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रजरप्पा के मां छिन्नमस्तिके मंदिर में कार्तिक अमावस्या के दिन तंत्र-मंत्र सिद्धि का है विशेष महत्व, कई स्थानों से पहुंचते हैं साधक

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Jharkhand news, Ramgarh news : रामगढ़ जिला अंतर्गत रजरप्पा मंदिर में काली पूजा की तैयारी जोर-शोर से की जा रही. मंदिर को रंग-रोगन कर भव्य एवं आकर्षक रूप दिया जा रहा है. यहां के हवन कुंडों की भी साफ-सफाई की जा रही है, ताकि श्रद्धालु यहां हवन कर तंत्र साधना कर सके.

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Jharkhand news, Ramgarh news : रजरप्पा (सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार) : रामगढ़ जिला अंतर्गत रजरप्पा मंदिर में काली पूजा की तैयारी जोर-शोर से की जा रही. मंदिर को रंग-रोगन कर भव्य एवं आकर्षक रूप दिया जा रहा है. यहां के हवन कुंडों की भी साफ-सफाई की जा रही है, ताकि श्रद्धालु यहां हवन कर तंत्र साधना कर सके.

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गौरतलब हो कि काली पूजा को लेकर यहां रात भर मां छिन्नमस्तिके देवी मंदिर खुला रहता है. जहां लोग मां भगवती की पूजा-अर्चना करते हैं. देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थल रजरप्पा मंदिर में कार्तिक अमावस्या के अवसर पर तंत्र-मंत्र की देवी महामाया मां काली की पूजा का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि यहां 10 महाविद्या में मां काली को पहला व मां छिन्नमस्तिके का चौथा स्थान है. जिस कारण यहां तंत्र-मंत्र सिद्धि का विशेष महत्व है.

यहां काली पूजा की रात्रि झारखंड के अलावे पश्चिम बंगाल, बिहार, ओड़िशा, यूपी सहित कई राज्यों से साधक, श्रद्धालु एवं तांत्रिक पहुंचते हैं और तंत्र साधना सिद्धि प्राप्त करते हैं. यह स्थान अमावस्या की रात में मंत्र सिद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है. रजरप्पा मंदिर जंगलों से घिरा हुआ है. इसलिए एकांतवास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति के लिए यहां जुटते हैं.

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रजरप्पा मंदिर के वरिष्ठ पुजारी असीम पंडा ने बताया कि तंत्र साधना के लिए असम के कामाख्या मंदिर के बाद दूसरा स्थान रजरप्पा के मां छिन्नमस्तिके मंदिर का आता है. इसलिए इस दिन निशा रात्रि में पूजा का महत्व बढ़ जाता है. इस रात में मां छिन्नमस्तिके एवं मां काली की पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है.

मां की स्वरूप एवं नाम की सार्थकता

मां छिन्नमस्तिके देवी की जो स्वरूप है उसमें एक कमल पुष्प पर कामदेव-क्रिया में लीन हैं, जबकि इसके ऊपर मां छिन्नमस्तिके मुंडमाला युक्त खड़ी है. जिन्होंने स्वयं के खड़ग से अपना शीश काट लिया है. उनके एक हाथ में रक्तरंजीत खड़ग एवं दूसरे हाथ में कटा मस्तक है. कटी गर्दन से रक्त की 3 धाराएं निकलती है. जिसकी एक धारा स्वयं के कटे शीश के मुंह में तथा दो धाराएं उनके दोनों ओर खड़ी हुई योगनियों के मुंह में प्रविष्ट हो रही है. इसी स्वरूप के कारण मां छिन्नमस्तिके देवी के नाम से जानी जाती है.

यहां विराजमान है मां काली का रूप

रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिके देवी की मुख्य मंदिर के अलावे पश्चिमी छोर में कुमुद प्रीता ट्रस्ट द्वारा बनाये गये मां काली का प्रतिमा स्थापित है. यहां भी काली पूजा की रात भव्य पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही बड़ी संख्या में साधक एवं तांत्रिक एकांतवास में तंत्र- मंत्र की सिद्धि प्राप्त करते हैं.

यहां होती है मां काली की पूजा

रजरप्पा के अलावा चितरपुर, बड़कीपोना सुकरीगढ़ा लारी, मारंगमरचा, गोला प्रखंड के गोला, बरियातू, पूरबडीह, बरलंगा के अलावे दुलमी प्रखंड क्षेत्र के कई गांवों में मां काली की पूजा धूमधाम से मनायी जाती है.

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Posted By : Samir Ranjan.

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