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भारतीय बच्चों के फेफड़े सबसे कमजोर, जानिये वजह, पढ़ें यह खास रिपोर्ट

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भारतीय बच्चों का फेफड़ा अमेरिकी बच्चों के मुकाबले छोटा होता है. इसका परिणाम यह होता है कि भारतीय बच्चे अमेरिकी बच्चों की तुलना में कम एक्सरसाइज कर पाते हैं. इतना ही नहीं, हमारे देश के बच्चों का फेफड़ा प्रदूषित हवा के जहरीले प्रभावों के लिए सबसे कमजोर साबित हो रहा है.

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भारतीय बच्चों का फेफड़ा अमेरिकी बच्चों के मुकाबले छोटा होता है. इसका परिणाम यह होता है कि भारतीय बच्चे अमेरिकी बच्चों की तुलना में कम एक्सरसाइज कर पाते हैं. इतना ही नहीं, हमारे देश के बच्चों का फेफड़ा प्रदूषित हवा के जहरीले प्रभावों के लिए सबसे कमजोर साबित हो रहा है. बच्चों में श्वसन संबंधी लक्षणों और बीमारियों की अधिक संभावना पायी जा रही है. इससे बच्चों का समग्र विकास पीछे छूट जाता है.

इसका परिणाम यह हो रहा है कि बच्चों की जीवन की गुणवत्ता में कमी आ रही है और उनकी मृत्यु दर में वृद्धि हुई है. येल ग्लोबल हेल्थ रिव्यू के मुताबिक, दिल्ली के बच्चों के लिए यह खतरे की बात है. राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर दुनिया के कई देशों से काफी अधिक है. वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग और वर्तमान प्रमुख प्रो एसके छाबड़ा का भी मानना है कि दिल्ली के प्रदूषित वातावरण में बड़े हो रहे बच्चे प्रदूषण से पीड़ित हैं.

जुलाई में जर्नल ‘इंडियन पीडियाट्रिक्स’ में स्वीकार किया गया और इसके सितंबर अंक में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय और अमेरिकी दोनों बच्चों में आठ वर्ष की आयु तक लगभग एक ही फेफड़े का आकार होता है, जब फेफड़े अपना सामान्य शारीरिक विकास पूरा करते हैं. इसके बाद दोनों देशों में फेफड़ों के विकास में फर्क आ जाता है. भारतीय बच्चों के फेफड़े वयस्क होने तक लगभग 10-15 प्रतिशत छोटे हो जाते हैं. आइसीएमआर ने इस अध्ययन का वित्त पोषण किया था.

बच्चों की जीवन की गुणवत्ता में आ रही कमी, बढ़ी मृत्यु दर

तेज हो जाती है सांस लेने की दर : फेफड़ों का आकार छोटा होने से सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है और जल्दी-जल्दी सांस लेनी पड़ती है. इसका असर रोजाना के सामान्य क्रियाकलापों पर भी पड़ता है. पुल्मनरी फाइब्रोसिस को ठीक नहीं किया जा सकता है क्योंकि फेफड़ों के नष्ट हुए टिशू फिर से नहीं बन सकते हैं. लेकिन समय रहते पता चलने पर इसका आगे बढ़ना धीमा किया जा सकता है या कभी-कभी रोका भी जा सकता है.

बच्चों के मानसिक विकास पर पड़ सकता है असर : यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सहित दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण से 1.22 करोड़ शिशुओं के मानसिक विकास पर असर पड़ सकता है. प्रदूषणकारी तत्वों से दिमाग के ऊतक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और संज्ञानात्मक विकास कमतर हो सकता है. जन्म के 1,000 दिनों के भीतर वायु प्रदूषण की चपेट में आने से बच्चों के विकसित हो रहे दिमाग पर असर पड़ने के साथ उनका शुरुआती विकास प्रभावित हो सकता है.

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  • बांया फेफड़ा दाएं की अपेक्षा छोटा होता है. ऐसा होने से फेफड़े के बीच दिल के लिए जगह बनती है.

  • दिल के वजन की बात की जाए, तो पुरुषों में यह 300 से 350 ग्राम का होता है, जबकि महिलाओं में लगभग 250 से 300 ग्राम का.

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Posted by: Pritish Sahay

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