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चीन की बढ़ती गिरफ्त में पाकिस्तान

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सऊदी अरब को लग रहा है कि ये लोग उसके हित के बजाय अब चीनी हितों की पैरोकारी कर रहे हैं. अमेरिका भी इस बात से काफी चिंतित है. सऊदी अरब और चीन की भी दूरी बढ़ती जा रही है.

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कमर आगा, सामरिक मामलों के जानकार

delhi@prabhatkhabar.in

पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत ही खराब हैं. वह अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी बिल्कुल अलग-थलग पड़ चुका है. इस समय पाकिस्तान पूर्ण रूप से चीन के प्रभाव में है. चीन जो चाहता है, वे वही करते हैं. यही वजह है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ उनकी दूरी बढ़ती जा रही है. कई देश नाराज हो चुके हैं. यहां तक कि उनके समर्थक रहे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) जैसे देश भी दूर हो रहे हैं. सऊदी अरब ने छह बिलियन डॉलर और इसी तरह यूएई ने आर्थिक संकट के दौरान उनकी मदद की थी. वे पाकिस्तान से अब नाराज हो गये हैं.

पाकिस्तान को लगता है कि सऊदी अरब से अब उन्हें पैसे नहीं मिलेंगे और दूसरी बात, ये लोग भी इस्लामिक देशों के नेतृत्व का ख्वाब देखने लगे हैं. तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान के साथ मिलकर ओआइसी में नया गुट बनाने की कोशिश में लगे हैं. ओआइसी कोई विशेष प्रतिनिधित्व वाला समूह नहीं है, बल्कि यह नेताओं का एक क्लब है, जिसमें आकर वे रिजोल्यूशन पास कर देते हैं. उसको कोई देश गंभीरता के साथ लागू भी नहीं करता. पाकिस्तान यह सब करने की कोशिश कर रहा है, जिससे सऊदी अरब इनसे नाराज हो गया है.

सऊदी अरब को लग रहा है कि ये लोग उसके हित के बजाय अब चीनी हितों की पैरोकारी कर रहे हैं. अमेरिका भी इस बात से काफी चिंतित है. सऊदी अरब और चीन की भी दूरी बढ़ती जा रही है. चीन दस बिलियन डॉलर का पेट्रो-केमिकल प्लांट सऊदी में लगा रहा था, अब सऊदी अरब ने उससे इंकार कर दिया है. यूएइ भी इनसे खुश नहीं है, वह इजराइल के साथ अपने संबंध बेहतर कर रहा है. सऊदी अरब और यूएइ की पाकिस्तान की फौज पर जो निर्भरता थी, उसे भी धीरे-धीरे वे लोग कम कर रहे हैं. वे सूडान, इजिप्ट आदि देशों से वहां फौजें मंगवा रहे हैं.

कहने का तात्पर्य है कि ये पूर्ण रूप से चीन के प्रभाव में हैं और चीन इनका खुलकर इस्तेमाल कर रहा है. पाकिस्तान की सेना और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेना का अब एक ही लक्ष्य है- भारत विरोधी गतिविधियां. ये लोग भारत के खिलाफ काफी बड़ी प्लानिंग भी कर रहे हैं. अन्य देशों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगे हैं. मुझे नहीं लगता कि इनका प्रयास सफल होगा, क्यों पाकिस्तान के अंदर के हालात बहुत खराब हैं.

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) से इन्होंने सोचा था कि इससे पाकिस्तान की सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा और इनकी आर्थिक स्थिति सुधर जायेगी. लेकिन, वह होता नजर नहीं आ रहा है. बलूचिस्तान में लोग उनके खिलाफ हैं, सिंध में आक्रोश है और अब तो खैबर पख्तूनख्वा में भी लोग इन्हें समझने लगे हैं.

संयुक्त राष्ट्र में जाकर वे झूठ बोल रहे हैं, उसका वहां कोई असर पड़नेवाला नहीं है. सभी का यही मानना है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. सऊदी और यूएइ ने भी कह दिया है कि यह भारत का अंदरूनी मामला है. इनके कहने से क्या होगा. वे जमाने से इस तरह की बातें करते हैं. ऐसा करके कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उजागर करने की कोशिश में रहते हैं. वे चाहते हैं कि कश्मीर का मसला बना रहे, उसका बार-बार नाम आता रहे. अब उसे भी समर्थन नहीं मिल रहा है. वे अरबी आदि भाषाओं में वीडियो बनाकर वायरल कर रहे हैं. इसका कोई असर होनेवाला नहीं है और न ही इसे अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है.

भारत को बलूचिस्तान और सिंध के लोगों के अभियान को नैतिक समर्थन देना चाहिए. कार्यक्रम, सम्मेलन आदि के माध्यम से मंच उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि वे वैश्विक स्तर पर अपनी बातें पहुंचा सकें. इसमें अकेले नहीं, बल्कि अफगानिस्तान और अन्य देशों को भी शामिल करना चाहिए. दूसरी बात कि हमें तालिबान का खुलकर विरोध करना चाहिए, ताकि वह अफगानिस्तान में अपने पैर न जमाने पाये. वहां जो लोकतंत्र है, हमें चाहिए कि हम उसे और मजबूत करें. अगर तालिबानी वहां आते हैं, तो पहले सेना पर कब्जा करेंगे और इस सरकार को खत्म कर देंगे.

पाकिस्तान के जब अंदरूनी हालात खराब होते हैं, तो वह कश्मीर का राग अलापने लगता है. भारत को वह अपनी जनता में बड़े खतरे के रूप में दिखाता है. इसके बाद वह सीमा पर फायरिंग शुरू कर देगा. सीजफायर का उल्लंघन करेगा. भारत जब जवाब देता है, तो वह जनता को दिखायेगा कि देखो भारत से हमें खतरा है. वह लोगों का ध्यान भटकाता है. लेकिन, अब उसकी बात वहां काफी लोग समझ चुके हैं. कोरोना महामारी की वजह से उनकी अर्थव्यवस्था और भी खराब होती जा रही है.

कब तक वे चीन की मदद पर टिके रहेंगे. चीन की मदद बहुत सीमित है. वहां उद्योग-धंधे चौपट हो चुके हैं और बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई बहुत ज्यादा है और खाने-पीने के सामानों के दाम बहुत अधिक हो चुके हैं. एक तरफ सेना का आतंक है, दूसरी तरफ वहां के समर्थक आतंकवादी संगठनों का आतंक है. जहां भी कोई सरकार के खिलाफ बोलता है या लोकतंत्र समर्थन की मुहिम शुरू करता है, तो उसे आइएसआइ के लोग या आतंकवादी संगठन जाकर मार देते हैं. वहां के हालात वाकई बहुत ही खराब हैं. (बातचीत पर आधारित)

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