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पद्मश्री अशोक भगत

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सचिव, विकास भारती, झारखंड

vikasbharti1983@

पलायन और मानव तस्करी झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की एक बड़ी समस्या है़, लेकिन जनजातीय समाज में तुलनात्मक रूप से यह कहीं अधिक व्यापक पैमाने पर देखने को मिलती है़ चूंकि झारखंड अति पिछड़ा जनजातीय प्रदेश है, इसलिए यहां ये दोनों समस्याएं बहुत ही भयावह रूप में मौजूद है़ं आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं, तो प्रत्येक वर्ष मानव तस्करी के दो हजार से ज्यादा मामले सामने आते है़ं अभी हाल में ही झारखंड सरकार ने उच्च न्यायालय को इस तथ्य से अवगत कराया है कि कोरोना महामारी काल में 214 बच्चे झारखंड से लापता हुए है़ं.

पिछले वर्ष इस राज्य में मानव तस्करी को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये़ वर्ष 2019 के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि इस वर्ष राज्य में सीडब्ल्यूसी के पास लगभग 985 मामले आये, जिसमें 550 से ज्यादा तस्करी के मामले थे़ ज्ञात हो कि यहां मानव तस्करी का कार्य बाल श्रम माध्यम के जरिये (चाइल्ड लेबर मोड में) होता है़ झारखंड की किशोरियों को देशभर के बड़े शहरों में बेचा जा रहा है़ इनमें 12 से 18 वर्ष की उम्र की सबसे अधिक बच्चियां शामिल है़ं

सीडब्ल्यूसी सदस्यों का कहना है कि पहले मानव तस्करी के खिलाफ बड़े पैमाने पर एफआइआर दर्ज हुआ करते थे, लेकिन जैसे-जैसे पुलिस तस्करी को लेकर सतर्क हुई है, वैसे ही मानव तस्करों ने तस्करी का तरीका भी बदल लिया है़ यही कारण है कि ये तस्कर अब पहले की तरह पुलिस की गिरफ्त में बहुत कम आ पाते हैं और तस्करी का काला कारोबार बड़ी तेजी से फैलता चला जा रहा है़

सीडब्लूसी के अधिकारियों का कहना है कि पहले ट्रेन और बसों के माध्यम से झारखंड की बेटियां बाहर भेजी जाती थीं, लेकिन अब फ्लाइट के जरिये भी इन बच्चियों को बाहर भेजा जा रहा है़ इसलिए हवाई अड्डों पर भी निगरानी की जरूरत अब बढ़ गयी है़

कुछ आंकड़ों में यह भी बताया गया है कि प्रत्येक वर्ष झारखंड के 30 लाख से अधिक मजदूर पलायन कर दूसरे राज्य में चले जाते है़ं वहीं, गैर सरकारी संगठनों के आंकड़ों की मानें, तो झारखंड से प्रति वर्ष लगभग 50 लाख लोग पलायन कर कमाने के लिए दूसरे राज्यों का रुख कर लेते है़ं वहां जाकर इन मजदूरों को हर तरह के शोषण का शिकार होना पड़ता है़

झारखंड की एक बड़ी समस्या यह है कि राज्य से केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियां भी पलायन करती है़ं यहां यह जानना भी बेहद जरूरी है कि झारखंड से ज्यादा जनजाति छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन वहां झारखंड की तुलना में पलायन का प्रतिशत बहुत कम है़

झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या 26.2 प्रतिशत है और छत्तीसगढ़ में 30.6 प्रतिशत है, लेकिन झारखंड के मजदूर काम के लिए पलायन कर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा जाते हैं, परंतु इन दोनों प्रांतों से बहुत कम मजदूर झारखंड आते है़ं इससे स्पष्ट तौर पर यह बात साबित हो जाती है कि झारखंड की तुलना में उसके पड़ोस के इन आदिवासी बाहुल्य राज्यों में अधिक अवसर मौजूद हैं और झारखंड में रोजगार के अवसरों की घोर कमी है़

यहां यह बताना आवश्यक है कि झारखंड राज्य की 76 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जबकि शेष 24 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है़ आज से ठीक 20 वर्ष पहले 2001 में, राज्य की जनसंख्या 2.69 करोड़ थी़ दशकीय जनसंख्या वृद्धि के तहत 2011 में हुई जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या बढ़ कर लगभग 3.3 करोड़ तक पहुंच गयी़

इसी क्रम में 2021 में राज्य की कुल आबादी के 4.01 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है़ एक परिवार में औसतन पांच सदस्य होते है़ं इस हिसाब से देखें, तो पूरे झारखंड में करीब 80 लाख, 20 हजार परिवार निवास करते है़ं इनमें से एक चौथाई प्रति वर्ष काम की तलाश में पलायन कर दूसरे राज्यों में चले जाते हैं और वहीं काम करने लगते है़ं.

झारखंड सरकार का दावा है कि उनके पास 10 लाख प्रवासी मजदूरों की सूची है़ हालांकि, गैर सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि कोरोना काल में कम से कम 20 लाख प्रवासी मजदूर वापस झारखंड आ गये़ राज्य वापस लौटे इन मजदूरों में से कुछ तो काम के अभाव के कारण दूसरे राज्य चले गये, जबकि कुछ अब भी यहीं है़ं वापस न लौटने वाले ये मजदूर सरकार के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर रहे है़ं

सरकार यदि चाहे तो इस चुनौती को अवसर में बदल सकती है़ सच पूछिए, तो पलायन को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सकता है, क्योंकि जिसे जहां बेहतर अवसर मिलेगा, वह वहां जायेगा ही़ यह सत्य है कि बेहतर अवसर लोगों को आकर्षित करते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसी बेहतरी के चक्कर में झारखंड के मजदूरों को बड़े पैमाने पर शोषण का शिकार होना पड़ रहा है़ इसे विडंबना ही कहेंगे कि बेहतर जीवन की तलाश में झारखंड से बाहर दूसरे राज्य जाने वाले इन मजदूरों के पलायन को भी मानव तस्कर एक अवसर के रूप में देखते है़ं

झारखंड से ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मुंबई, दिल्ली, सूरत, हैदराबाद और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में सर्वाधिक पलायन होता है़ फिलहाल सरकार के पास महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ही एक मात्र ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ा-बहुत रोजगार का सृजन हो पा रहा है़ इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर योजना बनाने की जरूरत है़

posted by : sameer oraon

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