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B Positive : सार्थक बहस करें

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B Positive : हालिया एक अनुभव आपसे साझा करता हूं. मेरे कुछ मित्र अपने प्रोफेशनल काम को लेकर व्हाट्सएप ग्रुप में आपस में संवाद कर रहे थे. संयोगवश वो एक ही संस्थान में अलग- अलग विभागों में काम भी करते हैं. एक मित्र जिसकी एक विशेषक्षेत्र में अच्छी जानकारी है और जिन्होंने मेहनत और सोच के आधार पर संस्थान को बेहतर मुकाम पर पहुंचाने में मदद की है, को दूसरे सहयोगी ने कुछ सुझाव बहुत ही संजीदा तरीके से दिया कि तुम जो कर रहे हो, उसमें अगर ये वैल्यू एडिशन किया जाये, तो काम में और बेहतरी की संभावना है. मैंने अनुभव किया कि पहले वाले मित्र का प्रत्युत्तर बहुत ही तल्ख था. ऐसा लगा कि जैसे उसे ये नागवार है कि जिस विषय में उसकी प्रवीणता है उसे कैसे कोई सुझाव दे सकता है या कोई और इस विषय में उससे अलग दृष्टिकोण कैसे रख सकता है.

ऐसे लोग चाहे- अनचाहे अपनी आंख और कान बंद कर लेते हैं. जो सोच लिया उसके आगे किसी भी विषय के बारे में सोचना चाहते ही नहीं हैं. बहुत बार सिर्फ परिकल्पना- अवधारणा के आधार पर अपनी समझ का निर्माण कर लेते हैं. बहुतायत इंसान की प्रवृति इस उदाहरण के माध्यम से समझें. हम सभी ये जानते हैं कि कोरोना के संक्रमण से विज्ञान के माध्यम से ही निजात मिल सकता है. टीका और दवा का ईजाद ही इसका प्रभावी इलाज हो सकता है, लेकिन पिछले आठ महीने में तमाम अंधविश्वास व भ्रांतियों के आधार पर इससे निजात ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं या मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहे हैं.

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मेरा मानना है कि इंसान दो वजहों से विमर्श से भागता है. पहली वजह है उसका कूपमंडूक होना. उसे लगता है कि जो उसने अर्जित कर लिया है वो दुनिया का अंतिम सत्य है या इससे परे कुछ हो ही नहीं सकता है. उसने ये भी देखा कि उसने कितनी प्रगति की है, लेकिन उसने ये देखने की कोशिश ही नहीं कि कितना प्रगति का अवसर उपलब्ध था. दूसरी वजह है इंसान का अपने ऊपर विश्वास का अभाव. इंसान को ऐसा लगता है कि कहीं विमर्श होने के कारण उसकी जानकारी के स्तर के बारे में लोगों को जानकारी ना हो जाये या फिर दुनिया को ऐसा ना लगे कि दूसरा व्यक्ति जो विमर्श कर रहा है वो ज्यादा जानकार है.

वस्तुतः इंसान विमर्श से भागकर अपने आगे बढ़ने के मार्ग को ही अवरुद्ध कर लेता है. हम जब विमर्श करते हैं, तो कोई जरूरी नहीं है कि जो सामने वाला कह रहा है वो बिल्कुल सही है और उसे मानना बाध्यकारी है. लेकिन, कम से कम विमर्श में जो सुझाव आ रहे हैं उसपर एकबार जरूर गौर करना चाहिए. शायद कोई ऐसी बात हो जो हमसे परे हो या जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी ना हो और बेहतर सुझाव को आत्मसात कर हम अपनी क्षमता का विकास करते हैं. वैसे भी अगर अनुवांशिक रूप से भी देखें, तो हर व्यक्ति दूसरे से अलग है और जब अलग है तो हर व्यक्ति के सोचने का नजरिया अलग होना स्वाभाविक है.

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एक और भ्रम से हमें निजात पा लेना चहिए कि किसी भी प्रतिभाशाली या जानकर व्यक्ति को सामने आने से रोका जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अगर प्रतिभाशाली है, तो देर- सवेर उसकी प्रतिभा दुनिया के सामने आ ही जाती है और उस व्यक्ति के आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो ही जाता है. इसलिए बेहतर है अपने को सकारात्मक रखते हुए विमर्श करना और उन विषयों पर भी विमर्श करना चाहिए जो हो सकता है खुद के लिए भी असहज हो.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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