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रावण वध के बाद बिहार के इस मंदिर में पूजा करने आये थे श्रीराम

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राजधानी पटना से सटे खुसरूपुर प्रखंड अतर्गत बैकटपुर गांव में स्थित है प्राचीनकाल का ऐतिहासिक शिवमंदिर. यह श्रीगौरीशंकर बैकुण्ठधाम के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर की खासियत भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के साथ माता पार्वती का भी विराजमान होना है. साथ ही छोटे-छोटे कुल 108 ज्योर्तिलिंग भी यहां देखने को मिलते हैं. शिव व पार्वती दोनों का शिवलिंग के रूप में होना इस मंदिर को अन्य दूसरे मंदिरों से अलग बनाता है.

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से लेकर जरासंध और फिर राजा मानसिंह तक की घटनाओं से जुड़े होने के कारण इस मंदिर की विशेष प्रसिद्धि है. सावन माह में इस मंदिर में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ के अलावा अन्य सामान्य दिनों में भी भारी संख्यां में लोगों को यहां पूजा-पाठ के लिए जुटे हुए देखा जा सकता है. काशी में बाबा विश्वनाथ और देवघर में बाबा बैधनाथ धाम के बीच इस मंदिर को बिहार का बाबाधाम भी कहा जाता है.

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रावण वध के बाद बिहार के इस मंदिर में पूजा करने आये थे श्रीराम 2

रामायण में भी है श्रीगौरीशंकर बैकुण्ठधाम का जिक्र

वर्तमान का बैकटपुर गांव प्राचीनकाल में गंगा के तट पर बसा क्षेत्र बैकुं‍ठ वन के नाम से जाना जाता था. आनंद रामायण में इस क्षेत्र को बैकुंठा नाम से बताया गया है. कहा जाता है कि लंका विजय के बाद रावण को मारने से श्रीराम को ब्राह्मण ह‍त्या का पाप लगा था. उस पाप से मुक्ति के लिए श्रीराम ने इस मंदिर में आकर पूजा की थी.

जरासंध को मिली थी असीम शक्ति

मान्यताओं के अनुसार, महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश जरासंध भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था. वह रोजाना तब भगवान शिव की पूजा करने राजगृह से यहां आता था. किवदंतियों के अनुसार इसी बैकुण्ठ नाथ के आशीर्वाद से जरासंध को मारना असंभव था.

जरासंध अपनी बांह पर शिवलिंग की आकृति का बांधा करता था ताबीज

कहा जाता है कि जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहना करता था. भगवान शंकर का उसे वरदान था कि जब तक उसके बांह पर वह शिवलिंग रहेगा, तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता है. कहते हैं कि जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया और तब ही उसे मारा जा सका. जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को जिस जगह पर फेंका गया, उसे कौड़िया खाड़ कहा गया था

राजा मानसिंह से भी जुड़ी है मंदिर की कहानी

अकबर के प्रधान सेनापति रहे राजा मानसिंह जब जलमार्ग से बंगाल विद्रोह को खत्म करने सपरिवार रनियासराय जा रहे थे, उसी वक्त राजा मानसिंह की नौका कौड़िया खाड़ में फंस गयी थी. तमाम प्रयासों के बावजूद जब नाव नहीं निकली, तो मानसिंह को रात वहीं गुजारनी पड़ी. कहा जाता है कि उसी रात को राजामान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और वहां जर्जर पड़े मंदिर को फिर से स्थापित करने को कहा. मानसिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद अपनी यात्रा शुरू की. इसके बाद बंगाल में उन्हें विजय भी प्राप्त हुई.

मंदिर का वर्तमान में जो स्वरूप देखा जा सकता है वह राजा मानसिंह द्वारा ही बनाया गया है. बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत कई नेताओं की आस्था इस मंदिर में रही है. ये नेता इस मंदिर में पूजा करने अक्सर जाते हैं.

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