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नंदीग्राम में ममता को मात दे पायेंगे मेदिनीपुर से लेफ्ट का सफाया करने वाले शुभेंदु अधिकारी?

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लगातार 5 दिन तक नंदीग्राम में डेरा डालने के लिए ममता बनर्जी जैसी नेता को मजबूर कर देने वाले शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार के बारे में जानना बेहद जरूरी है. शुभेंदु अधिकारी छात्र राजनीति से राज्य की राजनीति में आये और साल-डेढ़ साल पहले तक तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी के बाद नंबर दो की हैसियत रखते थे.

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कोलकाता : नंदीग्राम में कल यानी 1 अप्रैल को वोट है. राज्य की सबसे बड़ी नेता ममता बनर्जी का मुकाबला 10 साल तक उनके सेनापति रह चुके शुभेंदु अधिकारी से. कांग्रेस नेता शिशिर अधिकारी के पुत्र शुभेंदु ने पहली बार लक्ष्मण सेठ को पराजित कर मेदिनीपुर में लेफ्ट का किला ध्वस्त किया था. इस बार सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती दे रहे हैं.

लगातार 5 दिन तक नंदीग्राम में डेरा डालने के लिए ममता बनर्जी जैसी नेता को मजबूर कर देने वाले शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार के बारे में जानना बेहद जरूरी है. शुभेंदु अधिकारी छात्र राजनीति से राज्य की राजनीति में आये और साल-डेढ़ साल पहले तक तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी के बाद नंबर दो की हैसियत रखते थे.

छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत करने वाले शुभेंदु ने नेतृत्व कौशल एवं संगठनकर्ता के रूप में खुद को बंगाल की राजनीति में स्थापित किया. कहा जाता है कि नंदीग्राम में जब वाम मोर्चा सरकार ने रसायन फैक्ट्री के लिए भूमि अधिग्रहण की शुरुआत की, तब इसके खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाने में शुभेंदु अधिकारी और उनका परिवार ही अहम भूमिका निभा रहा था.

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अधिकारी परिवार की कुशल रणनीति का ही नतीजा रहा कि ममता बनर्जी के चेहरे को आगे करके शुरू हुए आंदोलन ने राज्य में वामपंथियों की 34 साल से जमी जड़ों को उखाड़ फेंका. शुभेंदु अधिकारी ने वर्ष 1989 में उस वक्त राजनीति में कदम रखा, जब वह कांथी के पीके कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे.

इसी साल वह छात्र परिषद के प्रतिनिधि चुने गये थे. इसके बाद वर्ष 2006 में कांथी दक्षिण सीट से पहली बार विधायक बने. तब शुभेंदु की उम्र महज 36 साल थी. इसी साल कांथी नगरपालिका के चेयरमैन भी बन गये. वर्ष 2007 में पूर्वी मेदिनीपुर के नंदीग्राम आंदोलन की वजह से उनका सियासी कद बढ़ा. नंदीग्राम आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में उनकी बड़ी भूमिका रही, ऐसा लोग बताते हैं.

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यही वजह रही कि शुभेंदु अधिकारी वर्ष 2009 में लोकसभा के सांसद चुने गये. वर्ष 2014 में भी तृणमूल के टिकट पर चुनाव जीतकर वह लोकसभा पहुंचे. दोनों बार तमलूक से ही जीते. वर्ष 2016 में उन्होंने ममता बनर्जी के कहने पर नंदीग्राम विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. ममता बनर्जी की कैबिनेट में उन्हें कई अहम जिम्मेदारी दी गयी.

शुभेंदु को विश्वासघाती और गद्दार बता रहीं ममता बनर्जी

ममता बनर्जी के भतीजे, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के नेता भाईपो कहकर संबोधित करते हैं, जब राजनीति में सक्रिय हुए, तो शुभेंदु अधिकारी के अधिकार धीरे-धीरे सीमित कर दिये गये. इससे नाराज शुभेंदु ने पार्टी से नाता तोड़ लिया और आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गये. अब तृणमूल के नेता और यहां तक कि ममता बनर्जी खुद शुभेंदु को गद्दार और विश्वासघाती कह रही हैं.

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ममता को घुसपैठियों और रोहिंग्या का संरक्षक बता रहे शुभेंदु

वहीं, शुभेंदु अधिकारी अब ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण की राजनीति करने के साथ-साथ रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की संरक्षक बता रहे हैं. नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी को हिंदू वोटों पर पूरा भरोसा है, तो ममता बनर्जी को विश्वास है कि मुस्लिम मतदाता उनके साथ हैं. साथ ही हिंदू वोटर भी उनके पक्ष में मतदान करेंगे. देखना है कि लेफ्ट के कद्दावर नेता लक्ष्मण सेठ को पराजित करने वाले शुभेंदु इस बार ममता को हरा पाते हैं या नहीं.

Posted By : Mithilesh Jha

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