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नयी शिक्षा नीति की जरूरत थी

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शिक्षा नीति में अगर प्रयोगधर्मिता नहीं होगी, कुछ नयी बातें शामिल नहीं होंगी, तो किसी और क्षेत्र में हम न तो चिंतन कर सकते हैं, न प्रयोग कर सकते हैं. इस नाते नयी शिक्षा नीति की बहुत आवश्यकता थी.

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प्रो श्रीप्रकाश सिंह, राजनीति विज्ञान विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय

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spsinghdu@gmail.com

बहुत दिनों से शिक्षा नीति को पुनः विश्लेषित करने की जरूरत महसूस की जा रही थी कि हम कहां पहुंचे हैं, कैसे पहुंचे हैं. इस लिहाज से चौंतीस वर्षों बाद आयी यह नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुप्रतीक्षित है. शिक्षा नीति में अगर प्रयोगधर्मिता नहीं होगी, कुछ नयी बातें शामिल नहीं होंगी, तो किसी और क्षेत्र में हम न तो चिंतन कर सकते हैं, न प्रयोग कर सकते हैं. इस नाते नयी शिक्षा नीति की बहुत आवश्यकता थी.

इस शिक्षा नीति के चार कंपोनेंट हैं. पहला विद्यालयी शिक्षा, दूसरा उच्च शिक्षा और तीसरा शोध का है. चौथा कंपोनेंट नियामक से जुड़ा हुआ है कि देश की शिक्षा किस तरह संचालित होगी. विद्यालयी शिक्षा को लेकर बहुत दूरगामी कदम उठाया गया है. इसमें तीन वर्ष की उम्र से लेकर 18 वर्ष की उम्र यानी बारहवीं तक बच्चे को विद्यालयी शिक्षा के साथ जोड़कर रखने और शिक्षा को समावेशी बनाने का प्रावधान है.

आंगनबाड़ी को भी इस प्रक्रिया में शामिल करने की बात है. यहां नीति-निर्माताओं से केवल एक आग्रह है कि छोटी उम्र के बच्चों पर बस्ते का बोझ न लादा जाये. उनको आरंभिक दिनों में खेल-कूद या मनोरंजक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा दी जाये. मातृभाषा में शिक्षा देने का विचार भी उल्लेखनीय है. गांधीजी भी मातृभाषा में शिक्षा देने की बात करते थे. एक तरह से देखा जाये तो इस नयी शिक्षा नीति का प्रारुप गांधीजी की शिक्षा नीति के बहुत नजदीक है. इसके अलावा, स्किल एजुकेशन को बढ़ावा देने और बच्चों के सर्वांगीण विकास की बात भी शिक्षा नीति में शामिल है, जो स्वागतयोग्य है.

दूसरा कंपोनेंट उच्च शिक्षा का है. चार वर्षीय यूजी प्रोग्राम की अब जो संरचना आ रही है, उसकी वैश्विक परिदृश्य के साथ एकरूपता है, पहले की उच्च शिक्षा में वैश्विक परिदृश्य के साथ एकरूपता की कमी थी. चार वर्षीय यूजी प्रोग्राम में अगर कोई विद्यार्थी किन्हीं कारणों से एक वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाता है तो उसका वर्ष बर्बाद नहीं होगा, बल्कि उसका क्रेडिट जमा हो जायेगा और उसको सर्टिफिकेट मिल जायेगा. दो वर्ष के बाद यदि पढ़ाई छूट जाती है तो उसको डिप्लोमा मिलेगा.

तीन वर्ष पर डिग्री मिल जायेगी. उसका क्रेडिट आगे चलकर चतुर्थ वर्ष और हायर स्टडीज में भी लागू हो सकता है. ग्राॅस एनराॅलमेंट रेशियो यानी जीइआर को 2035 तक 50 प्रतिशत तक ले जाने का सरकार ने लक्ष्य रखा है, जो बहुत बड़ा कदम है. अगर हम इस लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं तो यह देश की शिक्षा के लिए, समाज के लिए बहुत बेहतर होनेवाला है. बहुत प्रयासों के बावजूद हमारा जीइआर अभी 26 प्रतिशत के करीब ही पहुंचा है.

इतना ही नहीं, अब कोई भी विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार एक क्रेडिट कोर्स जैसे मानविकी, साहित्य या स्किल ले सकता है. इस लिहाज से उच्च शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन आने वाला है. विज्ञान के विद्यार्थी पहले समाज, साहित्य आदि के बारे में पढ़ ही नहीं पाते थे. नयी शिक्षा नीति अब विद्यार्थियों को उसके सीमित दायरे से निकालकर विस्तृत दायरा देने जा रही है. इस तरह अब विद्यार्थियों के विकास, मानसिक विकास, व्यक्तिगत प्रयासों के लिए संभावनाएं कहीं ज्यादा हैं. और जब ज्यादा संभावनाओं वाला क्षेत्र होता है तो उसका लाभ राष्ट्र और समाज के साथ उद्यमिता को भी मिलता है. रोजगार की दृष्टि से भी यह नीति बहुत फलदायी रहने वाली है.

शोध आधारित विश्वविद्यालय का भी नयी नीति में प्रावधान है, जिससे देश में पब्लिकेशन, रिसर्च की संस्कृति को और मजबूती मिलेगी. विश्व के जितने भी विश्वविद्यालय अच्छा करते हैं उनका रिसर्च कंपोनेंट, रिसर्च आउटपुट और पब्लिकेशेन बहुत महत्व रखता है. आज भी जिस प्रोफेसर का साइटेशन जितना अच्छा होता है वह उतना ही अच्छा एकेडमिशियन माना जाता है. चौथा कंपोनेंट गवर्नेंस का है. नये प्रावधान के तहत तमाम प्रशासकीय व्यवस्थाओं को खत्म करके उसे एक व्यवस्था के रूप में विकसित किया जायेगा, जो सराहनीय है. इस शिक्षा नीति में शिक्षा के भारतीयकरण की बात भी कही गयी है, जो अपनेआप में बहुत बड़ी अवधारणा है.

हमारे यहां भारतीय दर्शन पढ़ाया ही नहीं जाता, विदेशी विचारक पढ़ाये जाते हैं. हमारे ऋषियों-मनीषियों ने हजारों-हजार वर्ष पहले दर्शन दिया. हमारे आधुनिक शिक्षा जगत के सबसे बड़े मनीषियों डाॅ राधाकृष्णन, सी राजगोपालाचारी, गांधीजी या दीनदयालजी ने भारतीय शिक्षा के बारे में क्या सोचा उसे कोई नहीं बताता. शिक्षा के भारतीयकरण से औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्ति मिलेगी और भारत, भारतीयता और भारत के प्रति विद्यार्थियो में स्वाभाविक तौर पर प्रेम पैदा होगा. नयी नीति में पाली, प्राकृत, संस्कृत भाषा की पढ़ाई और शोध समेत लुप्तप्राय हो चुकी भाषाओं के संरक्षण की बात भी की गयी है, जो अच्छी बात है.

जो नीति-निर्माता नीति बनाते हैं वो उसके ब्लूप्रिंट भी साथ लेकर चलते हैं. उस ब्लूप्रिंट को ध्यान में रखते हुए सरकार एक वर्किंग ग्रुप बनाये और फिर उस ग्रुप के द्वारा नीतियों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो. हालांकि जो विद्यार्थी स्कूल में हैं उनके ऊपर यह शिक्षा नीति इतनी प्रभावी नहीं होगी. वो कुछ-कुछ बदलाव के साथ पुरानी प्रक्रिया के तहत ही अपनी शिक्षा पूरी करेंगे. इस नीति के तहत विद्यालयी शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन 10-12 वर्षों के बाद ही दिखेगा कि हम कैसा विद्यार्थी तैयार कर रहे हैं.

(बातचीत पर आधारित)

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