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Independence day 2020 : देवघर के इन स्वतंत्रता सेनानियों को आप भी जानिए, जिन्होंने देश की आजादी में दिये महत्वपूर्ण योगदान

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Independence day 2020 : देवघर समेत हजारीबाग के 5 स्वतंत्रता सेनानी सम्मानित हुए हैं. इन्हें यह सम्मान अगस्त क्रांति के दिन यानी 9 अगस्त, 2020 को मिला है. स्वतंत्रता संग्राम में राज्य के इन पांच स्वतंत्रता सेनानी देवघर के 112 वर्षीय माणिक राय, 101 वर्षीय प्रियनाथ पांडे, 98 वर्षीय कालीचरण तिवारी, 97 वर्षीय देवी प्रसाद सिन्हा चौधरी और हजारीबाग जिला अंतर्गत कटकमदाग प्रखंड स्थित मयातु के लक्ष्मी प्रसाद दुबे हैं, जिन्हें सम्मानित किया गया है. इन स्वतंत्रता सेनानियों के अदम्य साहस और वीरता की बात आज भी उन दिनों की याद ताजा हो जाती है. आइये जानते हैं इन स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा को.

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Independence day 2020 : देवघर : देवघर समेत हजारीबाग के 5 स्वतंत्रता सेनानी सम्मानित हुए हैं. इन्हें यह सम्मान अगस्त क्रांति के दिन यानी 9 अगस्त, 2020 को मिला है. स्वतंत्रता संग्राम में राज्य के इन पांच स्वतंत्रता सेनानी देवघर के 112 वर्षीय माणिक राय, 101 वर्षीय प्रियनाथ पांडे, 98 वर्षीय कालीचरण तिवारी, 97 वर्षीय देवी प्रसाद सिन्हा चौधरी और हजारीबाग जिला अंतर्गत कटकमदाग प्रखंड स्थित मयातु के लक्ष्मी प्रसाद दुबे हैं, जिन्हें सम्मानित किया गया है. इन स्वतंत्रता सेनानियों के अदम्य साहस और वीरता की बात आज भी उन दिनों की याद ताजा हो जाती है. आइये जानते हैं इन स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा को.

माणिक राय ने अंग्रेजों की फूंकी थी भट्टी, सारठ थाना को जलाया था

पालोजोरी (उदयकांत सिंह) : देवघर जिला अंतर्गत पालोजाेरी प्रखंड का एक गांव है अंबा. इस गांव के 112 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी माणिक राय आज भी जीवित हैं. वैसे तो माणिक राय मूल रूप से तिलैया गांव के रहनेवाले हैं. लेकिन, पर लंबे समय से अंबा में ही रहते हैं. मानिक राय स्वतंत्रता आंदोलन की पुरानी बातें याद कर कभी रोमांचित हो जाते, तो कभी उनकी आंखों में अद्मय साहस की झलक दिखती, तो कभी उनकी आंखों में अंगारे बरस उठते.

स्वतंत्रता सेनानी मानिक राय बताते हैं कि करीब 16 साल की उम्र रही होगी. स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ा था. तारीख तो याद नहीं, पर गजब का जोश था. आंदोलन के ही क्रम में एक बार महात्मा गांधी से मुलाकात भी हुई थी. आंदोलनकारियों के साथ मिल कर सारठ थाना को जलाया था. इसके बाद अंग्रेजों की भट्ठी भी जलायी थी. बाद में अंग्रेजों ने साल भर के लिए जेल भेज दिया. 3 माह देवघर, 3 माह दुमका और 6 माह पटना जेल में रहे थे.

मानिक राय बताते हैं कि 1985 में इलाहाबाद में आयोजित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहादुर सिंह ने ताम्र पत्र और मेडल से सम्मानित किया था. स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र भेंट की थी.

उन्होंने आंदोलन के दौरान एक गीत को साझा किया, जो इस प्रकार है..
टूटे न चरखे की तान, चरखवा चालू रहे.
महात्मा वो गांधी दूल्हा बने, अंग्रेज बने छो दुल्हिन चरखवा चालू रहे.
सभे ओ वोलंटियर बराती बने, नेता करेछो मोतीलाल चरखवा चालू रहे.
अरे चांदी व सोनवा मनहु न लागे, दहेज मांगे स्वराज चरखवा चालू रहे.

वंदेमातरम.

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Independence day 2020 : देवघर के इन स्वतंत्रता सेनानियों को आप भी जानिए, जिन्होंने देश की आजादी में दिये महत्वपूर्ण योगदान 4
प्रियनाथ पांडेय ने उखाड़ी थी रेल की पटरी, पोस्ट ऑफिस को किया था आग के हवाले

देवघर (संजीव मिश्रा) : बाबानगरी में जन्मे अपने जीवन के 101 बसंत देख चुके बैद्यनाथ लेन निवासी स्वतंत्रता सेनानी प्रियनाथ पांडे को अगस्त क्रांति दिवस पर सम्मानित किया गया. स्वतंत्रता आंदोलन का जिक्र होते ही उनका चेहरा आज भी चमक उठता है. उम्र के इस पड़ाव में अब घर से निकलने में पूरी तरह से असमर्थ हैं. दिन-रात बिस्तर पर ही काट रहे हैं.

अंग्रेजों द्वारा किये गये प्रताड़ना और देशभक्ति के जुनून को याद करते हुए प्रियनाथ बताते हैं कि उस समय आर मित्रा स्कूल में 10वीं में पढ़ाई कर रहे थे. देश में बापू के आदेश से युवा अगस्त क्रांति में कूद कर अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए हर दिन जुलूस निकाल रहे थे. उनका मन भी देशभक्ति की भावना में उमड़ रहा था.

कहते हैं कि बापू के बताये रास्ते पर चलते हुए हमने भी कुछ साथियों के साथ मिल कर देवघर से रेल लाइन के रास्ते जसीडीह चल दिये. इस दौरान कई जगहों पर हमलोगों ने रेल की पटरी को उखाड़ दिया. मधुपुर में पोस्ट ऑफिस में आगजनी की, तो पुलिस ने पकड़ लिया. दूसरे दिन हमलोगों की मजिस्ट्रेट के सामने पेशी हुई. वहां हमें गुप्तेशवर प्रसाद नामक पुलिस इंस्पेक्टर ने पहचान की. इसके बाद हमलोगों को देवघर उपकारा भेज दिया गया.

जेल में हमलोगों से माफीनामे पर हस्ताक्षर के लिए कहा गया. इनकार करने पर हमलोगों के खिलाफ केस कर दिया गया. दुमका में केस चलने के 4 माह बाद जेल से जमानत पर रिहा हुए. इसके बाद पुन: 1943 में वारंट जारी हुआ, तब कोटिरया भाग गये. वहीं, क्रांतिकारी श्रीधर सिंह के साथ भूमिगत होकर काम करते रहे. इस दौरान अंग्रेजी हुकूमत के कई पुलिस अधिकारियों से लोहा लिया.

श्री पांडेय ने बताया कि पूरे संताल से 55 क्रांतिकारी एक साथ काम करते थे. उनके साथ उस समय जेल में हीरा सिंह, श्रीधर सिंह, जयनाथ जी के अलावा कुछ आदिवासी भी थे, जिनका नाम याद नहीं है. प्रियनाथ पांडेय को पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी सम्मानित कर चुके हैं. झारखंड में सीएम रहे अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन और रघुवर दास के हाथों भी सम्मान मिल चुका है. वह स्वतंत्रता सेनानी संगठन के कोषाध्यक्ष भी रह चुके हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी कालीचरण तिवारी धोती के टुकड़े में दूब, चूना और हल्दी लगा कर फहराये थे तिरंगा

सारठ (मिथिलेश सिन्हा) : अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई में कालीचरण तिवारी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. देवघर जिला अंतर्गत सारठ के पथरड्डा निवासी 98 वर्षीय कालीचरण तिवारी 17 वर्ष की उम्र में ही गजब का जज्बा दिखाते हुए अपने नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया. देश के प्रति जुनून ऐसा कि भागलपुर जेल में बंद होने के बावजूद वर्ष 1943 को जेल में ही धोती के टुकड़े को दूब घास, चूना और हल्दी मिला कर तिरंगे का रूप दिया और उसे जेल में ही फहरा दिया.

स्वतंत्रता सेनानी कालीचरण बताते हैं कि आजादी के आंदोलन में उनके योगदान के लिए राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित भी किया गया है. पेंशन की राशि से कुछ पैसे बचा कर होमियोपैथ की दवा भी मंगा कर ग्रामीणों का इलाज करते हैं. जब गांव में आवागमन के कोई साधन नहीं थे, तो आसपास के गांव के लोग ही इलाज किया करते थे.

स्वतंत्रता सेनानी कालीचरण तिवारी फुर्सत के क्षणों में कविता भी लिखा करते हैं. उन्होंने कविता भी सुनायी, जो इस प्रकार है…..
अखिल विश्व का नेता गांधी,
अद्भुत गीता का ज्ञाता गांधी,
गांधी को गांधी मत समझो,
गांधी पृथ्वी का प्रह्लाद,
इंकलाब जिंदाबाद- इंकलाब जिंदाबाद…

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आंदोलनकारी रामनारायण शर्मा से प्रभावित देवी प्रसाद ने थाने में लगायी थी आग, अंग्रेजों के वाहन भी किये थे क्षतिग्रस्त

सारठ (देवघर) : 97 साल के देवी प्रसाद सिन्हा चौधरी आजादी के वक्त अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई को याद कर रोमांचित हो उठते हैं. मूल रूप से धनबाद के तांतरी चिरूडीह निवासी देवी प्रसाद बताते हैं कि 1941-42 के बीच 17 साल की उम्र में धनबाद के कतरास स्थित गंगानारायण मेमाेरियल स्कूल में पढ़ाई के दौरान धनबाद जिले के आंदोलनकारी रामनारायण शर्मा से प्रभावित हुए.

रामनारायण ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चला रखा था. उनकी बातों का ऐसा असर पड़ा कि वह भी आजादी के आंदोलन में शामिल हो गये. रामनारायण शर्मा के निर्देश पर उन्हें अंग्रेजों को तिरंगा दिखाने, विरोध करने और लाठी दिखाने का काम मिला. कई बार अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, दौड़ाया भी. कई बार विद्यालय जाकर भी उन्हें पकड़ने की कोशिश की, मगर वह हर बार चकमा देकर निकल जाते.

अंग्रेजों से बचने के लिए वह देवघर स्थित बहन के घर घोरलास में आकर छिपने लगे. इसी बीच उनकी शादी सारठ प्रखंड के शिमला गांव में वर्ष 1945 में हो गयी. इसके बाद यहीं से अपनी लड़ाई जारी रखी. तभी से ससुराल में ही रह रहे हैं.

देवी प्रसाद बताते हैं कि आंदोलन के वक्त अंग्रेजों का वाहन क्षतिग्रस्त कर दिया था. कई बार लाइन काट दी थी. थाने में भी आग लगायी. पिता बैकुंठनाथ सिंह चौधरी उस समय धनबाद जिला परिषद के चेयरमैन पद पर थे. वह भी 1924 में साइमन कमीशन के विरोध में जेल जा चुके थे.

देवी प्रसाद कहते हैं कि आज के दौर में वह सेवा भावना नहीं देखने को मिल रही, जो उस वक्त थी. इनके दो बेटे और एक बेटी है. बड़ा बेटा ब्रजकिशोर चौधरी धनबाद में रहते हैं. छोटा बेटा सच्चिदानंद चौधरी चितरा कोलियरी में व्यवसाय करते हैं. देवी प्रसाद का प्रात: 4 बजे से दिनचर्या योग के साथ शुरू होता है. नित्य पूजा के बाद ग्रामीणों के बीच मामूली दवा भी देते हैं.

Posted By : Samir Ranjan.

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