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जातिगत ध्रुवीकरण बहुत हुआ

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नवीन जोशी

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यह तो स्पष्ट दिख रहा है कि बिहार में एनडीए की जीत वास्तव में भारतीय जनता पार्टी की जीत है. इसे नीतीश कुमार की जीत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि भाजपा की सीटों में बड़ी बढ़त है, जबकि जदयू का काफी नुकसान हुआ है. नीतीश कुमार पहली बार बिहार एनडीए में जूनियर पार्टनर हो गये हैं. इससे इंगित होता है कि नीतीश कुमार की राजनीति शिखर छू चुकी है तथा अब वे ढलान पर हैं और उन्हें आगे भाजपा के साये में ही रहना है. उल्लेखनीय है कि एक समय वह भी था, जब नीतीश कुमार को भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में नरेंद्र मोदी के बराबर देखा जाता था.

नतीजों और रूझानों का एक बड़ा संकेत यह है कि इस बार जातिगत ध्रुवीकरण बहुत हुआ है. एक तरफ यादव और मुस्लिम मुख्य रूप से लामबंद हुए, तो दूसरी ओर गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर और सवर्ण वोट एक साथ हो गये. इसी ध्रुवीकरण का परिणाम है कि 70 सीटों पर कुछ सौ और हजार के फासले दिख रहे हैं. इसीलिए दोनों पक्षों के बीच कांटे की टक्कर हुई है. और, यह चुनाव किसी भी करवट बैठ सकता था.

भाजपा की बढ़त ने एनडीए को बचा लिया है. लोकसभा के चुनाव में भी बिहार में जो एनडीए को भारी जीत मिली थी, उसकी वजह भी यही थी कि भाजपा ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया था. सो, यह वोट नीतीश से नाराजगी का, उनके विरोध का है और भाजपा के समर्थन में है.

तीसरी मुख्य बात यह निकलकर आती है कि बिहार में कांग्रेस का उभार होता नहीं दिख रहा है. बड़ी संख्या में सीटों पर लड़ने के बावजूद उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. यदि कांग्रेस ने थोड़ा भी अच्छा प्रदर्शन कर दिया होता, तो महागठबंधन की सरकार बनने में कोई दुश्वारी नहीं होती.

राजद और तेजस्वी यादव का अहम वजूद बिहार की राजनीति में बना रहेगा और उन्हें किसी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है. इसमें लालू यादव की विरासत भी एक कारक है और तेजस्वी यादव का जमीन पर उतरकर सक्रियता दिखाना भी. अब राजद राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. वाम दलों, खासकर सीपीआइ (एमएल), के अच्छे प्रदर्शन से इंगित होता है कि उनका आधार बना हुआ है तथा दलित, वंचित व भूमिहीन मतदाताओं तक उनकी पहुंच है.

इसीलिए वे अपने मतदाता को मतदान केंद्र तक लाने में कामयाब हुए. यह भी लगता है कि ओवैसी की मीम पार्टी ने कांग्रेस को तीसरे चरण में बहुत नुकसान पहुंचाया है. जिन क्षेत्रों में मुस्लिम और यादव मतदाताओं के कांग्रेस के साथ जाने की उम्मीद थी, वहां ओवैसी ने अपना असर दिखा दिया है. जहां तक चिराग पासवान की बात है, तो वे नीतीश कुमार को कमजोर करने के एजेंडे में कामयाब हुए हैं.

भाजपा ने खूबसूरती से उनका इस्तेमाल किया और उन्हें नीतीश कुमार का नुकसान करने दिया. अब यह तो भविष्य की बात है कि वे रामविलास पासवान की विरासत को आगे ले जा पायेंगे या नहीं. अभी तो वे भाजपा के हाथ के खिलौने के रूप में ही दिख रहे हैं. कुल मिलाकर, यह चुनाव भाजपा की व्यक्तिगत जीत है और तेजस्वी यादव एक उभरती हुई राजनीतिक ताकत हैं.

posted by : sameer oraon

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