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Exclusive: बोले मनोज बाजपेयी,’ गुस्सा करना सवाल पूछना आपका अधिकार है बॉयकॉट सही नहीं

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manoj bajpayee talks about nepotism, sushant singh rajput death : अभिनेता मनोज बाजपेयी इनदिनों अपनी फिल्म 'भोंसले' को लेकर चर्चा में बने हुए हैं. अंतराष्‍ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में सराही गयी उनकी यह फ़िल्म सोनी लिव पर जल्द ही डिजिटली रिलीज होने वाली है. हाल ही में उन्‍होंने प्रभात खबर से अपनी इस फिल्‍म के अलावा नेपोटिज्म, सोशल मीडिया पर कुछ स्टार्स की फिल्मों के बॉयकॉट पर बात की.

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Manoj Bajpayee, Nepotism : अभिनेता मनोज बाजपेयी इनदिनों अपनी फिल्म ‘भोंसले’ को लेकर चर्चा में बने हुए हैं. अंतराष्‍ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में सराही गयी उनकी यह फ़िल्म सोनी लिव पर जल्द ही डिजिटली रिलीज होने वाली है. हाल ही में उन्‍होंने प्रभात खबर से अपनी इस फिल्‍म के अलावा नेपोटिज्म, सोशल मीडिया पर कुछ स्टार्स की फिल्मों के बॉयकॉट पर बात की. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

‘भोंसले’ इंटरनेशनल फेस्टिवल में काफी सराही जा चुकी है, अब डिजिटल रिलीज को तैयार है. अपने सफर को कैसे देखते हैं ?

पांच साल पहले निर्देशक देबाशीष मखीजा ‘भोंसले’ फ़िल्म लेकर मेरे पास आए थे. फ़िल्म की कहानी मुझे बहुत पसंद आयी.हमने तय किया कि मैं इस फ़िल्म के लिए प्रोड्यूसर ढूंढूंगा.इस दौरान कई लोगों से मिला. इसी बीच मैंने और मखीजा ने शार्ट फ़िल्म तांडव भी कर ली.फिर एक प्रोड्यूसर मिला भोंसले के लिए लेकिन उसने बीच में फ़िल्म छोड़ दी. 10 दिन की शूटिंग के बाद शूटिंग के लिए पैसे ही नहीं थे.फिर ऐसे स्थिति हुई कि मैं शॉट देता और लोगों को फोन करता इस फ़िल्म से बतौर निर्माता जुड़ने के लिए.फिर मैंने संदीप कपूर को फ़ोन किया.जिन्होंने अनार कली ऑफ आरा बनायी.मैंने उन्हें कहा कि यार पैसे दे दो कि शूटिंग पूरी हो जाए वो तुरंत राज़ी हो गए. फिर फ़िल्म फेस्टिवल्स का दौर.फ़िल्म को बेचने का दौर.बहुत मशक्कत हुई.एक किताब लिखी जा सकती है मेकिंग ऑफ भोंसले.

अच्छी कहानी और आपका नाम जुड़ा होने के बावजूद क्या वजह रही जो फ़िल्म को निर्माता नहीं मिल रहे थे ?

हकीकत यही है कि इंडिपेंडेंट फ़िल्म को कोई छूना नहीं चाहता है. इस फ़िल्म का विषय भी ऐसा है कइयों को लग रहा था कि कहीं फ़िल्म विवाद में ना पड़ जाए.कई बार फ़िल्म की क्वालिटी मायने नहीं रखती.उनके लिए यह मायने रखता है कि बस फ़िल्म में मसाला भर दो ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस फ़िल्म को देखने आ जाए.छोटी फिल्मों के साथ अभी भी सौतेला व्यवहार ही होता है.

भोंसले फ़िल्म की कहानी को कितना सामयिक मानते हैं ?

ये कहानी मेरी ही नहीं हर प्रवासी की है जो मुम्बई या दुनिया में कहीं भी रह रहा है.रोजी रोटी के लिए या अपने सपनों को पूरा करने के लिए.माइग्रेंट वर्सेज लोकल यह मुद्दा अभी पूरी दुनिया में ज्वलंत है. ये विवाद अब सड़कों पर आ गया है.कोई भी देश इससे अछूता नहीं है.

फ़िल्म की डिजिटल रिलीज से आप कितने संतुष्ट हैं ?

हम थिएटर में ही फ़िल्म को अप्रैल में रिलीज करना चाहते थे लेकिन लॉकडाउन हो गया. वैसे मैं डिजिटल रिलीज से खुश हूं.थिएटर में आपको रिलीज करने के लिए एक्स्ट्रा पैसे लगाने पड़ते हैं.प्रमोशन के लिए पैसे लगाइए फिर भी आपको उतनी स्क्रीन्स नहीं मिलती है क्योंकि वहां भी एक अलग ही लॉबी चलती है. फ़िल्म जब तक पिक होती है तब तक थिएटर से उतार दी जाती है क्योंकि लॉबी की फिल्मों को लेना है.रिलीज का बहुत बड़ा गणित होता है.सोनी लिव ने सामने से हमें हमारी फ़िल्म के प्रीमियर के लिए अप्रोच किया.इससे अच्छी क्या बात हो सकती है.फ़िल्म का कंटेंट इतना अच्छा है कि मुझे यकीन है कि ये फ़िल्म सभी को पसंद आएगी.

Also Read: Bhonsle Review : साइलेंट हीरो की कहानी है ‘भोंसले’

सुशांत की मौत ने बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस को फिर छेड़ दिया है ?

(बीच में रोकते हुए) सच कहूँ तो मैं जवाब देते देते थक गया हूं.हर आउटसाइडर्स इसका शिकार रहा है. मैं खुद भी.प्रतिभा को लोग आगे बढ़ाते नहीं बल्कि पीछे ढकेलते हैं लेकिन ये इस इंडस्ट्री में नहीं गौर करें तो हर फील्ड में है.सब जगह औसत प्रतिभा वाले ही लोग चाहिए.लोगों को टैलेंटेड लोगों से डर लगता है क्योंकि उनमें वह नहीं होता है.

आपने एक इंटरव्यू में कहा है कि इंडस्ट्री अगर अपना रवैया नहीं बदलेगी तो आम लोगों में उसका सम्मान खत्म हो जाएगा ?

ये आधी बात है.मैंने कहा है कि जब तक आप प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे.उसका वेलकम नहीं करेंगे.अपने कामकाज के तरीके को सुधारेंगे नहीं तो आम जनता के बीच में हमारा आदर खत्म हो जाएगा.वाकई ये हाई टाइम है. अब इंडस्ट्री को समझना होगा.

सुशांत की मौत के बाद कुछ निर्माताओं और स्टार्स की फिल्मों के बॉयकॉट की बातें आ रही है ?

मुझे लगता है कि किसी के भी काम को बैन या बॉयकॉट करना सही नहीं है.गुस्सा करना और सवाल पूछना आपका अधिकार है लेकिन बैन बायकॉट नहीं होना चाहिए.एक फ़िल्म से हज़ारों लोग जुड़े रहते हैं फिर उनसे हज़ारों तो ये गलत है.

सुशांत को आप किस तरह से याद रखेंगे ?

एक बेहतरीन अभिनेता और इंसान के तौर पर याद रखूंगा जो बहुत ही इंटेलीजेंट था.मुम्बई में इंडस्ट्री की चकाचौंध में भी दिल से हमेशा वह छोटे शहर का ही रहा. ये बात मुझे उसकी सबसे खास लगती थी.

सुशांत की मौत के बाद छोटे शहर के लोगों में इंडस्ट्री को लेकर एक निराशा आ गयी है क्या अब वे यहां संघर्ष करने से डरेंगे ?

मुझे नहीं लगता है कि कोई घबराया है,जिसके मन में एक्टर बनने का सपना है.इंडस्ट्री में अपना मुकाम बनाने की चाह है. वो आएगा और अपने सपने को पूरा करने के लिए सबसे लड़ेगा. ऐसा होता आया है और ऐसा होता रहेगा.

Posted By: Budhmani Minj

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