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भारतीय उद्योग जगत काफी समय से पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लाने की मांग कर रहा है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने बुधवार को संकेत दिया कि निकट भविष्य में ऐसा करना संभव नहीं है.

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बेंगलुरु : भारतीय उद्योग जगत काफी समय से पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लाने की मांग कर रहा है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने बुधवार को संकेत दिया कि निकट भविष्य में ऐसा करना संभव नहीं है. इस मुद्दे पर राज्यों के बीच सहमति नहीं है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि उनकी पार्टी की राय है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाना चाहिए.

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हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कोविड-19 की वजह से राज्यों की वित्तीय हालत काफी खराब है. ऐसे में अभी इस तरह का कदम उठाना उचित नहीं होगा. उन्होंने कह कि राज्यों की मौजूदा वित्तीय स्थिति अभी यह कदम उठाने की अनुमति नहीं देती है. ज्यादातर राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यों की अनिच्छा को देखते हुए अभी एक-दो साल तक ऐसा होना मुश्किल है.

वहीं, भाजपा प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि केंद्र सरकार ने कई बार पेट्रोलियम पदार्थ और शराब को जीएसटी के तहत लाने का प्रस्ताव किया है, लेकिन राज्य इसके लिए तैयार नहीं है. उनका कहना है कि ये दो उत्पाद उनकी आमदनी के प्रमुख स्रोत हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इसके लिए तैयार है, लेकिन राज्यों को इस पर सहमति देनी होगी.

इससे पहले, उद्योग मंडल एसोचैम ने मंगलवार को कहा था कि जितनी जल्दी पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाएगा, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह उतना ही अच्छा होगा. एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा कि केंद्र के साथ राज्य सरकारें राजस्व के लिए पेट्रोल और डीजल पर कुछ अधिक निर्भर हैं.

उन्होंने कहा कि वाहन ईंधन की कीमतों में राष्ट्रीय स्तर पर समानता होनी चाहिए. अन्यथा जीएसटी के तहत एकल बाजार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा. उन्होंने कहा कि उद्योग कोविड-19 के मद्देनजर एक बड़ा प्रोत्साहन पैकेज चाहता है. उन्होंने कहा कि सरकार को करों में कटौती कर मांग बढ़ानी चाहिए. इसके उलट यदि कर बढ़ाए जाते हैं, तो इससे मांग और घटेगी, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका होगा.

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