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कोसी नदी का घटा जलस्तर तो बाहर आया बौद्धकालीन दीवार का साक्ष्य, जानें पूरी कहानी

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कोसी नदी के जलस्तर में कमी आने के साथ ही बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर गांव के गुवारीडीह बहियार में पुरातात्विक महत्व वाली सामग्रियों के मिलने का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है. जयरामपुर के अविनाश कुमार के नेतृत्व में चलाये जा रहे सर्च अभियान में ग्रामीणों की आंखें तब फटी रह गयीं जब एक पुरानी दीवार का स्पष्ट साक्ष्य दिखा. यह दीवार गुवारीडीह के टीले से दो फीट नीचे से शुरू हुई है. अनुमान लगाया जा रहा है कि जो साक्ष्य मिला है वह दीवार का ऊपरी हिस्सा हो सकता है और इसका नीचे का हिस्सा कोसी नदी की सतह से काफी नीचे होगा. ग्रामीणों ने सावधानी पूर्वक करीब 10 फीट चौड़ाई में दीवार को बाहर निकाला है. दीवार में एक फीट लंबा और एक फीट चौड़ा ईंट का इस्तेमाल हुआ है.

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ऋषव मिश्रा कृष्णा, नवगछिया: कोसी नदी के जलस्तर में कमी आने के साथ ही बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर गांव के गुवारीडीह बहियार में पुरातात्विक महत्व वाली सामग्रियों के मिलने का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है. जयरामपुर के अविनाश कुमार के नेतृत्व में चलाये जा रहे सर्च अभियान में ग्रामीणों की आंखें तब फटी रह गयीं जब एक पुरानी दीवार का स्पष्ट साक्ष्य दिखा. यह दीवार गुवारीडीह के टीले से दो फीट नीचे से शुरू हुई है. अनुमान लगाया जा रहा है कि जो साक्ष्य मिला है वह दीवार का ऊपरी हिस्सा हो सकता है और इसका नीचे का हिस्सा कोसी नदी की सतह से काफी नीचे होगा. ग्रामीणों ने सावधानी पूर्वक करीब 10 फीट चौड़ाई में दीवार को बाहर निकाला है. दीवार में एक फीट लंबा और एक फीट चौड़ा ईंट का इस्तेमाल हुआ है.

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दीवार की ईंटेें बांका में मिली ईंटों के समरूप

इन ईंटों की लंबाई-चौड़ाई हाल ही में बांका जिले में चानन नदी में मिली ईंटों की लंबाई-चौड़ाई के समरूप है. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चानन और गुवारीडीह में एक ही तरह की सभ्यता रही होगी. कुछ इतिहासकार इन अवशेषों को बौद्धकालीन तो कुछ कुषाण कालीन बता रहे हैं.

अबतक कई तरह की सामग्रियां मिलीं

ग्रामीण अविनाश कुमार के नेतृत्व में चलाये जा रहे सर्च अभियान में और भी कई तरह की चीजें कोसी कछार से निकाली गयी हैं जिनमें सुंदर कलाकृतियों वाले मिट्टी के बर्तन, पत्थरों से बनाये गये औजार और जानवरों की हड्डियां और दांत शामिल हैं.

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कहते हैं ग्रामीण

ग्रामीण अविनाश कुमार ने कहा कि वे लोग यहां करीब 10 माह से सर्च अभियान चलाकर सामग्री इकट्ठी कर रहे हैं. सभी सामग्रियों को सुरक्षित रखा गया है. इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले और इतिहासकार आये दिन इन सामग्रियों को देखने आते हैं. दीवार के साक्ष्य मिलने के बाद बिहार-झारखंड के कई इतिहासकार और पुराविदों की यहां पर नजर है. सरकार से गुवारीडीह में अन्वेषण कराये और इसे ऐतिहासिक धरोहर घोषित करे. सर्च अभियान में ग्रामीण कुक्कू कुमार और विकास कुमार आदि शामिल हैं.

अतीत में चंपा की बंदरगाह या सराय रहा होगा गुवारीडीह

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्राध्यापक डॉ दिनेश कुमार गुप्ता ने बताया कि दीवार मिलना बहुत ही उत्साहित करने वाला घटनाक्रम है. इससे यह तथ्य और भी पुष्ट होता है कि यहां पर एक मिलीजुली सभ्यता विकसित रही होगी जिसकी शुरुआत कुषाणकाल में हुई हो सकती है. अब तक मिली सामग्रियों में कुछ कुषाण कालीन और कुछ बौद्ध कालीन हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यहां की सभ्यता 3000 वर्ष पुरानी रही होगी. यानी जब चंपा अंग प्रदेश की राजधानी रही होगी तो उसी समय गुवारीडीह एक बड़ी बंदरगाह या सराय रहा होगा.

नवगछिया इलाके में भी नागरीय सभ्यता विकसित रही होगी

पुरातत्वविद डॉक्टर पवन शेखर ने कहा कि गत दिनों ही चानन नदी से पुरातत्व महत्व वाली ईंटें बरामद हुई थीं जो यहां मिली ईंटों से मिलती जुलती हैं. इससे कहा जा सकता है कि चंपा के साथ ही नवगछिया इलाके में भी नागरीय सभ्यता विकसित रही होगी. गुवारीडीह एक महत्वपूर्ण स्थल है जिसे सरकार को संरक्षित करना चाहिए.

कहते हैं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष

टीएमबीयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो बिहारी लाल चौधरी ने कहा कि करीब सात माह से विभाग गुवारीडीह पर काम कर रहा है. कोरोना काल में कार्य प्रभावित हुआ. गुरुवार को यहां मिली दीवार के साक्ष्य का अध्ययन विभाग के विद्वानों द्वारा किया जा रहा है. जल्द ही विभाग की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की जायेगी. यहां मिली सामग्रियों को भी संरक्षित करने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी.

Posted by: Thakur Shaktilochan

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