक के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे रात में बिस्तर गीला कर देते हैं, जबकि सात साल तक के 10 प्रतिशत बच्चों में यह समस्या होती है. 1-3 प्रतिशत बच्चे किशोर उम्र तक नॉकटर्नल एनुरेसिस से परेशान रहते हैं. लड़कों में यह समस्या लड़कियों की तुलना में 2-3 गुना अधिक होती है. दरअसल नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में, मस्तिष्क और ब्लैडर में जो लिंक है वो पूरी तरह बन नहीं पाता है; जब ब्लैडर को ऐसा महसूस होता है कि वो पूरा भर गया है तो वो खाली होने के लिए यूरिन पास करता है. जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, मस्तिष्क और ब्लैडर में संबंध विकसित हो जाता है. इससे बच्चे के लिए ब्लैडर को खाली करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करना संभव होता है. सामान्यता यह नियंत्रण दिन के समय के लिए पहले विकसित होता है, फिर रात के लिए.

नॉकटर्नल एनुरेसिस के प्रकार
नॉकटर्नल एनुरेसिस की समस्या दो प्रकार की होती है.

प्राइमरी एनुरेसिस
इसमें बच्चे का ब्लैडर पर नियंत्रण नहीं होता और वो हमेशा बिस्तर गीला कर देता है.

सेकंडरी एनुरेसिस
जब बच्चों का कभी ब्लैडर पर नियंत्रण रहता है, कभी नहीं रहता तो इसे सेकंडरी एनुरेसिस कहते हैं. अगर किशोरावस्था में आपके बच्चे को यह समस्या है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं. इस उम्र में इसका कारण युरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, न्युरोलॉजिकल समस्या (मस्तिष्क से संबंधित), तनाव या कोई और स्वास्थ्य समस्या हो सकती है.

क्या हैं कारण
हालांकि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यह समस्या क्यों होती है, ऐसा माना जाता है कि रात के समय निम्न तीन क्षेत्रों में असामान्य स्थिति के कारण यह समस्या होती है.

ब्लैडर
रात के समय ब्लैडर में कम स्थान होना.

किडनी
रात में यूरिन अधिक बनना.


मस्तिष्क

रात में उठ नहीं पाना.

अन्य रिस्क फैक्टर्स
अनुवांशिक कारण

इसमें अनुवांशिक कारण भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं, अगर माता-पिता में से एक को 5 साल के बाद नॉकटर्नल एनुरेसिस था तो उनके बच्चे में इसके होने की आशंका 40 प्रतिशत और अगर यह समस्या दोनों को थी तो उनके बच्चों में इसकी आशंका लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी.


तनाव

तनाव सेकंडरी एनुरेसिस का यह एक सबसे महत्वपूर्ण कारण है. नये घर या स्कूल में शिफ्ट होने, माता-पिता के अलगाव, माता या पिता या किसी परिजन की मृत्यु या जीवन की कोई घटना बच्चों के मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है और वो तनावग्रस्त हो जाते हैं. इससे बच्चे रात में बिस्तर गीला करने लगते हैं, तनाव को दूर करने के उपायों के द्वारा इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.

स्लीप पैटर्न गड़बड़ा जाना
किशोरावस्था में बहुत गहरी नींद आती है इसके कारण नॉकटर्नल एनुरेसिस हो जाता है. पढ़ाई या निजी तनाव के कारण स्लीप पैटर्न गड़बड़ाने या कम सोने से भी यह समस्या हो जाती है.

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया/ स्नोरिंग

बहुत कम मामलों में ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया/ स्नोरिंग के कारण यह समस्या हो जाती है. जिन बच्चों को यह समस्या होती है उनका एयरवे आंशिक रूप से ब्लॉक हो जाता है और रात में नींद में कुछ सेकंड्स के लिए उनकी सांसे रूक जाती हैं. इससे मस्तिष्क में रसायनों का संतुलन गड़बड़ा जाता है, जिससे नॉकटर्नल एनुरेसिस ट्रिगर हो सकता है.

कब्ज
ब्लैडर (मूत्राश्य) और बॉउल (बड़ी आंत का अखरी हिस्सा) बहुत पास-पास होते हैं. अगर कब्ज के कारण बॉउल फूलता है तो ब्लैडर पर दबाव पड़ता है और इससे बच्चे का ब्लैडर पर से नियंत्रण हट सकता है. कब्ज का उपचार करने से कईं बार इस समस्या से छुटकारा मिल जाता है.

ब्लैडर या किडनी रोग
अगर बच्चे को दिन और रात दोनों समय ब्लैडर पर नियंत्रण रखना कठिन होता है और मूत्र तंत्र से संबंधित दूसरी समस्याएं होती हैं जैसे यूरिन पास करते समय दर्द होना या बार-बार यूरिन पास करने जाना तो इसका कारण ब्लैडर या किडनी से संबंधित कोई रोग हो सकता है.

न्युरोलॉजिकल समस्याएं

गर्भावस्था में बच्चे के विकास के दौरान स्पाइनल कार्ड से संबंधित समस्याओं के कारण नॉकटर्नल एनुरेसिस की समस्या हो सकती है. लेकिन ऐसा बहुत ही दुर्लभ मामलों में होता है.


उपचार

अगर बच्चे को यह समस्या तनाव या किसी और स्वास्थ्य समस्या के कारण है तो पहले उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है. कईं तरीके हैं जिससे नॉकटर्नल एनुरेसिस को कम किया जा सकता है या रोका जा सकता है.

बेड वीडिंग अलार्म
अनुसंधानों में यह बात सामने आयी है कि जो बच्चे एनुरेटिक (बेडवेटिंग) अलार्म का इस्तेमाल करते हैं उनमें से लगभग आधे बच्चे कुछ सप्ताह पश्चात रात में बिस्तर गीला नहीं करते हैं. जैसे ही बच्चे का अंडरवियर गीला होता है, अलार्म बजने लगता है. समय के साथ मस्तिष्क इस बात के लिए प्रशिक्षित हो जाता है कि अलार्म बजने पर उठकर यूरिन पास करने के लिए जाना है. इसमें परिवार के सदस्यों को भी सक्रिय रूप से भाग लेना होता है ताकि अलार्म बजने पर बच्चे को पूरी तरह उठाकर बाथरूम भेजें.वापस आ जाती है.


माता-पिता के लिए टिप्स

बच्चे को ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने दें जिसमें कैफीन, नमक और शुगर की मात्रा अधिक होती है, विशेषकर शाम के समय.
अपने बच्चे को दिन के समय नियमित रूप से (प्रत्येक दो या तीन घंटे में) और बिस्तर पर जाने के ठीक पहले यूरिन पास करने के लिए प्रेरित करें.
रात में एक बार बच्चे को यूरिन पास करने के लिए उठाएं, लेकिन एक बार से अधिक नहीं क्योंकि इससे उसकी नींद खराब हो जाएगी.

अगर बच्चा रात को कहीं रूक रहा है तो उसे डिस्पोज़ेबल अंडरपेंट्स पहनाएं और उसके ऊपर बॉक्सर शार्ट्स. किसी जिम्मेदार व्यक्ति से इस समस्या के बारे में चर्चा भी करें ताकि वो बच्चे की निजीतौर पर सहायता कर सके.

(डॉक्टर रेनबोचिल्ड्रन्सहॉस्पिटल,नयीदिल्ली केसीनियरकंसल्टेंट-पीडियाट्रिकसर्जरी हैं)

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