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”जगदंब अहिं अविलंब हमर से…” के रचयिता मैथिली पुत्र प्रदीप का निधन, मिथिलांचल में शोक की लहर

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तारडीह (दरभंगा) : महाकवि विद्यापति के बाद अपनी कालजयी रचना ''जगदंब अहिं अविलंब हमर से माय अहां बिन आस ककर...'' के रचयिता मैथिली पुत्र प्रदीप के निधन से समूचे मिथिलांचल में शोक की लहर है. शनिवार को सुबह लहेरियासराय स्थित वर्तमान आवास स्वंप्रभा निकूज में सुबह 6:30 बजे उनका निधन हो गया. मैथिली, संस्कृत और हिंदी साहित्य के विद्वान मैथिली पुत्र प्रदीप का असली नाम प्रभुनारायण झा है. इनका जन्म तारडीह प्रखंड के कैथवार गांव के एक साधारण परिवार में 30 अप्रैल, 1936 को हुआ था. उनका ब्याह उसी प्रखंड के कठरा गांव में हुआ था. पत्नी गुलाब देवी का निधन पूर्व में ही हो चुका है. साहित्य, संगीत, कला तथा रचना में निपुण वे पेशे से शिक्षक थे और दरभंगा के ही एक विद्यालय से 1999 में सेवानिवृत्त हुए थे. उनकी माता बुचैन देवी का निधन भी कुछ दिनों पूर्व ही हुआ था.

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तारडीह (दरभंगा) : महाकवि विद्यापति के बाद अपनी कालजयी रचना ”जगदंब अहिं अविलंब हमर से माय अहां बिन आस ककर…” के रचयिता मैथिली पुत्र प्रदीप के निधन से समूचे मिथिलांचल में शोक की लहर है. शनिवार को सुबह लहेरियासराय स्थित वर्तमान आवास स्वंप्रभा निकूज में सुबह 6:30 बजे उनका निधन हो गया. मैथिली, संस्कृत और हिंदी साहित्य के विद्वान मैथिली पुत्र प्रदीप का असली नाम प्रभुनारायण झा है. इनका जन्म तारडीह प्रखंड के कैथवार गांव के एक साधारण परिवार में 30 अप्रैल, 1936 को हुआ था. उनका ब्याह उसी प्रखंड के कठरा गांव में हुआ था. पत्नी गुलाब देवी का निधन पूर्व में ही हो चुका है. साहित्य, संगीत, कला तथा रचना में निपुण वे पेशे से शिक्षक थे और दरभंगा के ही एक विद्यालय से 1999 में सेवानिवृत्त हुए थे. उनकी माता बुचैन देवी का निधन भी कुछ दिनों पूर्व ही हुआ था.

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प्रभुनारायण झा की मुख्य कृति में दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है. दर्जनों सम्मान से सम्मानित किये जा चुके हैं. इनमें मुख्य रचनाएं सीता अवतरण संपूर्ण महाकाव्य, एक घाट तीन बाट, नाम पट्ट उपन्यास, भागवत गीता मैथिली अनुवाद, दुर्गा सप्तशती, स्वंप्रभा सूत्र, श्री राम हृदय काव्य, कहुंकल कोयलिया, उगल नव चांद आदि प्रमुख रचना हैं. उनके ”जगदंब अहिं अविलंब हमर हे माय अहां बिन आस ककर…”, विद्यापति की रचना ”जै जै भैरवी…” के बाद सबसे अधिक प्रचलित है. उनकी एक रचना ”पहिर लाल साड़ी उपारी खेसारी छै भूख सं भेल कारी…” तथा ”तुं नै बिसहरिहें गे माय…” आदि आज प्रचलित है.

उन्हें उनकी रचना तथा कृति पर दर्जनों सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसमें मुख्य रूप से मिथिला रत्न, मिथिला शिरोमणि, मिथिला गौरव, भोगेंद्र झा सम्मान, सुमन साहित्य सम्मान, वैदेही सम्मान आदि से नवाजा गया था. उन्हें वशिष्ठ रचनाकार, सरस्वती पुत्र, संस्कृत शिरोमणि, मिथिला पुत्र आदि दर्जनों नाम तथा सम्मान से नवाजा गया था. वे कैथवार में एक अपने निजी प्रयास से हनुमान पुस्तकालय भी खोले तथा उसमें समय-समय पर अपनी रचना तथा गांव के लोगों में साहित्यिक प्रेम जगे इसका प्रयास करते थे.

उनके इकलौते पुत्र रामकुमार झा ने बताया कि पिताजी का गांव के प्रति लगाव रहता था और गांव में चल रहे हर गतिविधि पर ध्यान रखते थे. अभी पूरे देश से कोई साहित्यिक, सांस्कृतिक अवसर में भाग लेने का आमंत्रण आता, तो अस्वस्थ रहने के बाद भी जिज्ञासा रखते थे. अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ चुके मैथिली पुत्र के वर्तमान में दो पोता, एक पोती हैं तथा उनके शिष्य भारत के कोने-कोने में विशिष्ट पदों पर विराजमान हैं. उन्हीं में से एक रंजीत कुमार झा ने बताया कि उनका भोजन अल्प होता था. वे केवल खिचड़ी पसंद करते थे. पांच ग्राम चावल, दो ग्राम दाल और नमक, पानी बस यही भोजन था. वे उस समय पुअर होम दरभंगा में रहते थे. उनकी सादगी इतनी थी कि वे कंबल तक नहीं ओढ़ते थे.

उनके निधन पर संपूर्ण मिथिलांचल के साथ क्षेत्र में शोक की लहर है. उनके परिवार के सदस्यों में माधव झा ने बताया कि सारा कर्म उनके पैतृक गांव कैथवार में हनुमान पुस्तकालय के समीप संपन्न होगा. शोक व्यक्त करनेवालों में अनिल कुमार झा, माधव झा, प्रमुख अनुरानी देवी, उप प्रमुख राकेश रंजन, डॉ खुशी लाल झा, डॉ रामजी ठाकुर, डॉ सती रमण झा, डॉ सदानंद झा, विश्वनाथ झा, रमाकांत चौधरी, रामाश्रय चौधरी, आलोक झा, जाहिद हुसैन, रमन कुमार झा आदि लोग शामिल हैं.

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