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मदद करना मानवता है

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खुद को जाने बिना दुनिया को जानने का प्रयास वांछित फल नहीं देता है. मूल को जानेंगे, तभी विराट को जानना आसान होगा. क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा अर्थात पंच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से निर्मित हर मनुष्य जब तक इन मूल तत्वों की प्रकृति से खुद को नहीं जोड़ेगा और अच्छी तरह जानेगा नहीं, तब तक उसे खालीपन, असंतुलन और अपूर्णता का एहसास होता रहेगा.

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मिलन सिन्हा

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मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट

hellomilansinha@gmail.com

खुद को जाने बिना दुनिया को जानने का प्रयास वांछित फल नहीं देता है. मूल को जानेंगे, तभी विराट को जानना आसान होगा. क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा अर्थात पंच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से निर्मित हर मनुष्य जब तक इन मूल तत्वों की प्रकृति से खुद को नहीं जोड़ेगा और अच्छी तरह जानेगा नहीं, तब तक उसे खालीपन, असंतुलन और अपूर्णता का एहसास होता रहेगा.

अगर हम प्रकृति को ठीक से जानें-समझें और उसकी रीति-नीति का अनुसरण करें, तो सदाशयता-उदारता के भाव से भरते जायेंगे. धीरे-धीरे आर्ट ऑफ गिविंग में भी पारंगत होते जायेंगे. ऐसे देखा जाये, तो मानव का मूल स्वभाव प्रकृति के समान ही है. जियो और जीने दो का सिद्धांत. उसमें दूसरे को मदद करने का भाव विद्यमान होता है. बेशक कई तरह के प्रदूषण के कारण व्यवहार में वे वैसा नहीं कर पाते. गुरुजन कहते हैं कि जरूरतमंदों की सहायता करना हर धर्म का मूल आधार है और मानव के आत्मविकास की पूर्व शर्त.

जिस व्यक्ति में सहयोग-सेवा का भाव भरा होता है, वह अन्य मानवीय गुणों से संपन्न होता जाता है. वह जरूरतमंदों की मदद करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देता है. यह निष्काम कर्म से प्रेरित कार्य है, अर्थात मदद के कार्य में न तो दिखाने की बात होती है और न ही उसके एवज में कुछ पाने की. हमारे वेदों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में इससे जुड़ी अनेक शिक्षाप्रद बातें दर्ज हैं, जिनसे अनेक लोग प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं.

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि लोगों के दर्शन और धर्म में कितना ही भेद क्यों न हो, जो व्यक्ति अपना जीवन दूसरों के लिए अर्पित करने को उद्दत रहता है, उसके प्रति समग्र मानवता श्रद्धा और भक्ति से नत हो जाती है. सभी उपासनाओं का यही धर्म है कि मनुष्य शुद्ध रहे तथा दूसरों के लिए सदैव भला सोचे और करे. वह मनुष्य, जो भगवान शिव को निर्धन, दुर्बल तथा रुग्ण व्यक्ति में भी देखता है, वही सचमुच शिव जी की सच्ची उपासना करता है, परंतु यदि वह उन्हें केवल मूर्ति में ही देखता है, तो कहा जा सकता है कि उसकी उपासना अभी प्रारंभिक अवस्था में ही है.

वैश्विक महामारी के इस दौर में देश-विदेश के करोड़ों लोगों को अपार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अपने देश में दिहाड़ी मजदूर हों या कॉन्ट्रैक्ट कामगार या असंगठित क्षेत्र में काम में लगे अन्य करोड़ों लोग, सबको रोटी, कपड़ा और आवास की मूलभूत आवश्यकताओं से जूझना पड़ रहा है. ऐसे समय में समृद्ध लोगों के साथ-साथ मदद की भावना से भरे सज्जन लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे आगे आकर गरीब, लाचार और बीमार लोगों की दिल खोलकर मदद करें. यह मदद खाना, कपड़ा, आश्रय या दवा आदि मुहैया करके की जा सकती है.

सच तो यह है कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं और उन्हें कुछ राहत पहुंचाते हैं, तब न केवल मदद पानेवाले लोगों को संतोष और सुकून के कुछ पल दे पाते हैं, बल्कि खुद भी इसे करके अच्छा महसूस करते हैं. इतना ही नहीं ज्ञानीजनों का तो कहना है कि ईश्वर उन्हीं पर कृपा बनाये रखते हैं, जो औरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. कभी सोचा है आपने कि भगवान ने उन बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की मदद करने का मौका देकर आपको उनके प्रतिनिधि बनकर काम करने का कितना बड़ा गौरव प्रदान किया है. विचारणीय सवाल यह भी है कि अगर ईश्वर ने आपको इस लायक बनने में अपना आशीर्वाद दिया है या आपकी कोई मदद की है, तो उनके भक्त, अनुयायी, समर्थक या प्रशंसक बनकर आप भी अपने आसपास के लोगों को यथासंभव सहायता करें – धन से, ज्ञान से, मार्गदर्शन से या किसी अन्य तरीके से.

सच तो यह है कि दूसरों की सहायता करने के लिए सिर्फ धन की जरूरत नहीं होती. उसके लिए एक अच्छे मन की ज्यादा जरूरत होती हैं. हां, मानव सभ्यता का इतिहास परोपकार के प्रति आसक्त राजाओं और अन्य लोगों के प्रेरक कार्यों के वर्णन से भरा है.

सूर्यवंश के राजा हरिश्चंद्र के सत्य और सहायता के प्रति संपूर्ण समर्पण की कथाओं से तो आमजन भी परिचित हैं. ख़ुशी की बात है कि विश्वभर में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सही तरीके से धन उपार्जित करते हैं और उसका एक हिस्सा परोपकार के निमित्त खर्च भी करते हैं. हम सबने देखा-सुना है कि ऐसे लोग इसी भावना से प्रेरित होकर समाज और देशहित में स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, अनाथालय आदि के निर्माण व संचालन के साथ-साथ कई अन्य तरीके अपनाते रहे हैं. सेवा, सहयोग और समानुभूति से प्रेरित ऐसे लोग सदैव दूसरे की मदद करके निर्मल आनंद का अनुभव करते हैं. क्या आप इस आनंद से वंचित रहना चाहेंगे?

सूर्यवंश के राजा हरिश्चंद्र के सत्य और सहायता के प्रति संपूर्ण समर्पण की कथाओं से तो आमजन भी परिचित हैं. ख़ुशी की बात है कि विश्वभर में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सही तरीके से धन उपार्जित करते हैं और उसका एक हिस्सा परोपकार के निमित्त खर्च भी करते हैं. हम सबने देखा-सुना है कि ऐसे लोग इसी भावना से प्रेरित होकर समाज और देशहित में स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, अनाथालय आदि के निर्माण व संचालन के साथ-साथ कई अन्य तरीके अपनाते रहे हैं. सेवा, सहयोग और समानुभूति से प्रेरित ऐसे लोग सदैव दूसरे की मदद करके निर्मल आनंद का अनुभव करते हैं. क्या आप इस आनंद से वंचित रहना चाहेंगे?

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