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Sarkari Naukri 2020: बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए बनी नयी नियमावली से बिहार के अभ्यर्थियों को नुकसान की चिंता

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पटना: प्रदेश के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए बनी नयी नियमावली में पीएचडी धारक अभ्यर्थियों के लिए किये गये छूट संबंधी प्रावधान खासे विसंगतिपूर्ण माने जा रहे हैं. दरअसल, इस नियमावली में यूजीसी के एमफिल और पीएचडी विनियम 2009 एवं 2016 में हुए संशोधन के तहत पीएचडी करने वाले अभ्यर्थियों को नेट, एसएलइटी, एसइटी से छूट दी जायेगी. इस छूट का बिहार के अभ्यर्थियों को फायदा नहीं मिल पायेगा, क्योंकि बिहार के विश्वविद्यालयों में इस विनिमय के तहत पीएचडी में विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन जुलाई, 2012 -2013 या इसके बाद किया गया है.

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पटना: प्रदेश के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति के लिए बनी नयी नियमावली में पीएचडी धारक अभ्यर्थियों के लिए किये गये छूट संबंधी प्रावधान खासे विसंगतिपूर्ण माने जा रहे हैं. दरअसल, इस नियमावली में यूजीसी के एमफिल और पीएचडी विनियम 2009 एवं 2016 में हुए संशोधन के तहत पीएचडी करने वाले अभ्यर्थियों को नेट, एसएलइटी, एसइटी से छूट दी जायेगी. इस छूट का बिहार के अभ्यर्थियों को फायदा नहीं मिल पायेगा, क्योंकि बिहार के विश्वविद्यालयों में इस विनिमय के तहत पीएचडी में विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन जुलाई, 2012 -2013 या इसके बाद किया गया है.

बिहारी अभ्यर्थियों के हितों को नुकसान

दरअसल यूजीसी की उस नियमावली के तहत 2009-12 की समयावधि में नामांकन ही नहीं हुए. इस समयावधि में बिहार के सभी विश्वविद्यालयों ने 2009 से पहले के परिनियम के आधार पर ही पीएचडी में नामांकन किये. इस तरह 2009 से 2012-13 के दौर में पुराने परिनियम पर पीएचडी उपाधि लेने वाले अभ्यर्थियों के हितों के बारे में इस नये परिनियम में कुछ भी नहीं सोचा गया है. इसके कारण इस छूट का पूरा फायदा दूसरे प्रांतों के अभ्यर्थियों को मिलेगा. ऐसा 2017 में हो चुका है, तब जुलाई 2009-12 तक के बिहारी अभ्यर्थी छंट गये थे. कुल मिलाकर जारी नियामावली में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बिहारी अभ्यर्थियों के हितों को नुकसान पहुंचना तय माना जा रहा है.

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सितंबर, 1991 के पहले के पीजी धारकों को छूट पर सवाल

नये परिनियम के तहत जिन पीएचडी धारकों ने 19 सितंबर, 1991 से पहले स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की है, उन्हें स्नातकोत्तर स्तर पर पांच फीसदी की छूट मिलेगी. इस संबंध में बिहार का अनुभव रहा है कि इस छूट का फायदा दूसरे प्रांत के अभ्यर्थियों को ही हुआ है. दरअसल स्नातकोत्तर के 29 साल बाद व्यक्ति को नियुक्ति का मौका देने की पॉलिसी पर जानकार सवाल उठा रहे हैं.

पीएचडी को तवज्जो उचित नहीं

पीएचडी धारकों को 30 अंक देने का प्रावधान भी नियमावली की सबसे बड़ी खामियों में एक माना जा रहा है,क्योंकि पीएचडी की गुणवत्ता एक अरसे से सवालों के घेरे में है. पीएचडी को इतनी तवज्जो उचित नहीं है.

लिखित परीक्षा के जरिये नियुक्ति करने की मांग

बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर केवल अकादमिक नंबर व इंटरव्यू के जरिये नियुक्ति करने का प्रावधान है. इसको लेकर बिहार असिस्टेंट प्रोफेसर्स ऐसोसिएशन ने सोशल मीडिया पर अपनी मुहिम शुरू की है. ऐसोसिएशन का कहना है कि बिहार की इस चयन प्रक्रिया से येन केन प्रकारेण डिग्री बटोरने वाले और जर्नल में पेपर छपवा कर असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकते हैं. इसी वजह से बिहार के अभ्यर्थी पीछे छूटते जा रहे हैं. यूपी, एमपी,राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति मेरिट के आधार लिखित परीक्षा से करते हैं. इससे काबिल लोगों का चयन होता है.

एक्सपर्ट व्यू

परिनियम में निश्चित तौर पर विसंगतियां हैं. खासतौर पर पीएचडी से जुड़े प्रावधान बिहारी अभ्यर्थियों के हितों को चोट पहुंचाने वाले हैं. दूसरे राज्यों के अभ्यर्थियों को फायदा मिलने की संभावना अधिक है. पीएचडी को अंकों के लिहाज से सबसे ज्यादा तवज्जो देना भी अव्यावहारिक है. ऐसे समय जब हर राज्य अपने लोगों के हक की बात कर रहा है, बिहार को भी अपने अभ्यर्थियों के हितों के बारे में सोचना चाहिए़

प्रो रास बिहारी प्रसाद सिंह, अवकाशप्राप्त कुलपति, पटना विश्वविद्यालय

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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