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jharkhand news : चंबल के बीहड़ों में दलितों के लिए संघर्ष कर रही झारखंड की बेटी

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सुनीता लकड़ा (36 वर्ष) संभवत: पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने ‘सरना धर्म कोड’ को लेकर ऑनलाइन आंदोलन चलाया है. सुनीता ने करीब डेढ़ वर्ष पहले ‘सरना धर्म कोड’ की मांग लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘चेज डॉट ओआरजी’ पर हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था. 5500 से अधिक लोगों ने साइट पर उनके अभियान का समर्थन किया है.

सुनीता के जज्बे की यह कहानी बानगी भर है. दरअसल, वे पिछले 15 वर्षों से आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के लिए जमीन पर काम कर रही हैं. रांची की रहनेवाली सुनीता फिलहाल मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में हैं और वहां दलितों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं. दलितों को उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरूक कर हक दिलाने में लगी हैं. वह कहती हैं : मैं सोशल एक्टिविस्ट हूं.

यह मेरा फुल टाइम जाॅब है. सरना कोड लागू करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित होने की जानकारी मुझे तब मिली, जब मैं चंबल के बीहड़ों में दलितों के लिए काम कर रही थी. मैंने ऑनलाइन अभियान चला कर सरना कोड लागू कराने और लोगों को जागरूक करने का छोटा सा प्रयास किया था. आदिवासी और दलित समुदाय अब भी इंटरनेट की दुनिया से दूर है.

इन समुदायों के कम लोगों को ही सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा है. इसी कारण से भले ही अब तक केवल 5500 लोगों ने ही अपना हस्ताक्षर कर अभियान का समर्थन किया हो, लेकिन मुझे पता है कि इससे कहीं बड़ी संख्या में आदिवासी और गैर आदिवासी सरना कोड लागू कराने के पक्षधर हैं.

झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने सही मांग रखी

सुनीता लकड़ा कहा : मैंने अपना धर्म माननेवाले पूरे देश के आदिवासियों के लिए अलग कोड की मांग की थी. खुशी है कि झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने सही मांग रखने का फैसला लिया. यह पहली बार है, जब मैं झारखंड के बाहर सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से काम करने निकली हूं.

posted by : sameer oraon

सुनीता लकड़ा (36 वर्ष) संभवत: पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने ‘सरना धर्म कोड’ को लेकर ऑनलाइन आंदोलन चलाया है. सुनीता ने करीब डेढ़ वर्ष पहले ‘सरना धर्म कोड’ की मांग लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘चेज डॉट ओआरजी’ पर हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था. 5500 से अधिक लोगों ने साइट पर उनके अभियान का समर्थन किया है.

सुनीता के जज्बे की यह कहानी बानगी भर है. दरअसल, वे पिछले 15 वर्षों से आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के लिए जमीन पर काम कर रही हैं. रांची की रहनेवाली सुनीता फिलहाल मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में हैं और वहां दलितों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं. दलितों को उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरूक कर हक दिलाने में लगी हैं. वह कहती हैं : मैं सोशल एक्टिविस्ट हूं.

यह मेरा फुल टाइम जाॅब है. सरना कोड लागू करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित होने की जानकारी मुझे तब मिली, जब मैं चंबल के बीहड़ों में दलितों के लिए काम कर रही थी. मैंने ऑनलाइन अभियान चला कर सरना कोड लागू कराने और लोगों को जागरूक करने का छोटा सा प्रयास किया था. आदिवासी और दलित समुदाय अब भी इंटरनेट की दुनिया से दूर है.

इन समुदायों के कम लोगों को ही सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा है. इसी कारण से भले ही अब तक केवल 5500 लोगों ने ही अपना हस्ताक्षर कर अभियान का समर्थन किया हो, लेकिन मुझे पता है कि इससे कहीं बड़ी संख्या में आदिवासी और गैर आदिवासी सरना कोड लागू कराने के पक्षधर हैं.

झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने सही मांग रखी

सुनीता लकड़ा कहा : मैंने अपना धर्म माननेवाले पूरे देश के आदिवासियों के लिए अलग कोड की मांग की थी. खुशी है कि झारखंड सरकार ने केंद्र के सामने सही मांग रखने का फैसला लिया. यह पहली बार है, जब मैं झारखंड के बाहर सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से काम करने निकली हूं.

posted by : sameer oraon

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