29.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

लोकतंत्र से नेपाल का सामना

Advertisement

लोकतंत्र से नेपाल का सामना

Audio Book

ऑडियो सुनें

कुमार प्रशांत

- Advertisement -

गांधीवादी विचारक

k.prashantji@gmail.com

ओली ने भले राजनीतिक हित देखकर संसद को भंग करने का फैसला किया हो, और उससे पार्टी में टूट हो रही हो, लेकिन यह चुनाव संभावनाओं के नये द्वार खोलता है. लिया इतिहास का सबसे अजूबा मंजर यह है कि नेपाल के लोकतंत्र के संरक्षण के लिए दूसरा कोई नहीं, चीन सिपाही बनकर नेपाल के आंगन में उतरा है. लोकतंत्र से चीन का नाता कभी उतना भी नहीं रहा है जितना कौवे का कोयल से होता है.

इधर नेपाल के लोकतंत्र का हाल यह है कि उसके 58 साल के इतिहास में अब तक 49 प्रधानमंत्रियों ने उसकी कुंडली लिखी है. दुखद यह है कि इन 49 प्रधानमंत्रियों में से शायद ही किसी का कोई लोकतांत्रिक इतिहास रहा है.

लोकतांत्रिक इतिहास जरूरी इसलिए होता है कि लोकतंत्र में नियम-कानूनों से कहीं-कहीं ज्यादा महत्ता स्वस्थ परंपराओं व उनमें जीवंत आस्था की होती है. इसे समझना भारत और नेपाल दोनों के लिए जरूरी है. शासन तंत्र के रूप में लोकतंत्र एक बेहद बोदी प्रणाली है लेकिन जब वही अत्यंत प्राणवान बन जाती है, जब वह जीवनशैली में ढल जाती है. आज हम भी और नेपाल भी इसी कमी के संकट से गुजर रहे हैं.

फर्क यह है कि जहां हमारे यहां संसदीय लोकतंत्र की जड़ें अत्यंत गहरी हैं, नेपाल में अभी उसने जमीन भी नहीं पकड़ी है. उसने 237 साल लंबे शुद्ध राजतंत्र का स्वाद चखा है, राजशाही के नेतृत्व में प्रतिनिधिक सरकार भी देखी. पंचायती राज भी देखा, संवैधानिक राजशाही भी देखी और फिर कम्युनिस्ट नेतृत्व का लोकतंत्र देखा. इन दिनों वह शुद्ध लोकतंत्र का स्वाद पहचानने की कोशिश कर रहा है.

साल 2018 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने कम्युनिस्ट केपी ओली अपनी पार्टी और अपनी सरकार के बीच लंबी रस्साकशी से परेशान चल रहे थे. इससे निजात पाने का उन्होंने रास्ता यह निकाला कि देश की पहली महिला राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी से संसद के विघटन की सिफारिश कर दी, जबकि अभी उसका कार्यकाल करीब ढाई साल बाकी था.

नेपाल के संविधान में संसद के विघटन का प्रावधान नहीं है. संविधान ने इसे राष्ट्रपति के विवेक पर छोड़ दिया है. प्रधानमंत्री ओली के राष्ट्रपति भंडारी से ऐसे मधुर रिश्ते रहे हैं कि इस मामले में दोनों का विवेक एक ही आवाज में बोल उठा और संसद भंग हो गयी.

नेपाल आज लोकतंत्र के उस चौराहे पर खड़ा है, जहां से यदि कोई रास्ता निकलता है तो नये चुनाव से ही निकलेगा. प्रधानमंत्री ओली ने यही किया है भले सरकार व पार्टी में उनके कई सहयोगी उन पर वादाखिलाफी का और पार्टी को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं.

साल 2018 का आम चुनाव नेपाल को ऐसे ही अजीब से मोड़ पर खड़ा कर गया है. तब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. वहां की दो वामपंथी पार्टियों, ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) तथा पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के बीच वोट इस तरह बंट गये कि दोनों सत्ता से दूर छूट गये.

लंबी अनुपस्थिति तथा ‘प्रचंड’ की अगुवाई में हुई क्रूर गुरिल्ला हिंसा से नेपाल में लोकतंत्र का पुनरागमन हुआ था. ‘प्रचंड’ पहले 2008-09 में और फिर 2016-17 में प्रधानमंत्री बने थे. लेकिन इस बार पासा उलटा पड़ा. अंतत: दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों को साथ आना पड़ा. फिर दोनों का विलय हो गया.

कुछ दूसरे छोटे साम्यवादी दल भी आ जुड़े और 275 सदस्यों वाली लोकसभा में दो तिहाई बहुमत (175 सीटें) के साथ नेपाल में तीसरी बार साम्यवादी सरकार बनी. समझौता यह हुआ कि पहले ओली प्रधानमंत्री बनेंगे और आधा कार्यकाल पूरा कर वे ‘प्रचंड’ को सत्ता सौंप देंगे. इसमें न कहीं साम्य था, न वाद, यह शुद्ध सत्ता का सौदा था.

‘प्रचंड’ जब पहले दो बार प्रधानमंत्री बने थे तब भी, और ओली जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से भी दोनों ही भारत के साथ शतरंज खेलने में लगे रहे. अपनी साम्यवादी पहचान को मजबूत बनाने में इनकी कोशिश यह रही कि चीनी वजीर की चाल से भारत को मात दी जाये. चीन के लिए इन्होंने नेपाल को इस तरह खोल दिया जिस तरह कभी वह भारत के लिए खुला होता था.

स्वतंत्र भारत ने ऐसा तेवर रखा कि नेपाल को ‘बड़े भाई’ भारत को कुछ कहने के बजाय उसका इशारा समझ कर चलना चाहिए. यह रिश्ता न चलने लायक था, न चला. फिर आयी मोदी सरकार. वही हालात जारी रहे. यह किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र को न स्वीकार्य होना चाहिए था, न हुआ. फिर तो नेपाल के साथ भारत के रिश्ते इतने बुरे हुए जैसे पहले नहीं हुए थे.

समय के साथ-साथ अपनी राजनीतिक शक्ति का उनका एहसास मजबूत होता गया. इनका अपना राजनीतिक दल बना जो कई नामों से गुजरता हुआ आज जनता समाजवादी पार्टी कहलाता है. यह पार्टी संसद में मधेशियों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की मांग करती है और नेपाल के संविधान में कुछ खास परिवर्तन की भी मांग करती है. यह संगठित भी है, मुखर भी है और दोनों साम्यवादी पार्टियों के बीच की खाई का अच्छा इस्तेमाल भी करती है.

इन तीनों खिलाड़ियों को नेपाल में लोकतंत्र का वह खेल खेलना है जिसे अभी इन्होंने सीखा नहीं है. जब कभी लोकतंत्र की गाड़ी इस तरह फंसे, तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव- सबसे वैधानिक और स्वाभाविक विकल्प होता है.

ओली ने भले राजनीतिक हित देखकर संसद को भंग करने का फैसला किया हो, और उससे कम्युनिस्ट पार्टियों में टूट हो रही हो, लेकिन यह चुनाव तीनों ही दलों के लिए संभावनाओं के नये द्वार खोलता है. ओली को अलोकतांत्रिक बताने से कहीं बेहतर यह है कि उन्हें चुनाव में बदतर साबित किया जाये. आखिर तो नेपाल की महान जनता ही फैसला करेगी कि इन तीनों में से वह किसे नेपाल को आगे ले जाने के अधिक योग्य मानती है. यही लोकतंत्र है.

Posted By : Sameer Oraon

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें