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कश्मीर में जरूरी बंदिशें लागू करें

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आतंकवाद के सफाये के लिए चल रहे अभियान ऑपरेशन ऑलआउट की दृष्टि से यहबड़ी सफलता है. लेकिन अगर हम तुलना करें, तो दो मुठभेड़ों में हमारे आठजवान बलिदान हो गये तथा 10 से ज्यादा घायल हुए, तो सफलता का उत्साह कमजोरहो जाता है

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अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

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awadheshkum@gmail.com

इससे संतोष हो सकता है कि सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में पांच दिनों के अंदर पांच आतंकवादियों को मार गिराया एवं एक पाकिस्तानी आतंकी को जिंदापकड़ लिया. मारे गये आतंकियों में हिजबुल मुजाहिद्दीन का सर्वोच्चकमांडर रियाज नाइकू तथा लश्कर-ए तैयबा का उच्च कमांडर हैदर भी शामिल हैं. आतंकवाद के सफाये के लिए चल रहे अभियान ऑपरेशन ऑलआउट की दृष्टि से यहबड़ी सफलता है. लेकिन अगर हम तुलना करें, तो दो मुठभेड़ों में हमारे आठजवान बलिदान हो गये तथा 10 से ज्यादा घायल हुए, तो सफलता का उत्साह कमजोरहो जाता है. लगातार हमले एवं मुठभेड़ यह इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं कि स्थिति फिर बिगड़ रही है. इन हमलों ने देश को यह सोचने को विवश कर दिया है कि क्या आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है? हम मान सकते हैं कि हंदवाड़ा में जवानों के बलिदान का बदला ले लिया गया है.

एक मई को चार आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर राष्ट्रीयराइफल्स ने पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया. दूसरे दिनदोपहर जब राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा केनेतृत्व में उनकी टीम तलाश कर रही टीमों को कोऑर्डिनेट कर रही थी, तोउन्हें एक घर में आतंकियों के होने तथा कुछ लोगों को बंधक बनाने की जानकारी मिली. इन लोगों ने बंधकों को बाहर निकाल लिया, लेकिन आतंकियों कीगोलीबारी का शिकार हो गये. यह साफ है कि उन वीरों ने जान देकर बंधकों कोमुक्त कराया और बारिश एवं अंधेरे के बावजूद दो आतंकी घेराबंदी से भागनहीं सके और मारे गये. जम्मू-कश्मीर में पांच साल बाद हमने कमांडिंगऑफिसर खोया है. साल 2015 में कुपवाड़ा में राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंगऑफिसर कर्नल संतोष महादिक शहीद हुए थे. उसी साल कमांडिंग ऑफिसर कर्नलएमएन राय त्राल में शहीद हुए थे.

वर्ष 2000 में बारूदी सुरंग विस्फोट मेंकमांडिंग ऑफिसर कर्नल रजिंदर चौहान ब्रिगेडियर बीएस शेरगिल पांच जवानोंके साथ शहीद हुए थे. आतंकियों और उनके आकाओं में इससे जश्न का माहौल रहाहोगा. इससे उनका हौसला भी बढ़ा होगा. ध्यान रखिए, 21 राष्ट्रीय राइफल्सका मुख्यालय हंदवाड़ा में ही है, जो कुपवाड़ा जिले में है. यहआतंकवादियों के जश्न का दूसरा कारण होगा. दूसरी और तीसरी घटना तो सीधीचुनौती थी. घात लगाये आतंकियों ने वनगांव में चार अप्रैल को सीआरपीएफ केएक नाके पर सीधा हमला कर दिया. हालांकि हंदवाड़ा कुपवाड़ा जिले में है औरवहां दो मई से ही सर्च ऑपरेशन जारी है. नाइकू एवं अन्य आतंकवादी पुलवामामें मारे गये हैं. इससे आतंकवादियों का जश्न बंद हो गया होगा और वे अपनी

जिंदगी बचाने के लिए छिप रहे होंगे. अप्रैल-मई में पाकिस्तान सबसे ज्यादाघुसपैठ कराने की कोशिशें करता है, क्योंकि इस मौसम में घुसपैठ-रोधी बाधाप्रणाली को ढंकनेवाली बर्फ पिघलने लगती है और बर्फ के नीचे दबी बाड़ोंमें टूट-फूट हो चुकी होती है. इसके लिए पाकिस्तान युद्धविराम का उल्लंघनकर गोलीबारी की आड़ देता है. साफ है कि दुनिया भले कोरोना प्रकोप से बाहरआने के लिए संघर्षरत हो, पाकिस्तान भी इसमें फंसा हुआ है, लेकिन यहकश्मीर में आतंकवादियों को निर्यात करने से बाज नहीं आ रहा है.इस वर्ष आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष में सफलताएं हैं. जनवरी से अब तकमुठभेड़ों में 65 से ज्यादा आतंकवादी मारे गये हैं. केवल एक अप्रैल से अबतक 33 आतंकी मारे गये हैं. करीब 38 आतंकवादी 25 मार्च को लॉकडाउन कीघोषणा के बाद मारे गये.

कल्पना कर सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या मेंमुठभेड़ हो रही हैं. खुफिया रिपोर्ट को मानें, तो आतंकवादियों के नेटवर्ककी भारी तबाही हुई है और उनके मददगार ओवरग्राउंड वर्करों पर दबाव है.लेकिन यह स्वीकारने में आपत्ति नहीं है कि अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370हटाने के पूर्व उठाये गये ऐतिहासिक सुरक्षा कदमों के कारण आतंकवादीघटनाएं जिस तरह रुकीं थीं, शांति आ रही थी, उस स्थिति में गिरावट आयी है.उस कदम के बाद पाकिस्तान के रवैये से साफ था कि वह कश्मीर को जलाने कीपूरी कोशिश करेगा. इसलिए जम्मू-कश्मीर, विशेषकर घाटी में बंदिशों को जारीरखना जरूरी था. मोबाइल, इंटरनेट आदि बंद होने के खिलाफ जो लोग उच्चतमन्यायालय गये थे, वे दोबारा वहां यह कहने नहीं जायेंगे कि आतंकवादियों कीघुसपैठ बढ़ रही है, इसलिए बंदिशें फिर से बहाल करने का आदेश दिया जाये.जब आप बंदिशें हटाते हैं, तो उसका लाभ आतंकवादी और उनके प्रायोजक उठातेहैं.

भारत के पास जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना का इससे बड़ा अवसर नहींहो सकता. इस समय मोबाइल एवं इंटरनेट बंद करना पड़ा है, क्योंकिआतंकवादियों से मुठभेड़ के बाद भारतविरोधी शक्तियों ने पहले की तरह लोगोंको भड़काना शुरू कर दिया था और नाइकू के समर्थन में लोगों ने सुरक्षाबलों के वाहनों पर हमला भी किया. अगस्त, 2019 से रुकी हुई यह खतरनाकप्रवृत्ति फिर जोर पकड़ सकती है. इसलिए बिना भावुकता में आये तथा दबावोंसे अप्रभावित रहते हुए सरकार को फिर से वे सारी जरूरी बंदिशें लागू करनीचाहिए. इसके बाद है कूटनीति और सीमापार कार्रवाई. भारत गिलगिट-बाल्तिस्तान सहितपाक-अधिकृत कश्मीर को खाली करने की मांग सघन कूटनीतिक रूप में जारी रखे.

सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसी दो बड़ी कार्रवाई हम कर चुके हैं.प्रधानमंत्री ने कहा है कि जवानों का बलिदान हम नहीं भूलेंगे. कोरोना संघर्ष में हमारी संलग्नता का इस तरह का दुष्टतापूर्ण लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, किंतु इसके लिए आंतरिक स्थिति को संभालना बहुतजरूरी है. जिस तरह की त्रुटिविहीन सुरक्षा सख्ती तथा जनसेवा की नीतिअपनाकर पिछले वर्ष से स्थिति को संभाला गया था, उसकी पुनरावृत्ति करनीहोगी. मानवाधिकार के नाम पर अलगाववादियों तथा वहां के परंपरागत नेताओं के समर्थक कथित लेफ्ट-लिबरलों को छोड़ पूरा देश सरकार के साथ है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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