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मंटो जन्मदिन विशेष : पाकिस्तान जाकर भी कभी भारत को भूल नहीं पाये…

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सआदत हसन मंटो का जन्म अविभाजित भारत में हुआ. बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान चले तो गये, लेकिन उनका दिल भारत में ही रह गया. पंजाब के लुधियाना में 11 मई, 1912 को जन्मे मंटो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये थे. 1955 में वहीं उनकी मृत्यु हुई. लेकिन मंटो कभी भारत को भूल नहीं पाये. मंटो अपनी कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में लिखते हैं-, उधर ख़ारदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान; दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था.

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सआदत हसन मंटो का जन्म अविभाजित भारत में हुआ. बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान चले तो गये, लेकिन उनका दिल भारत में ही रह गया. पंजाब के लुधियाना में 11 मई, 1912 को जन्मे मंटो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये थे. 1955 में वहीं उनकी मृत्यु हुई. लेकिन मंटो कभी भारत को भूल नहीं पाये. मंटो अपनी कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में लिखते हैं-, उधर ख़ारदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान; दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था. ये थे मंटो. आज भारत-पाकिस्तान दोनों मुल्कों के पाठकों को अजीज इस अफसाना निगार का जन्मदिन है. पढ़ें मंटों के लेखन-जीवन से जुड़ी खास बातें…

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– मंटों ने लेखन की शुरुआत अनुवाद से की थी. उन्होंने विक्टर ह्यूगो की एक किताब का सर-गुजस्त-ए-अस्तर नाम से अनुवाद किया था. यही वजह है कि रसियन साहित्य का मंटो पर गहरा प्रभाव था.

– अपने लिखने के कमरे में मंटो भगत सिंह का पुतला रखते थे. वाल्टर, रूसो, काल मार्क्स, लेनिन, स्टालिन की तस्वीरें रखते थे. मंटो ने विद्रोह इन सभी से पाया.

– अपनी पहली मौलिक कहानी “तमाशा” मंटो ने जलियांवाला बाग की घटना के आधार पर लिखी थी, लेकिन अपने नाम को बेहद प्यार करने के बाद भी उन्होंने यह कहानी अपने नाम के बिना लिखी और इसलिए पुलिस के चक्कर से बच गये. लेकिन इसके बाद मंटो ने जो लिखा, अपने नाम से लिखा और निर्भीक होकर लिखा और इसके लिए लगातार मुकदमे झेले.

– मंटो लिखते हैं- पहले मैं हिंदुस्तान का बड़ा कहानीकार था, अब पाकिस्तान का बड़ा लेखक हूं. मेरी कहानी के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. लोग मेरी तरफ आदर से देखते हैं. अखंड हिंदुस्तान में अश्लीलता के खिलाफ मेरे ऊपर तीन केस चल रहे थे, यहां पाकिस्तान में एक केस चल रहा है.

– मंटो ने कई फिल्मों की कहानियां लिखीं और बंटवारे से पहले लंबे समय तक मुंबई में रहे. मुंबई के लिए उन्होंने लिखा है- ‘मैं चलता-फिरता मुंबई हूं. मुंबई छोड़ने का मुझे भारी दुख है. वहां मेरे मित्र भी थे. उनसे दोस्ती होने का मुझे गर्व है. वहां मेरी शादी भी हुई, मेरी पहली संतान भी हुई. दूसरे ने भी अपने जीवन के पहले दिन की वहीं से शुरुआत की. मैंने वहां हजारों-लाखों रुपये कमाये और फूंक दिये. मुंबई को मैं चाहता था और आज भी चाहता हूं.’

मंटो ने नाम बहुत कमाया, लेकिन हमेशा मुफलिसी में रहे. वह लिखते हैं- बाइस किताबें लिखने के बाद भी मेरे पास रहने के लिए घर नहीं है. टूटी-फूटी एकाध पुरानी कार भी नहीं है. मुझे अगर कहीं जाना होता है, तो साइकिल किराये पर लेकर जाता हूं.

मंटो ने जब लिखना शुरू किया, तो परिवार की नाराजगी और दोस्तों की सलाह होती कि लिखने से क्या मिलेगा तुम्हें! अपनी आत्मकथा ‘मैं क्यों लिखता हूं’ में मंटो ने लिखा है- मैं क्यों लिखता हूं? यह एक ऐसा सवाल है कि मैं क्यों खाता हूं… मैं क्यों पीता हूं… लेकिन इस दृष्टि से मुख़तलिफ है कि खाने और पीने पर मुझे रुपये खर्च करने पड़ते हैं और जब लिखता हूं, तो मुझे नकदी की सूरत में कुछ खर्च करना नहीं पड़ता. पर जब गहराई में जाता हूं, तो पता चलता है कि यह बात ग़लत है इसलिए कि मैं रुपये के बलबूते पर ही लिखता हूं.

– आगे वह लिखते हैं- ‘मैं लिखता हूं, इसलिए कि मुझे कुछ कहना होता है. मैं लिखता हूं, इसलिए कि मैं कुछ कमा सकूं ताकि मैं कुछ कहने के काबिल हो सकूं.

– पाकिस्तान जाने के बाद मंटो कितने बेचैन रहते थे, इसके बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है- मेरे लिए यह एक तल्ख हक़ीकत है कि अपने मुल्क में, जिसे पाकिस्तान कहते हैं, मैं अपना सही स्थान ढूंढ़ नहीं पाया हूं. यही वजह है कि मेरी रूह बेचैन रहती है. मैं कभी पागलखाने में और कभी अस्पताल में रहता हूं.

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