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दिल्ली में पांच में से एक मरीज में नहीं हो रहा है एंटीबॉडी का विकास

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दिल्ली में हर पांच में से एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के अंदर कोरोना वायरस से के लिए प्रभावी एंटीबॉडी का विकास नहीं हो पा रहा है. इसके कारण यह खतरा पैदा हो रहा है कि वह व्यक्ति लंबे समय तक कोरोना वायरस से लड़ पाने से सक्षम नहीं होगा और उसे दुबारा कोरोना वायरस का संक्रमण हो सकता है. लिवर एंड बाइलरी साइंसेज के निदेशक डॉ एस के सरीन ने यह बात बतायी है. बता दे कि डॉ सरीन उस पांच सदस्यीय कमिटि की अगुवाई कर रहे हैं जो दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कोरोना से निपटने के तरीकों के बारे में सलाह देता है.

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दिल्ली में हर पांच में से एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के अंदर कोरोना वायरस से के लिए प्रभावी एंटीबॉडी का विकास नहीं हो पा रहा है. इसके कारण यह खतरा पैदा हो रहा है कि वह व्यक्ति लंबे समय तक कोरोना वायरस से लड़ पाने से सक्षम नहीं होगा और उसे दुबारा कोरोना वायरस का संक्रमण हो सकता है. लिवर एंड बाइलरी साइंसेज के निदेशक डॉ एस के सरीन ने यह बात बतायी है. बता दे कि डॉ सरीन उस पांच सदस्यीय कमिटि की अगुवाई कर रहे हैं जो दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कोरोना से निपटने के तरीकों के बारे में सलाह देता है.

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सीएनएन न्यूज के साथ इंटरव्यू में डॉ सरीन ने विस्तार से बताया कि क्यों वायरस ट्रांसमिशन के जरिये लोगों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कराना इस महामारी से लड़ने का सही तरीका नहीं है. उन्होंने कहा कि पिछले सीरोलॉजिकल सर्वे में दिल्ली में लगभग 24 फीसदी मामले पॉजिटिव आये. इससे हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि फिर से जो सर्वे होगा उसमें और अधिक मामले बढ़ेंगे. इससे सवाल यह उठता है कि क्या राजधानी हर्ड इम्युनिटी की ओर अग्रसर है.

Also Read: Coronavirus In Delhi: दिल्ली थमने लगी है कोरोना की रफ्तार, संक्रमण दर में आयी कमी

डॉ. सरीन ने कहा कि हम पिछले चार महीनों से कोरोना युग में जी रहे हैं, इसलिए लोगों को दो बातें समझाना चाहते हैं ताकि उनके अंदर का डर खत्म हो सके. जिस तरीके से एचआईवी इंफेक्शन है और एड्स बीमारी है, इसका मतलब यह नहीं की वायरस आपमें मौजूद होने पर आपको बीमारी है. ठीक इसी प्रकार कोरोना वायरस आपके अंदर मौजूद होने का मतलब नहीं की आपको बीमारी है. हां अगर कोरोना वायरस के कारण आपको बुखार होता है, गले में इंफेक्शन होता है तब आप कोविड-19 बीमारी से ग्रसित हैं.

अब सबसे बड़ी बात है कि जिसे इंफेक्शन हुआ वो टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया, पर बाकि का क्या जिनका टेस्ट नहीं हुआ, जबकि उनके अंदर वायरस था लेकिन उनके अंदर बीमारी के कोई लक्षण नहीं थे, वो अपने आप ठीक हो गये. तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आपमें वायरस हैं लेकिन बीमारी नहीं है.

आईसीएमआर ने शुरूआती अध्ययन मे एक प्रतिशत लोगों को शामिल किया था. लेकिन दिल्ली के अध्ययन से पता चला की वहां के 23 फीसदी लोगों में पहले से ही कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद थे. इसका क्या मतलब है? जब दिल्ली में संक्रमण की दर लगभग 2.6 फीसदी थी, 2 करोड़ लोगों में से, केवल 1.5 लाख लोगों में वायरस था. इसका मतलब है कि 0.6% लोगों ने संक्रमण फैलाया, लेकिन 23% लोगों में एंटीबॉडी थे.

इसके केवल दो मतलब निकलते हैं. पहला यह कि हमने इतने लोगों की जांच नहीं की. क्योंकि अगर आपने दिल्ली की एक चौथाई आबादी की जांच की होती जो 50 लाख है यह अंसभव लगता है. तब आपको यह पता चला होता, पर इतनी जांच तो हुई नहीं . दूसरा यह कि 23 प्रतिशत ऐसे लोग है जिनमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं पाया गया लेकिन वो पॉजिटिव थे. यही जांच अगर एक महीने बाद की जाती तो यह बढ़कर 30 फीसदी हो सकता है. इसका मतलब यह है कि दिल्ली की 23 फीसदी आबादी कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर चुकी है और वो सुरक्षित है. अंत में उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण को कोरना के लिए और पता लगाने के लिए एंटीबॉडी टेस्ट एंटीजेन टेस्ट से बेहतर विकल्प हो सकता है.

Posted By: Pawan Singh

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