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Pitru Paksh 2020: पहला पितृपक्ष श्राद्ध आज, जानें खास नियम, श्राद्ध विधि और कैसे करें पितरों को याद

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Pitru Paksh 2020: आज से पितृपक्ष शुरू हो गया. आज श्राद्ध का पहला दिन है. आज अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखने के लिए पिंडदान करते है. धर्मशास्त्रों के अनुसार परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें पितृ कहा जाता है. जब तक कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं ले लेता, तब तक वह सूक्ष्मलोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी समस्याएं दूर करते हैं. इस बार पितृपक्ष 02 सितम्बर से 17 सितंबर तक रहेगा. मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने पितरों को प्रसन्न रखने तथा शांति के लिए कर्म नहीं करता, वह नाना प्रकार के कष्टों, रोग, शोक, संतान, कष्ट, राजकष्ट और भूमि कष्ट से पीड़ित होता है.

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Pitru Paksh 2020: आज से पितृपक्ष शुरू हो गया. आज श्राद्ध का पहला दिन है. आज अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखने के लिए पिंडदान करते है. धर्मशास्त्रों के अनुसार परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें पितृ कहा जाता है. जब तक कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं ले लेता, तब तक वह सूक्ष्मलोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी समस्याएं दूर करते हैं. इस बार पितृपक्ष 02 सितम्बर से 17 सितंबर तक रहेगा. मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने पितरों को प्रसन्न रखने तथा शांति के लिए कर्म नहीं करता, वह नाना प्रकार के कष्टों, रोग, शोक, संतान, कष्ट, राजकष्ट और भूमि कष्ट से पीड़ित होता है.

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कौन पितरों के लिए श्राद्ध कर सकता है

घर का वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है. उसके अभाव में घर को कोई भी पुरुष सदस्य कर सकता है. पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है. वर्तमान में महिलाएं भी तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं. इस अवधि में सुबह-शाम स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए. कुतप वेला में पितरों को तर्पण दें. इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है.

पितृपक्ष में कैसे करें पितरों को याद

पितृपक्ष में अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है. उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है. इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं.

क्या हैं पितृपक्ष के नियम

तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है. इनके साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है. जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है, उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं, प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें. जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें.

जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि

पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं. बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है. इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है.

श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यता

मान्यता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए. इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा. तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके. इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.

कर्ज लेकर ना करें तर्पण

पितरों को हल्की सुगंध वाले सफेद पुष्प अर्पित करने चाहिए. तीखी सुगंध वाले फूल वर्जित हैं. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तर्पण और पिंड दान करना चाहिए. पितृपक्ष में नित्य भगवदगीता का पाठ करें. कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए.

News Posted by: Radheshyam kusaha

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