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पद्मश्री सम्मान हासिल करने वाले पहले खिलाड़ी थे बलबीर, जानिए उनके द्वारा हासिल किए गए कुछ खास उपलब्धियों के बारे में

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हॉकी के दिग्गज खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर के खास उपलब्धियों के बारे में

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हॉकी के दिग्गज खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर का आज सुबह फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने सुबह साढ़े 6 बजे अंतिम सांस ली. वो पिछले 2 सप्ताह से वेंटीलेटर के स्पोर्ट में थे लेकिन उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था. इलाज के दौरान ही उन्हें तीन बार दिल का दौरा भी पड़ चुका था. दिमाग में खून का थक्का जम जाने की वजह से वो 18 तारीख से ही लगातार कोमा में थे. हॉकी इंडिया ने उनके निधन पर शोक जताया है. बलबीर सिंह हॉकी के एक धुरंधर खिलाड़ी रह चुके हैं. जिन्होंने अपनी जिंदगी में एक से बढ़ कर एक उपलब्धि हासिल किया. आईए जानते हैं उनके करियर की विशेष उपलब्धियों के बारे में.

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1952 का ओलंपिक फाइनल भारत और नीदारलैंड के बीच खेला जा रहा था, भारत ने यह मुकाबला 6-1 से अपने नाम किया था. लेकिन बलबीर ने उस मैच में अकेले 5 गोल मारे थे. ये किसी भी फाइनल में सर्वाधिक गोल मारने रिकॉर्ड है जो आज तक कोई भी नहीं तोड़ पाया है, उनके महानता का पता आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी उन्हें 16 महानतम खिलाड़ीयों के इतिहास की लिस्ट में शामिल कर चुका है. वे अभी तक इस लिस्ट में शामिल होने वाले एकलौते भारतीय खिलाड़ी हैं.

वे लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलिंपिक में गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रह चुके हैं, उनके खेल को देखते हुए भारत सरकार ने उसे 1957 में पद्मश्री से नवाजा था. यह सम्मान हासिल करने वाले वो पहले खिलाड़ी थे. 1975 में जब भारतीय हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप जीता था तब वो टीम के मैनेजर थे. वो भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी भी कर चुक हैं. उनकी कप्तानी में भारत ने 1956 का ओलिंपिक फाइनल जीता था. फाइनल में भारत के मुकाबला पाकिस्तान के साथ था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को 1-0 से हराकर तीसरी बार गोल्ड मेडल जीता था.

उनके टैलेंट को पहचानने वाले खिलाड़ी थे हरबेल सिंह. जो उस वक्त खालिस कॉलेज की हॉकी टीम के मुख्य कोच थे. उन्होंने उसे बार बार जोर देकर खलसा कॉलेज में स्थानांतरित होने को कहा. आखिरकार 1942 में वो खलसा कॉलेज में चले ही गए. जिनके मार्गदर्शन में वो आगे बढ़े.

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