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रोजगार के लिए सबसे बड़ा हथियार मनरेगा

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कम मजदूरी दर, भुगतान में लंबा विलंब और शहर में मजदूरी के अन्य साधनों के कारण इन मजदूरों ने कई सालों से मनरेगा में काम नहीं किया है. लेकिन लॉकडाउन व आने वाले दिनों में रोजगार के अभाव के कारण ऐसे मजदूर 194 रुपये प्रतिदिन की वर्तमान मजदूरीदर (जो राज्य की न्यूनतम मजदूरी दर से 81 रुपये कम है) में भी काम करनेके लिए तैयार हैं.

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सिराज दत्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, झारखंड

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siraj.dutta@gmail.com

हाल में रांची के पास एक गांव में मजदूरों (जो शहर जाकर काम करते थे) से जब पूछा गया कि उनमें से कितने लोगों को अभी मनरेगा में काम चाहिए, सबने एक स्वर में काम करने के लिए हां बोला. कम मजदूरी दर, भुगतान में लंबा विलंब और शहर में मजदूरी के अन्य साधनों के कारण इन मजदूरों ने कई सालों से मनरेगा में काम नहीं किया है. लेकिन लॉकडाउन व आने वाले दिनों में रोजगार के अभाव के कारण ऐसे मजदूर 194 रुपये प्रतिदिन की वर्तमान मजदूरीदर (जो राज्य की न्यूनतम मजदूरी दर से 81 रुपये कम है) में भी काम करनेके लिए तैयार हैं. हालांकि ये मजदूर यह भी कहते हैं कि उन्हें कम-से-कमन्यूनतम मजदूरी तो चाहिए ही.

लॉकडाउन के दौरान और इसके बाद भी कई महीनों तक रोजगार कम ही उपलब्ध होने की संभावना है. अन्य राज्यों में फंसे लाखों मजदूर वापस अपने गांव भी आरहे हैं. इस परिस्थिति में व्यापक पैमाने पर रोजगार देने का सबसे बड़ामाध्यम मनरेगा ही है, जिसके अंतर्गत हर ग्रामीण परिवार को 100 दिनों केकाम का कानूनी अधिकार है. लेकिन झारखंड में पिछले कई वर्षों के अनुभव सेस्पष्ट है कि व्यापक रोजगार और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने में यहां कईचुनौतियां हैं. ऐसे में अभी सबसे जरूरी है कि सरकार हर गांव में पर्याप्तसंख्या में कच्ची योजनाएं तैयार करे. पिछले कुछ वर्षों से सरकार का ध्यानशौचालय, आवास, कंपोस्ट पिट, पशु शेड, डोभा (छोटा पोखर) जैसी छोटी योजनाओंपर रहा है. ये योजनाएं लाभुकों के लिए उपयोगी हो सकती हैं, पर इनमें बहुतकम रोजगार सृजन होता है. इसलिए सरकार को तालाब, बांध, मिट्टी-मुरुम सड़क,मेड़ बंदी जैसी बड़ी व सामुदायिक योजनाएं भी शुरू करनी होंगी.

दूसरी प्राथमिकता होगी समय पर मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करना. राज्य मेंशायद ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां के मजदूर बोलते हों कि मनरेगा मेंउन्हें समय पर भुगतान होता है. विलंब और अनिश्चितता के कारण अनेक मजदूरोंने मनरेगा में काम करना छोड़ दिया है. आधार व बैंक खाता संबंधी विभिन्न समस्याएं, जैसे भुगतान रिजेक्ट हो जाना, किसी अन्य खाते में चले जाना आदिके कारण भी अनिश्चितता रहती है. अगले कई महीनों में बैंक व प्रज्ञाकेंद्रों से पैसा निकालना आसान नहीं होगा. इसीलिए अभी मनरेगा मेंसाप्ताहिक नगद भुगतान सुनिश्चत किया जाना चाहिए.

तीसरा, गांव में सभी मजदूरों को तुरंत रोजगार मुहैया कराने के लिए मनरेगाके कार्यान्वयन को सरल बनाने की आवश्यकता है. पिछले कुछ वर्षों मेंकार्यान्वयन प्रक्रियाओं की जटिलता और तकनीक पर निर्भरता बढ़ गयी है.उदाहरण के लिए, जब से मनरेगा में इलेक्ट्रॉनिक मस्टर रोल का प्रयोग शुरूहुआ है, तब से मजदूरों के लिए सीधा कार्यस्थल पर पहुंचकर काम पाना बंद होगया है. इसमें इच्छुक मजदूरों की सूची पहले प्रखंड को भेजी जाती है, फिरउस आधार पर मस्टर रोल छपता है. इसकी प्रति गांव में पहुंचने के बाद हीकाम शुरू हो पाता है. ऐसी जटिल प्रक्रियाओं के बिना भी मनरेगा योजनाओं काकार्यान्वयन आसानी से संभव है. अगले कई महीनों में सीमित मानव संसाधन औरगमनागमन को देखते हुए ऐसी सभी प्रक्रियाओं को तुरंत हटा देना चाहिए.

चौथा, मनरेगा से तुरंत ठेकेदारों को हटाने की जरूरत है. पिछले कुछ सालोंसे देखा जा रहा है कि ठेकेदार अपने लोगों (जो काम नहीं करते हैं) के नामपर मस्टर रोल निकलवाते हैं. अनेक मजदूरों से भी वे खाते से पैसे निकलवालेते हैं. इसमें स्थानीय प्रशासनिक कर्मी भी शामिल रहते हैं. लॉकडाउन केदौरान भी कई प्रखंडों से मजदूरों तक रोजगार नहीं पहुंच रहा है. सरकारी

आंकड़े के अनुसार, राज्य में आजकल लगभग दो लाख मजदूर रोजाना 67 हजारयोजनाओं में काम कर रहे हैं. मनरेगा से ठेकेदारों को हटाने और मजदूरों कोपूरा रोजगार मुहैया कराने के लिए सत्तारूढ़ दलों को राजनीतिक इच्छाशक्तिऔर अन्य राजनीतिक दलों के सहयोग की जरूरत होगी.केंद्र और झारखंड सरकार लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए मनरेगा को एकहथियार बना सकती हैं. माॅनसून से पहले सभी लोगों को काम और साप्ताहिक नगदभुगतान इस महामारी के विरुद्ध लड़ाई में कारगार साबित हो सकता है. सरकारको मनरेगा रोजगार सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि लोगों काजीवन-यापन सहज हो सके.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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