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ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी हैं मां ब्रह्मचारिणी, नवरात्र के दूसरे दिन ऐसे करें माता की पूजा

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महालक्ष्मी,महासरस्वती,शिव,विष्णु,ब्रह्मा के समानधर्मा रूप हो जाते हैं.कहीं-कहीं आद्यादेवी महालक्ष्मी को मानकर उन्हीं से काली,लक्ष्मी,और स्वरस्वती का प्रादुर्भाव माना गया है-

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दधाना करपद्माभ्याम्

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अक्षमाला कमण्डलू ।

देवी प्रसीदतुमयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

जो दोनों करकमलोंमें अक्षमाला और कमण्डलू धाऱण करती हैं,वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गादेवी मुझपर प्रसन्न हों.

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद-2

वासंतिक नवरात्र के दूसरे दिन भगवती दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजी जाती है.

नैवेद्य के रूप में दूध,चीनी व कोकरस चढ़ाया जाता है. इससे दीर्घायु, सिद्धि व कार्य में विजय प्राप्त होता है.शक्ति स्वरूपिणी मां के शक्ति की महिमा पर प्रकाश डालते हुए शास्त्रों में कहा गया है-

वर्तते सर्वभूतेषु शक्तिः सर्वात्मना नृप ।

शववच्छक्तिहीनस्तु प्राणी भवति सर्वदा ।।

समस्त भूतों में सर्वरूप से शक्ति विद्यमान है. शक्ति के बिना प्राणी सर्वदा शव के समान हो जाता है.शक्ति एक ही है.आराधकों के गुण-कार्य-भेद से उसके महाकाली, महालक्ष्मी,महासरस्वती,शिव,विष्णु,ब्रह्मा के समानधर्मा रूप हो जाते हैं.कहीं-कहीं आद्यादेवी महालक्ष्मी को मानकर उन्हीं से काली,लक्ष्मी,और स्वरस्वती का प्रादुर्भाव माना गया है-

गणेशजननी दुर्गा राधा लक्ष्मीः सरस्वती ।

सावित्री च सृष्टिविधौ प्रकृतिः पंचधा स्मृता ।।

देवी ने स्वयं कहा है-मैं ही बुद्धि,श्री,कीर्ति,गति,श्रद्धा,मेधा,दया,लज्जा,क्षुधा,तृष्णा एवं क्षमा हूँ.कान्ति,शान्ति,स्पृहा,मेधा,शक्ति और अशक्ति भी मैं ही हूँ.संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है,जिसमें मेरी सत्ता न हो.जो कुछ दिखायी देता है वह सब मेरा ही रूप है

देवीभागवतमें भी भगवती को सगुण-निर्गुण उभय रूपसे स्वीकार किया गया है.अन्यत्र भी भगवती को-

सा च ब्रह्मस्वरूपा च नित्या सा च सनातनी।

यथात्मा च तथा शक्तिर्यथासौ दाहिका स्थिता।।

उसी शक्ति को विभिन्न दृष्टियोंसे विद्वानोंने स्वीकार किया है-अर्थात् कोई इसे तप कहते हैं,कोई तम,जड,ज्ञान, माया, प्रधान, प्रकृति, शक्ति, अजा, विमर्श,अविद्या कहते हैं.

प्रस्तुति-डॉ.एन.के.बेरा

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