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आफत की बारिश में डूब गये किसानों के पौने दो अरब

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पूर्णिया : जिले में इस साल खेती किसानी संकट में है. मौसम की मार से किसान बेहाल और परेशान हैं.

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पूर्णिया : जिले में इस साल खेती किसानी संकट में है. मौसम की मार से किसान बेहाल और परेशान हैं. मौसम ने पहले रबी के सीजन में कहर बरपाया और खरीफ के सीजन में आसमान से मुसीबत की बारिश हो गयी. दरअसल, इस बार इतनी अधिक बारिश हुई है कि धान का उत्पादन गत वर्ष का आधा भी नहीं हो पायेगा. समझा जाता है कि आफत की इस बारिश में किसानों के लगभग पौने दो अरब रुपये डूब जायेंगे. लिहाजा किसान तो परेशान हैं ही कृषि विभाग की भी चिंता बढ़ने लगी है. माॅनसून का आलम यह है कि इस साल अब तक सामान्य वर्षापात से काफी अधिक बारिश हुई. मौसम विभाग की मानें तो अब तक अधिक से अधिक 1418.9 मिमी. बारिश होनी चाहिए थी जबकि 1947.7 मिलीमीटर बारिश पूर्णिया में हो चुकी है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि धान के खेतों में 2 से 4 इंच तक जल का स्तर मेंटेन रखना जरूरी होता है जबकि इस बार धान के खेत डूब गये हैं. धान की फसलों की दुर्दशा देख किसानों के होंठ भी सूखने लगे हैं.

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गौरतलब है कि रबी में मौसम की मार से तबाह हुए किसानों ने इस साल बड़े पैमाने पर धान की खेती की थी. वैसे, धान पर शुरुआती दौर से ही मौसम की मार शुरू हो गयी. पहले दौर में बिचड़ा लगाया जो बारिश के कारण गल गया. मौसम साफ होने पर किसानों को दुबारा खर्च करना पड़ा. मौसम ने साथ दिया तो देखते-देखते धान की फसल खेतों में लहलहाने लगी और उसमें फूल और दाना भी आ गये. मगर, अचानक मौसम ने तेवर बदल लिया और बारिश का जो दौर शुरू हुआ वह अब तक जारी है. इससे किसानों को दो तरह के नुकसान हुए. पहले तो जिन पौधों में फूल आये थे वे झड़ गये. दूसरा नुकसान यह हुआ कि अत्यधिक बारिश के कारण निचले इलाके के खेत डूब गये. इसमें कहीं धान के पौधे डूब कर बेकार हो गये तो कहीं खेतों में अत्यधिक जलजमाव के कारण धान की कटनी नहीं हो पा रही है. अगर देखा जाये तो जिले के बाढ़ प्रभावित छह प्रखंडों में जुलाई के समय ही 15,530 हेक्टेयर धान व 264 हेक्टेयर जूट की क्षति का आकलन किया गया था.

किसानों की मानें तो आफत की इस बारिश में पचास फीसदी धान की फसल चौपट हो गयी है. प्रगतिशील किसान गोपाल प्रसाद बताते हैं कि एक हेक्टेयर भूखंड पर धान की खेती में औसतन 40 से 45 हजार का खर्च होता है. इस हिसाब से देखा जाये तो जिले में इस साल 95 हजार हेक्टेयर में धान का आच्छादन किया गया था जिसमें सिर्फ पचास फीसदी की यदि क्षति होती है तो खर्च का आंकड़ा 1 अरब 80 करोड़ तक पहुंचता है जबकि इसमें बाढ़ से हुए नुकसान का आंकड़ा और किसानों की अपनी मेहनत शामिल नहीं है. बरसौनी के किसान जनार्दन त्रिवेदी बताते हैं कि इस बार मौसम ने कहीं का नहीं छोड़ा है. पहले रबी में तैयार फसल मौसम और लॉक डाउन के कारण गोदाम और खलिहान में सड़ गयी और अब बारिश से हुए जलजमाव के कारण धान की फसल नुकसान का दर्द दे रही है. इस बारिश के कारण हुए नुकसान का कोई आकलन सरकारी तौर पर अभी तक नहीं हो सका है. किसानों का कहना है कि उन्हें अगली फसल के लिए पूंजी और महाजन के कर्ज की अदायेगी की चिंता है क्योंकि धान से बहुत उम्मीद नहीं रह गयी है.

posted by ashish jha

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