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आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का विज्ञान है क्रिया योग

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योग महज शरीर को फिट रखने की विधि मात्र नहीं, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित रूप से विकसित करने की श्रेष्ठ कला है, जिसके बारे में आदिकाल से सनातन धर्म के विभिन्न गुरु, ऋषि-मुनि बताते आये हैं.

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स्वामी शुद्धानंद, योगदा आश्रम, रांची

आधुनिककाल में परमहंस योगानंद जी ने आज से करीब सौ वर्ष पूर्व पाश्चात्य देशों को इससे परिचय करवाया. उनके द्वारा बताये गये क्रिया योग में वह क्षमता है, जिसके निरंतर अभ्यास से शरीर अंतत: महाप्राणशक्ति की अनंत संभावनाओं को व्यक्त करने के योग्य हो सकता है.

योग साधना का विशेष अंग है- ध्यान. इसे आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का विज्ञान कह सकते हैं. जैसे हम सब सागर की लहरों की तरह हैं, इसलिए दुख में रहते हैं. जैसे ही अपनी सीमाओं को लांघकर सागर की विशालता का अनुभव करते हैं, तो यह ध्यान की अवस्था है. क्रिया योग ध्यान की वह विशेष पद्धति है, जिसकी शिक्षा श्रीश्री परमहंस योगानंद जी ने दी. इसके बारे में परमहंस जी ने कहा था- ”क्रिया गणित की भांति कार्य करती है, यह कभी विफल नहीं हो सकती.”

क्रिया योग का अर्थ है- एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनंत परमतत्व के साथ मिलन (योग). यह एक सरल मन:कायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन रहित होकर ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है. इस अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु प्राण-धारा में रूपांतरित हो जाते हैं, जो मस्तिष्क और मेरुदंड के चक्रों में नवशक्ति का संचार कर देती है. शिराओं में बहनेवाले अशुद्ध रक्त का संचय रुक जाने से योगी उत्तकों में होनेवाले ह्रास को रोक सकता है या कम कर सकता है.

भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने क्रिया योग की चर्चा दो बार की. एक श्लोक में वे कहते हैं- ”अपान वायु में प्राणवायु के हवन द्वारा और प्राणवायु में अपान वायु के हवन द्वारा योगी प्राण और अपान, दोनों की गति को रुद्ध कर देता है. इस प्रकार वह प्राण को हृदय से मुक्त कर लेता है और प्राणशक्ति पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है.”

क्रियायोगी मन से अपनी प्राणशक्ति को मेरुदंड के छह चक्रों (आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान तथा मूलाधार) में ऊपर-नीचे घुमाता है. ये छह चक्र विराट पुरुष के प्रतीक स्वरूप बारह राशियों के समान हैं. मनुष्य के सूक्ष्मग्राही मेरुदंड में आधे मिनट के प्राणशक्ति के ऊपर-नीचे प्रवहन से उसके क्रमविकास में सूक्ष्म प्रगति होती है. आधे मिनट की यह क्रिया एक वर्ष की आध्यात्मिक उन्नति के बराबर है.

सामान्य मनुष्य का शरीर 50 वाट के विद्युत बल्ब के समान होता है, जो क्रिया के अत्यधिक अभ्यास से उत्पन्न करोड़ों वाट की विद्युत शक्ति को सहन नहीं कर सकता. मगर क्रिया योग के निरंतर अभ्यास से शरीर इस आंतरिक ऊर्जा के लिए सक्षम हो जाता है. इसलिए मन को शांत कर कुछ समय ध्यान में बिताएं. विस्तृत जानकारी के लिए www.yssofindia.org पर जाएं.

Posted by : Pritish Sahay

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