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भरोसे का साथी है अखबार

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एक फेक न्यूज यह भी चली कि अखबारों से कोरोना फैल सकता है, जबकि देश-दुनिया के जानेमाने स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं. अब तक ऐसी कोई घटना भी सामने नहीं आयी है. संकट के इस दौर में यह साफ हो गया है कि खबरों की विश्वसनीयता के मामले में अखबार सबसे भरोसेमंद हैं.

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आशुतोष चतुर्वेदी

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प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

कोरोना वायरस के संकट से भारत सारी दुनिया जूझ रही है. संकट के इस दौर में सभी मीडियाकर्मी मुस्तैदी से अपने काम में लगे हैं. अपने आप को जोखिम में डाल कर हम अपने पाठकों तक विश्वसनीय खबरें पहुंचाने का काम कर रहे हैं. इस समय एहसास हो रहा है कि सोशल मीडिया पर कितनी फेक न्यूज चल रही हैं या यूं कहें कि फेक न्यूज की भरमार है. कोरोना को लेकर फेक वीडियो, फेक फोटो और फेक खबरों की जैसे बाढ़ आ गये है. आम आदमी के लिए यह अंतर कर पाना बेहद कठिन है कि कौन-सी खबर सच है और कौन-सी फेक. माना जा रहा है कि 2020 में यदि सबसे बड़ी कोई चुनौती हमारे सामने है, तो वह फेक न्यूज की है. कोरोना महामारी के इस दौर में यह बात स्पष्ट हो गयी है.

हाल में कोरोना वायरस को लेकर अनेक फेक खबरें आयी हैं. इनमें कई लाशों वाली इटली शहर की एक भयावह तस्वीर है, जबकि यह एक फिल्म कांटेजियन का दृश्य है. ऐसी भी तस्वीर सामने आयी है, जिसमें कई लोग जमीन पर पड़े चिल्ला रहे हैं. इसे कभी इटली, तो कभी चीन के कोरोना वायरस से संबंधित दृश्य के रूप में दिखाया जा रहा है, जबकि यह 2014 के एक आर्ट प्रोजेक्ट की तस्वीर है. इसी तरह की एक और फेक न्यूज चल रही है, जिसमें एक पति-पत्नी को दिखाया जा रहा है कि वे 134 कोरोना पीड़ितों का इलाज के दौरान संक्रमित हो गये, जबकि यह तसवीर किसी डॉक्टर दंपती की नहीं, बल्कि एयरपोर्ट पर खींची गयी पति-पत्नी की तसवीर है. एक अन्य फेक न्यूज में कोरोना की दवा निकल जाने का दावा किया जा रहा है.

फेक न्यूज ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी अपना शिकार बनाया है. यूनिसेफ के नाम पर यह जानकारी सोशल मीडिया पर फैलायी गयी कि आइस्क्रीम और दूसरी ठंडी चीजों का सेवन न करने से वायरस से बचा जा सकता है. यूनिसेफ डिप्युटी एग्जिक्यूटिव फॉर पार्टनरशिप्स चारलोटे पेट्री गोरनिटज्का को बयान जारी करना पड़ा कि यह झूठ है और यूनिसेफ ने ऐसी किसी भी जानकारी को शेयर नहीं किया है. फेक न्यूज ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को नहीं बख्शा. सोशल मीडिया पर खबर वायरल हो गयी कि मोदी फाइनेंशियल इमरजेंसी घोषित करेंगे.

फेक न्यूज ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों को भी अपना शिकार बनाया है. यूनिसेफ के नाम पर यह जानकारी सोशल मीडिया पर फैलायी गयी कि आइस्क्रीम और दूसरी ठंडी चीजों का सेवन न करने से वायरस से बचा जा सकता है. यूनिसेफ डिप्युटी एग्जिक्यूटिव फॉर पार्टनरशिप्स चारलोटे पेट्री गोरनिटज्का को बयान जारी करना पड़ा कि यह झूठ है और यूनिसेफ ने ऐसी किसी भी जानकारी को शेयर नहीं किया है. फेक न्यूज ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को नहीं बख्शा. सोशल मीडिया पर खबर वायरल हो गयी कि मोदी फाइनेंशियल इमरजेंसी घोषित करेंगे.

पीआइबी को खबर का खंडन करने के लिए ट्वीट करना पड़ा कि ये फेक है. एक फेक न्यूज यह भी चली कि अखबारों से कोरोना वायरस फैल सकता है, जबकि देश-दुनिया के जानेमाने स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं. अब तक कोई ऐसी घटना भी सामने नहीं आयी है, जिसमें अखबारों से वायरस के प्रसार का जिक्र हो. संभवत: यह खबरों के एक विश्वसनीय स्रोत अखबारों को चोट पहुंचाने के लिए प्रचारित किया गया है. आम लोगों के पास अखबार से बढ़ कर भरोसेमंद माध्यम कोई नहीं है, जो खबरों को छापने के पहले तथ्यों की जांच-परख करता है.

बीबीसी ने फेक न्यूज को लेकर भारत सहित कई देशों में अध्ययन किया है. इस रिपोर्ट के अनुसार लोग बिना खबर या उसके स्रोत की सत्यता जांचे सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर उसका प्रचार प्रसार करते हैं. भारत में एक अच्छी बात यह है कि जिन संदेशों से कोई हिंसा हो सकती है, अधिकांश भारतीय उसे शेयर करने में झिझकते हैं, पर लोग राष्ट्रवादी भावना से भरे संदेशों को जम कर साझा करते हैं. मिसाल के तौर पर आपके व्हाट्सएप ग्रुप में भी ऐसे मैसेज आते होंगे- सभी भारतीयों को बधाई.

यूनेस्को ने भारतीय करेंसी को सर्वश्रेष्ठ करेंसी घोषित किया है, जो सभी भारतीय लोगों के लिए गर्व की बात है. इस तरह के मैसेज फेक होते हैं, पर उन्हें आगे बढ़ाने वाले लोग सोचते हैं कि यह राष्ट्र प्रेम की बात है और इसे आगे बढ़ाना चाहिए. देश में फेक न्यूज को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. नेशनल क्राइम ब्यूरो ने पहली बार फेक न्यूज फैलाने को भी अपराध की श्रेणी में मानते हुए उससे जुड़े आंकड़ों को प्रकाशित किया है.

ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में फेक न्यूज को लेकर कुल 257 मामले दर्ज किये गये हैं. मप्र में फेक न्यूज और अफवाह फैलाने के सबसे अधिक 138 मामले दर्ज किये गये, जबकि उप्र में 32, केरल में 18 और जम्मू कश्मीर में चार मामले ही दर्ज किये गये. फेक न्यूज को लेकर नेशनल क्राइम ब्यूरो ने ऐसे मामलों को शामिल किया है जो आईपीसी की धारा 505 और आईटी एक्ट के तहत दर्ज किये गये हैं. फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी जटिल होती जा रही है, क्योंकि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

अभी भारत की 27 फीसदी आबादी यानी लगभग 35 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. दरअसल, भारत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है. विभिन्न स्रोतों से मिले आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में व्हाट्सएप के एक अरब से अधिक सक्रिय यूजर्स हैं. इनमें से 16 करोड़ भारत में ही हैं. फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 15 करोड़ है और ट्विटर अकाउंट्स की संख्या 2 करोड़ से ऊपर है. लगभग 40 करोड़ भारतीय आज इंटरनेट सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं.

यह बहुत बड़ी संख्या है. हमें करना यह चाहिए कि कोई भी सनसनीखेज खबर की एक बार जांच अवश्य करें ताकि हम फेक न्यूज शिकार होने से बच सकें. मैं जानता हूं कि यह करना आसान नहीं है. इससे कैसे निपटा जाए यह अपने आप में बड़ी चुनौती है. दूसरी ओर अखबारों की ओर नजर दौड़ाएं. आज भी वे सूचनाओं के सबसे विश्वसनीय स्रोत हैं. अखबार अपनी छपी खबर से पीछे नहीं हट सकता है. अखबार की खबरें काफी जांच पड़ताल के बाद प्रकाशित की जाती हैं. कोरोना के कारण उत्पन्न संकट के इस दौर में यह साफ हो गया है कि खबरों की विश्वसनीयता के मामले में अखबार सबसे भरोसेमंद हैं.

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