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पेट्रोल की कीमतें अभी सबसे उच्च स्तर पर हैं और डीजल के दाम भी बढ़े हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में बीते कुछ दिनों से कच्चे तेल के दाम में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. आगामी फरवरी और मार्च में सऊदी अरब द्वारा उत्पादन में कटौती की घोषणा ने भी इस वृद्धि में योगदान दिया है. ऐसे में देशी शोधकों व वितरकों को भी दाम बढ़ाना पड़ रहा है. उल्लेखनीय है कि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुरूप तेल की खरीद के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है.

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तेल की खुदरा कीमत में सरकारी शुल्क का बड़ा हिस्सा होता है. मार्च और मई में 1.6 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व जुटाने के इरादे से शुल्क को फिर बढ़ाया गया था. उल्लेखनीय है कि तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों तथा मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के हिसाब से खुदरा बिक्री के दाम की रोजाना समीक्षा होती है तथा इस निर्धारण में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है, लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की विक्रेता कंपनियां दाम संतुलित रखने का प्रयास भी करती रही हैं.

इसी वजह से खुदरा कीमतों में ताजा बढ़ोतरी लगभग एक महीने के अंतराल के बाद हुई है. महामारी की मार से त्रस्त अर्थव्यवस्था में सुधार तो हो रहा है, लेकिन खुदरा महंगाई दर का लगातार उच्च स्तर पर बने रहना सुधार की प्रक्रिया में एक बड़ा अवरोध है. साल 2020 में केवल मार्च के महीने में ही यह दर छह फीसदी से नीचे आयी थी. मुद्रास्फीति का रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा से कहीं अधिक होना चिंताजनक है. पेट्रोल व डीजल का महंगा होना इसे और बढ़ा सकता है.

इसका एक असर मांग में कमी के रूप में भी हो सकता है, जबकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मांग में बढ़ोतरी जरूरी है. मांग बढ़ेगी, तो उत्पादन में तेजी आयेगी और रोजगार के मौके बनेंगे. रोजगार से आमदनी होगी, जो मांग को आधार देगी. इस समीकरण पर मुद्रास्फीति का नकारात्मक असर हो सकता है.

दिसंबर में सब्जियों व अन्य कृषि उत्पादों की आवक से महंगाई में मामूली कमी आयी है, पर तेल के दाम बढ़ने से यह कमी बेअसर हो जायेगी. बीते साल के पहले छह माह में लॉकडाउन होने तथा तेलों की ढुलाई व मांग में बड़ी गिरावट के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनकी कीमतें गिरी थीं. कुछ समय के लिए दाम शून्य से भी नीचे चले गये थे, पर उस स्थिति का लाभ भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं मिल सका, क्योंकि न तो कंपनियों ने दाम घटाये और न ही सरकार ने शुल्कों में कोई छूट देने का प्रयास किया.

महामारी से पहले के दौर में भी कीमतें गिरी थीं. यदि तब ग्राहकों को फायदा मिला होता, तो आज उन्हें अधिक दाम देने में परेशानी नहीं होती. अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सरकारों और तेल कंपनियों को दामों में कमी लाने के उपायों पर विचार करना चाहिए.

Posted By : Sameer Oraon

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