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India China Face off: लद्दाख झड़प में शहीद हुए बेटों की शहादत से शोक में ओडिशा के ये दो आदिवासी गांव

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ओडिशा में दो आदिवासी गांव पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में अपने बेटों की शहादत से शोकाकुल हैं. चंद्रकांत प्रधान (28) कंधमाल जिले के रायकिया मंडल में बिअर्पंगा गांव के रहने वाले थे और नायब सूबेदार नंदूराम सोरेन मयूरभंज के रायरंगपुर के रहने वाले थे. रायकिया पुलिस थाने के प्रभारी निरीक्षक अलेख गराडिया ने बताया कि एक आदिवासी समुदाय से आने वाले चंद्रकांत पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद हुए 20 भारतीय सैनिकों में से एक हैं.

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फूलबाणी/बारीपदा (ओडिशा) : ओडिशा में दो आदिवासी गांव पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में अपने बेटों की शहादत से शोकाकुल हैं. चंद्रकांत प्रधान (28) कंधमाल जिले के रायकिया मंडल में बिअर्पंगा गांव के रहने वाले थे और नायब सूबेदार नंदूराम सोरेन मयूरभंज के रायरंगपुर के रहने वाले थे. रायकिया पुलिस थाने के प्रभारी निरीक्षक अलेख गराडिया ने बताया कि एक आदिवासी समुदाय से आने वाले चंद्रकांत पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद हुए 20 भारतीय सैनिकों में से एक हैं.

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शहीद हुए जवान के पिता करुणाकर प्रधान ने कहा, ‘‘मेरा बेटा अपनी ड्यूटी को लेकर बेहद ईमानदार था. वह साहसी, सादगी पसंद और मेहनती था. हमें उसकी शहादत की खबर मंगलवार रात को मिली.” छोटे-मोटे किसान प्रधान ने कहा कि उनका अविवाहित बेटा परिवार में कमाने वाला मुख्य सदस्य था. परिवार में माता-पिता के अलावा दो छोटे भाई और एक बड़ी बहन है. उन्होंने बताया कि चंद्रकांत 2014 में सेना में भर्ती हुआ था. वह करीब दो महीने पहले आखिरी बार घर आया था.

प्रधान ने रुंधे स्वर में कहा, ‘‘हमें गर्व है कि उसने मातृभूमि के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। हमें मंगलवार रात 11 बजे इस घटना की सूचना मिली. हम उसके पार्थिक शरीर का इंतजार कर रहे हैं जो एक या दो दिन में गांव लाया जा सकता है.” इस त्रासदी को न केवल परिवार बल्कि पूरे गांव के लिए दुखद बताते हुए प्रधान ने कहा कि उनके बेटे ने कुछ दिन पहले फोन किया था और जहां वह तैनात था वहां मौजूद तनावपूर्ण स्थिति के बारे में बताया था. चंद्रकांत इलाके में काफी लोकप्रिय थे.

ऐसा ही कुछ हाल आदिवासी बहुल मयूरभंज जिले बिजातोला ब्लॉक में 43 वर्षीय सोरेन के चमपौडा गांव का है. सोरेन के बड़े भाई दोमान माझी ने बताया कि रायरंगपुर कॉलेज से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद सोरेन 1997 में सेना में शामिल हुए क्योंकि वह मातृभूमि की रक्षा करना चाहते थे. वह अपनी ड्यूटी के प्रति ईमानदार थे. उन्होंने बताया कि सोरेन अपने पीछे पत्नी और तीन बेटियों को छोड़कर गए हैं जो स्कूल जाती हैं.

माझी ने कहा, ‘‘शहादत की खबर मिलने के बाद हम सब टूट गए हैं. नंदूराम गांव के साथ ही परिवार की संपत्ति था. उसे उसके दोस्ताना स्वभाव के लिए सभी प्यार करते थे.” एक गांववासी एम एन मेहतो ने बताया कि पूरे गांव को उनके सर्वोच्च बलिदान पर गर्व है. उन्होंने बताया कि गांव और आसपास के इलाके के लोग पार्थिव शरीर का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे सोरेन को श्रद्धांजलि दे सकें.

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