17.1 C
Ranchi
Sunday, February 23, 2025 | 04:46 am
17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

हम उद्वेलित क्यों नहीं होते

Advertisement

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in हैदराबाद में 26 वर्षीया महिला डॉक्टर के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद जला कर उनकी हत्या और रांची में लॉ की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है, लेकिन दुष्कर्म की घटनाएं थमीं नहीं हैं. उसके बाद पश्चिम […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
हैदराबाद में 26 वर्षीया महिला डॉक्टर के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद जला कर उनकी हत्या और रांची में लॉ की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है, लेकिन दुष्कर्म की घटनाएं थमीं नहीं हैं.
उसके बाद पश्चिम बंगाल के कालीघाट से भी दो किशाेरियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म की खबर सामने आयी है. हर रोज देश के किसी-न-किसी हिस्से से महिलाओं से दुष्कर्म की खबरें सामने आती हैं. ऐसा लगता है कि सन् 2012 में निर्भया के साथ दुष्कर्म और हत्या के बाद उत्पन्न आक्रोश और जनप्रदर्शनों के बाद भी कुछ नहीं बदला है. दुर्भाग्य यह है कि इन घटनाओं को लेकर देशभर में वैसी प्रतिक्रिया देखने में नहीं मिली, जो दिखाई देनी चाहिए. हैदराबाद में निर्भया जैसी घटना होने के बाद भी पूरा समाज उद्वेलित नहीं हैं. लोग सड़कों पर बड़ी संख्या में नहीं उतरे हैं.
ये घटनाएं सभ्‍य समाज को शर्मसार करने वाली हैं. चिंता की बात है कि दोनों घटनाएं किसी दूरदराज के इलाके में घटित नहीं हुईं हैं, बल्कि दो राज्यों की राजधानियों में हुईं हैं. तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक डॉक्टर की गैंगरेप के बाद हत्‍या कर दी गयी. इसके बाद आरोपी उनके शव को ट्रक में डाल कर घूमते रहे. फिर सुनसान जगह देख कर शव को आग के हवाले कर दिया. वहीं, रांची में लॉ की एक छात्रा को अगवा कर आरोपियों ने अपने दोस्तों को बुलाया और उसके साथ गैंगरेप किया, जबकि झारखंड में इन दिनों विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और कड़ी सुरक्षा का इंतजाम है. हर जगह पुलिस तैनात है.
नाकों पर पुलिस चेकिंग चल रही है. इसके बावजूद आरोपियों ने इस घटना को अंजाम दिया. इससे स्पष्ट है कि आरोपियों को कानून का कोई डर नहीं है. दोनों घटनाओं ने महिला सुरक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं. या यूं कहें कि एक तरह से यह जिम्मेदारी स्वयं महिलाओं पर ही आ गयी है कि उन्हें अपनी सुरक्षा का खुद ख्याल रखना है, जबकि भारत के संविधान ने महिलाओं को अनेक अधिकार दिये हैं, ताकि उनकी गरिमा बरकरार रहे, लेकिन इन सब बातों के बावजूद देश में महिलाओं की स्थिति अब भी मजबूत नहीं है. उन्हें अक्सर निशाना बनाया जाता है.
यूं तो भारतीय परंपरा में महिलाओं को उच्च स्थान दिया गया है. हर वर्ष नौ दिनों तक नारी शक्ति की प्रतीक देवी की उपासना की जाती है और उन्हें पूजा जाता है. कई राज्यों में कन्या जिमाने और उनके पैर पूजने की भी परंपरा है.
एक तरह से यह त्योहार समाज में नारी के महत्व और सम्मान को रेखांकित करता है, लेकिन वास्तविकता में आदर का यह भाव समाज में केवल कुछ समय तक ही रहता है. महिला उत्पीड़न की घटनाएं बताती हैं कि हम जल्द ही इसे भुला देते हैं. देश में बच्‍चियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन शोषण और छेड़छाड़ के बढ़ते मामले इस बात के गवाह हैं. इन मामलों को बेहतर ढंग से सुलझाने के लिए भारत में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस यानी पॉक्सो एक्ट बनाया गया. पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों और बच्चियों को दुष्कर्म, यौन शोषण और पॉर्नोग्राफी जैसे मामलों में सुरक्षा प्रदान की जाती है. इस कानून के तहत आरोपी को सात साल या फिर उम्र कैद की सजा का प्रावधान है.
कहने का आशय यह कि हमारे पास एक मजबूत कानून है. बावजूद इसके ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही हैं. अभिनेता अनुपम खेर ने ट्वीट करके दुष्कर्म की घटनाओं पर क्षोभ व्यक्त किया है. साथ ही उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से अनुरोध किया है कि दुष्कर्म करने वालों के लिए मौत की सजा दिये जाने संबंधी कानून जल्द लाया जाए.
दुष्कर्म के मामलों की जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अक्सर ऐसे अपराध दोस्तों या रिश्तेदारों द्वारा किये जाते हैं, जो पीड़िता को झूठे वादे कर बरगलाते हैं, फिर गलत काम करते हैं. कई बार ऐसे अपराध अज्ञात लोग करते हैं और पुलिस की पहुंच से बच निकलते हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दुष्कर्म से पीड़ित महिला स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती है और जीवनभर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है, जो उसने किया ही नहीं होता है. दरअसल, यह केवल कानून व्यवस्था का मामला भर नहीं है. यह हमारे समाज की सड़न का प्रगटीकरण भी है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2017 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में दुष्कर्म के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए. इसके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश का, जहां दुष्कर्म के 4,500 से ज्यादा मामले दर्ज हुए.
गैंगरेप के मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है और दूसरे नंबर पर राजस्थान है. एनसीआरबी के अनुसार, 2016 में भारतीय अदालतों में दुष्कर्म के 18,552 मामलों पर फैसला सुनाया गया. इनमें 4,739 मामलों में सजा हुई और 13,813 मामलों में आरोपी बरी हो गये. बहुत कम मामलों में सजा होना और बड़ी संख्या में आरोपियों का छूट जाना बेहद चिंताजनक हैं. एक और चिंताजनक पहलू है कि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है, जिसमें बच्चियों को निशाना बनाया जा रहा है.
यह सही है कि दुष्कर्म के मामलों में शिकायतें दर्ज होना शुरू हो गयी हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि अब भी कई अभियुक्त रिहा हो जाते हैं. कुछ समय पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने प्लान इंडिया की ओर से तैयार की गयी रिपोर्ट में बताया था कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और देश की राजधानी दिल्ली महिला सुरक्षा के मामले में फिसड्डी हैं.
दरअसल, समस्या यह है कि हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है, जिसमें बचपन से ही यह बात बच्चों के मन में स्थापित कर दी जाती है कि लड़का, लड़की से बेहतर है. इन बातों के मूल में यह धारणा है कि परिवार और समाज का मुखिया पुरुष है और महिलाओं को उसकी व्यवस्थाओं को पालन करना है. यह सही है कि परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है, लेकिन अब भी ऐसे परिवारों की संख्या कम है, जिनमें बेटे और बेटी के बीच भेदभाव नहीं किया जाता है. यह भेदभाव सार्वजनिक जीवन में प्रकट होने लगता है.
हमें महिलाओं के प्रति समाज में सम्मान की चेतना जगानी होगी. इसके लिए सामाजिक आंदोलन चलाने होंगे, अन्यथा सारे प्रयास बेमानी साबित होंगे. सबसे बड़ी जिम्मेदारी परिवार के बुजुर्गों, खास कर माता-पिता की है कि वे नवयुवकों को बचपन से ही महिलाओं का आदर करना सिखाएं, तभी परिस्थितियों में कोई सुधार लाया जा सकता है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें