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जिले के सबसे बड़े अस्पताल में सर्जन मौजूद, फिर भी आठ साल से नहीं हुआ एक भी ऑपरेशन, जानें पूरा मामला

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जिले में जो आंख के डॉक्टर हैं, उन्हें दे दिया पीएचसी का प्रभार अब वह सामान्य चिकित्सक की तरह कर रहे मरीजों का इलाज

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बक्सर. सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने के लिए सरकार विभिन्न अखबारों में मोटे-मोटे अक्षरों में लाखों रुपये खर्च कर प्रचार-प्रसार कर रही है.

बावजूद इसके जिला के सबसे बड़े सदर अस्पताल में तकरीबन आठ साल से एक भी मरीज का मोतियाबिंद का ऑपरेशन नहीं किया गया.

लोगों की मानें तो मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने पहुंचे मरीजों को सदर अस्पताल में कह दिया जाता है कि आप निजी अस्पताल में ऑपरेशन करा लीजिए.

जबकि सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने वाले मरीजों को ऑपरेशन कराने के साथ-साथ लेंस की भी सुविधा मुफ्त में दी जाती है. सदर अस्पताल में ऑपरेशन की सारी सुविधा उपलब्ध है.

जबकि सदर अस्पताल में नेत्र का अलग से विभाग है. बावजूद इसके यहां एक चिकित्सक भी हैं. यह अलग बात है कि नेत्र का चिकित्सक होते हुए भी मोतियाबिंद का ऑपरेशन नहीं हो रहा है.

जबकि सदर अस्पताल में आंख के एक चिकित्सक का पदस्थापन गत तीन माह पहले ही कर दिया गया है. डॉ राजू लाल नेत्र चिकित्सक हैं. मगर मरीजों को ऑपरेशन के लिये दूसरे जगह शरण लेना पड़ रहा है.

पहले लगाया जाता था शिविर, अब मरीजों भेजा जाता है निजी अस्पताल

यह अलग बात है कि आठ साल पहले सरकारी अस्पताल में मरीजों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने के लिए शिविर लगाया जाता था. मगर अब अस्पताल पहुंच रहे मरीजों को निजी अस्पतालों में डॉक्टर की कमी का बहाना बनाकर टरका दिया जाता है.

जबकि अस्पताल सूत्रों का कहना है कि जब तक यहां डॉ सुरेंद्र प्रसाद जिले में पदस्थपित रहे, तब तक खूब मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने के लिए पुराना सदर अस्पताल में शिविर लगाया जाता था.

मगर जब से नये सदर अस्पताल का निर्माण हुआ है, तब से लेकर अब तक एक भी मोतियाबिंद का ऑपरेशन नहीं किया गया. जबकि यहां इसके सर्जन भी उपलब्ध हैं. वहीं डॉ अरूण कुमार चौसा पीएचसी के प्रभारी हैं.

डॉ शालीग्राम पांडेय लेप्रोसी का जिम्मेदारी संभाले हैं. वहीं अभिषेक सिंह नावानगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सामान्य चिकित्सक की जिम्मेदारी अपनी डिग्री छिपाकर कर रहे हैं.

Posted by Ashish Jha

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